विक्रांत सिंह की मेहनत, काबलियत और प्रभाव के सामने लोधी-साहू ओबीसी का रंग पड़ा फिका, पढ़ें पूरी खबर


सीजी क्रांति न्यूज/खैरागढ़। खैरागढ़ विधानसभा में जातिवाद, परिवारवाद और वंशवाद की बेड़ियों को तोड़कर भाजपा की टिकट लाने में विक्रांत सिंह ने सफलता हासिल कर ली है। टिकट फाइनल होते ही सियासी चर्चा-परिचर्चा का दौर भी शुरू हो गया है। बीते 20 सालों से लगातार मेहनत के दम काबलियत अर्जित करने और जनबल-धनबल-बाहूबल बल के सामने खैरागढ़ विधानसभा में लोधीवाद और साहूवाद का तिलिस्म टूटकर बिखर चुका है।

देश की आजादी के बाद से खैरागढ़ की सियासत में सिंहों का प्रभाव रहा। इस बीच विजय लाल ओसवाल और माणिलाल गुप्ता अपवाद रहे। फिर कोमल जंघेल ने पूरे 15 साल क्षेत्र में अपना छाप छोड़ा। अब विधानसभा में विक्रांत सिंह के रूप में एक नए राजनीतिक युग की शुरूआत होने जा रहा है। विक्रांत सिंह अपने छात्र जीवन की राजनीति से अब तक समसमायिक बने हुए हैं। विक्रांत की राजनीतिक शुरूआत सफलता से शुरू हुई। जो अब तक अनवरत जारी है। खैरागढ़ की राजनीति में वे अजेय योद्धा साबित हुए हैं।

भाजपा की सत्ता में मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का भांजा होने का उन्हें स्वाभाविक लाभ मिलते रहा है। सत्ता बदलकर कांग्रेस की झोली में गई, तब उन्होंने जिला पंचायत सदस्य का चुनाव अपने बुते जीतने में सफलता पाई। अब यह दूसरा मौका होगा, जब वे बगैर सत्ता के जिला पंचायत के बाद विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। विक्रांत सिंह के पास सब कुछ है। राजनीतिक प्रभाव और व्यक्तित्व, जनसमूह, कुशल मैनेजमेंट और राजनीतिक तर्जुबा। युवाओं की टीम। पार्टी में उंची पहुंच, ईत्यादि।

उनके मुकाबले कांग्रेस कमजोर दिखाई पड़ रही है। कांग्रेस के पास मजबूत चेहरे के रूप में एकमात्र यशोदा वर्मा है। उनके बाद, बात करें तो कृषि उपज मंडी अध्यक्ष दशमत जंघेल, पूर्व विधायक गिरीवर जंघेल का नाम आता है। यशोदा वर्मा ट्क्कर देंगी। लेकिन मैनेजमेंट यानी पैसों के मामले में वे पिछड़ जाएंगी। वही हाल दशमत का होगा। गिरीवर जंघेल व्यक्तित्व के मामले में पीछे रहेंगे लेकिन उनके छुईखदान निवासी होने की वजह से क्षेत्रीयतावाद का लाभ मिलेगा। गिरीवर जंघेल पिछले चुनाव काफी कमजोर प्रत्याशी साबित हुए थे। इसके पीछे कारण जो भी हो लेकिन वे एक बार विधायक रहने के बाद भी अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाए।

इधर यशोदा ने अपने शांत, हंसमुख और मिलनसार व्यक्तित्व से लोगों के दिल में जगह बनाई है लेकिन पति नीलांबर वर्मा के कई जगहों पर अनावश्यक हस्तक्षेप को लेकर जनता के बीच सही संदेश नहीं गया है। लिहाजा यह यशोदा के लिए माइनस पाइंट के रूप में देखा जा रहा है। महज डेढ़ साल के कार्यकाल में यशोदा के खाते में विकास के नाम ढेरों उपलब्धियां है। जिनमें जिला निर्माण ऐतिहासिक श्रेणी में आता है।

क्योंकि जिला निर्माण की मांग 1972-73 से उठते रहा है लेकिन पूरा हुआ कांग्रेस और यशोदा के विधायक कार्यकाल में। इसके अलावा जालबांध में उपतहसील, कॉलेज, बाजार अतारिया में कॉलेज, खैरागढ़ में महिला कॉलेज, साल्हेवारा में पूर्ण तहसील जैसे ठोस विकास कार्यों की श्रेणी में आता है। इसके अलावा निर्माण कार्य जैसे निरंतर चलने वाले विकास कार्य अलग हैं।

विक्रांत के धनबल को टक्कर देने के मामले में एक छोटे वर्ग में उत्तम सिंह ठाकुर का भी नाम लिया जा रहा है। लेकिन उत्तर सिंह ने उप विधानसभा में काफी सक्रियता दिखाई लेकिन टिकट से वंचित होने के बाद वे निष्क्रिय हो गए। यदि वो मैदान में डटे रहते तो हो सकता है कि कांग्रेस से विधायक पद के लिए उनकी भी दावेदारी मजबूत स्थिति में होती।

CG Kranti News channel

Follow the CG Kranti News channel on WhatsApp

1 thought on “विक्रांत सिंह की मेहनत, काबलियत और प्रभाव के सामने लोधी-साहू ओबीसी का रंग पड़ा फिका, पढ़ें पूरी खबर”

Leave a Comment

ताजा खबर

error: Content is protected By Piccozone !!