संघर्ष/ जिला तो बन गया, अब खैरागढ़-छुईखदान के बीच क्षेत्रीय लड़ाई शुरू, बड़े नेता न जिला बनाने सामने आए, न ही क्षेत्रीय लड़ाई सुलझाने में …!

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सीजी क्रांति न्यूज/खैरागढ़। खैरागढ़ को जिला बनाने खैरागढ़वासियों ने लंबा संघर्ष किया। फिर खैरागढ़ विधानसभा उप चुनाव में कांग्रेस ने खैरागढ़-छुईखदान-गंडई को जिला बनाने की घोषणा कर सियासी दांव खेल दिया। जिले की घोषणा के बाद कांग्रेस की वैतरणी तो पार हो गई लेकिन अब विभागों के बंटवारा को लेकर क्षेत्रीय लड़ाई शुरू हो गई है। रविवार को छुईखदान बंद रहा।
छुईखदानवासियों की मांग है कि जब जिला संयुक्त रूप से बना है तो सारे विभाग खैरागढ़ में ही क्यों। जिला अस्पताल व कोर्ट समेत कुछ बड़े विभाग छुईखदान और गंडई को भी मिलना चाहिए। ताकि क्षेत्र के विकास में संतुलन की स्थिति रहे। यदि सब कुछ खैरागढ़ को मिल गया तो छुईखदान-गंडई की परिस्थितियां पुरानी ही रह जाएंगी। ऐसे में महज जिला के रूप में नाम मिलने से क्या फायदा। यहां के लोगों का मत है कि जिला मुख्यालय भले खैरागढ़ में रहे लेकिन कुछ महत्वपूर्ण व बड़े विभाग उनके क्षेत्र को भी मिले।

इधर खैरागढ़ में जिला निर्माण के लिए आंदोलन करने वाले आम नागरिकों की राय है कि जिला निर्माण में खैरागढ़वासियों ने लंबे समय से संघर्ष किया। आंदोलन किया। कांग्रेस ने चुनावी लाभ लेने के लिए छुईखदान-गंडई को जोड़ा है। शुरू से खैरागढ़ में पूरे विधानसभा और अब जिला बनने के बाद हर लिहाज से खैरागढ़ मुख्यालय के लायक है। भौगोलिक स्थिति, सुविधाओं और सरकारी जमीन के मामले में खैरागढ़ समृद्ध है। हालांकि छुईखदान-गंडई कुछ अहम विभाग देने में खैरागढ़वासियों को परेशानी नहीं है लेकिन जिला अस्पताल के मामले में खैरागढ़वासी भी समझौता के लिए तैयार नहीं है।

इस मामले में विधायक यशोदा नीलांबर वर्मा अब समझौते की दिशा में आगे बढ़ रही है। लेकिन जिला अस्पताल छुईखदान में बनने की स्थिति में खैरागढ़ में जबर्दस्त नाराजगी बढ़ सकती है। यदि इस मामले को समय रहते आपसी रजामंदी से सुलझाया नहीं गया तो क्षेत्रीय तनाव की स्थिति बन सकती है!

इस संवेदनशील मामले में खैरागढ़ विधानसभा के तमाम वरिष्ठ नेता मौन साधे हुए हैं। मजेदार बात यह है कि जिला निर्माण आंदोलन में भी किसी भी बड़े नेता ने अहम भूमिका नहीं निभाई। जिला निर्माण के लिए राजनीतिक दलों से जुड़े लेकिन स्वतंत्र विचारधारा वाले मंझले स्तर के नेता, समााजिक कार्यकर्ता व आम आदमी ही सामने आए। अब सियासी नफे-नुकसान के गणित को ध्यान में रखकर कांग्र्रेस-भाजपा के नेता मूकदर्शक बनकर बैठे हुए हैं।

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