युवाओं को सनातन संस्कृति व मंदिरों से जोड़ने 23 से शुरू होगी धर्मयात्रा

gopalpur ganesh mandir

सीजी क्रांति/खैरागढ़। खैरागढ़ से लेकर कवर्धा तक ऐतिहासिक मंदिरों की श्रृंखला मौजूद हैं,जिनमें से कई मंदिर हज़ारों साल प्राचीन हैंं, पर जानकारी के अभाव में ज्यादातर मंदिर और देवस्थान जनमानस के पटल से ओझल होते जा रहे हैं। ऐसे सभी मंदिरों के पुर्नरूद्धार की कामना के साथ और धार्मिक तीर्थाटन कॉरिडोर की मांग को लेकर आगामी 23 नवंबर से धर्मयात्रा का आरंभ होने जा रहा है। धर्मयात्रा के प्रमुख भागवत शरण सिंह ने बताया कि खैरागढ़-डोंगरगढ़-पांडादाह-छईखदान-गंडई-लोहारा-कवर्धा में धार्मिक तीर्थाटन कॉरिडोर की असीम संभावनाऐं मौजूद हैं।

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जिनमें गातापार-साल्हेवारा क्षेत्र के वनग्राम भी शामिल हैं। ज्यादातर मंदिरों का इतिहास गौरवशाली हैं, और कथाओं की श्रृंखला समेटे हुए हैं। जिसकी वजह से न केवल मंदिरों के इतिहास का हास हो रहा है। बल्कि सनातन धर्म और संस्कृति का हास हो रहा है।

किसी भी स्तर पर एैसे मंदिरों के इतिहास को संग्रहित या संकलित न कर व्यापक स्तर पर प्रचारित न किए जाने से आम जनमानस खासकर युवा पीढ़ी न केवल हिंदू सनातन संस्कृति से अनभिज्ञ हैं,बल्कि मंदिरों के प्राचीनतम इतिहास अछूते हैं।

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धर्मयात्रा विरासतकालीन मंदिरों तक पहुंचकर उन्हें आम जनमानस तक लाने का प्रयास है। धर्मयात्रा युवाओं को समृद्धशाली सनातनी इतिहास से जोडऩे का प्रयास है। भागवत शरण सिंह ने बताया कि धर्मयात्रा के माध्यम से इस पूरे कॉरिडोर में मौजूद मंदिरों के इतिहास को शासन प्रशासन तक पहुंचाकर इस पूरे क्षेत्र को धार्मिक तीर्थाटन कॉरिडोर विकसित करने की मांग शासन प्रशासन तक पहुंचाई जाएगी।

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प्रसाद योजना के तहत् डोंगरगढ़ में मां बम्लेश्वरी का दरबार देश के आध्यत्मिक पटल पर अंकित हो चुका है। अब सभी विरासतकालीन मंदिरों को तीर्थाटन प्रोजेक्ट में शामिल कर यदि एक कॉरिडोर का निर्माण होता है। तो इससे न केवल प्राचीन विरासत का संकलन होगा। बल्कि विरासत को संजोकर आने वाली पीढ़ी के समक्ष भी रखा जा सकेगा। चर्चा के दौरान लक्ष्मीचंद आहूजा,राजीव चंद्राकर,सूरज देवांगन,उत्तम दशरिया,शुभम सिंह ठाकुर,गौतम सोनी,हर्षवर्धन वर्मा,भीषम वर्मा,अरूण यदु,श्रेयांश सिंह,किशन सारथी,नागेंद्र साहू,शिवम नामदेव,अंकुश सिंह परिहार,रिंकू सिंह सहित बड़ी संख्या में धर्मयात्रा के सहभागी मौजूद रहे।

संरक्षण का संदेश भी

धर्मयात्रा के दौरान प्रकृति पूजन और संरक्षण का संदेश, नदियों के पूजन और संरक्षण का संदेश दिया जाएगा। गौ पूजन और संरक्षण का संदेश, वन्य जीव पूजन और संरक्षण का संदेश भी दिया जाएगा। साथ मंदिरों में श्रमदान, आवश्यकतानुसार रंगरोगन, सहित अन्य कार्य किए जाएंगे।

सुंदरकांड व हनुमान चालीसा का पाठ

मंदिरों में पूजन,आरती पूर्व क्षेत्र के प्रत्येक हनुमान मंदिरं में सुंदरकांड व हनुमान चालीसा का पाठ किया जाएगा। और हनुमान जी की जीवन शैली से अनुशासन की सीख ली जाएगी।

संस्कृति के संरक्षण का संदेश

हिंदू सनातन संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीन आध्यात्मिक विरासत वाली संस्कृति रही है। परंतु निरंतर विदेशी आक्रांताओं के आक्रमण से संस्कृति को आंशिक रूप से क्षति पहुंची। पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित होकर एक आम सनातनी न केवल अपनी संस्कृति से विमुख हुआ है। बल्कि भय,लोभ,मोह के जाल में फंसकर अपने धर्म से विमुख भी हुआ है।

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भागवत शरण सिंह ने कहा कि इसके प्रभाव से हमारा क्षेत्र भी अछूता नहीं है। धर्मयात्रा के माध्यम से सनातन संस्कृति की समृधता को जन जन तक पहुंचाने का इस तरह से प्रयास किया जाएगा। कि सनातन धर्म व संस्कृति से विमुख हुआ व्यक्ति पुन अपनी संस्कृति की ओर लौटे।

गोपालपुर के गणेश मंदिर से निकलकर कवर्धा के भोरमदेव तक पहुंचेगी धर्मयात्रा

भागवत शरण सिंह ने बताया कि मंगलवार 23 नवंबर को राजनांदगांव रेल्वे स्टेशन से 19 किमी दूर गोपालपुर में प्रथम पूज्य श्री गणेश के पूजन के साथ यात्रा आरंभ होगी। जिसके बाद उसी दिन सिंगारपुर के दक्षिणमुखी हनुमान मंदिर में सुंदरकांड व हनुमान चालीसा का पाठ कर महाआरती की जाएगी। और श्री गणेश जी व श्री हनुमान जी से इस यात्रा व कामना के सफल होने की कामना की जाएगी। इसके पश्चात मां बम्लेश्वरी मंदिर डोंगरगढ़ व डोंगरगढ़ के मौजूद अन्य धार्मिक स्थलों के धर्मयात्रा पहुंचेगी। धर्मयात्रा के पड़ाव में आगे बढ़ते हुए मां गढ़ भवानी मंदिर करेलागढ़,मां गढ़ भवानी मंदिर दपका,बल्देवपुर,बढ़ईटोला,पेंड्री में मौजूद धार्मिक स्थल में भी यात्रा पहुंचेगी। बंजारी मंदिर,पेंड्री,प्राचीन हनुमान मंदिर्र,मंडी परिसर अमलीपारा,प्राचीन हनुमान मंदिर किल्लापारा,गोपीनाथ मंदिर किल्लापारा,मां चेंद्री मंदिर नवांगांव,मां महामाया मंदिर किल्लापारा,मां शीतला माता मंदिर,शनिदेव मंदिर धरमपुरा,हनुमान मंदिर इतवारी बाज़ार,नथेला मंदिर बाजार अतरिया,छैल बिहारी मंदिर बख्शी मार्ग,बांके बिहारी मंदिर गोलबाजार,मां दंतेश्वरी मंदिर राजफेमली,बन बिहारी मंदिर जमातपारा,श्री रूख्खड़ स्वामी मंदिर राजफेमली,गैंद बिहारी मंदिर,राजफेमली,प्राचीन हनुमान मंदिर राजफेमली,दाऊसाहब मंदिर दाऊचौरा,जगन्नाथ मंदिर पांडादाह,फतेह बिहारी मंदिर राजफेमली,प्राचीन श्री राम मंदिर,राधा माधव मंदिर टिकरापारा,खड्गेश्वर महादेव मंदिर कोड़ेगांव,जालबंाधा – शेरगढ़ में मौजूद ऐतिहासिक मंदिर,बाजार अतरिया क्षेत्र में मौजूद ऐतिहासिक मंदिर,सहित खैरागढ़ क्षेत्र के सभी मंदिरों में यात्रा पहुंचेगी।

धर्मयात्रा आगे बढ़ते हुए छुईखदान में प्रवेश करेगी। जहां टीले बघरन पाठ मंदिर,रानी मंदिर,लक्ष्मीनारायण मंदिर,श्री राम मंदिर,छुईखदान,जगन्नाथ मंदिर,उदयपुर रोड,बाईसाहब मंदिर,कैलाश मंदिर,मां काली मंदिर,छुईखदान जैसे अन्य मंदिर हैं,जहां भी यह धर्मयात्रा जाएगी। घिरघौली स्थित सिद्धबाबा मंदिर का भी अपना प्राचीनतम इतिहास रहा है। खैरा,चकनार में मौजूद मां नर्मदा मंदिर और खैरागढ़ के श्री रूख्खड़ स्वामी मंदिर का भी अपना प्राचीनतम इतिहास रहा है। इसके अतिरिक्त लोधेश्वर महादेव मंदिर,नर्मदा,डोंगरेश्वर महादेव मंदिर,चोडऱाधाम,मां गंगई मंदिर,देऊरभाठ मंदिर,घटियारी शिव मंदिर सहित गंडई क्षेत्र के अन्य प्राचीनतम मंदिर धर्मयात्रा की सूची में शामिल हैं। लोहारा क्षेत्र के मंदिर भी ऐतिहासिक सूची में शामिल हैं,जहां भी धर्मयात्रा के माध्यम से मंदिरों के संरक्षण के संदेश विस्तार का लक्ष्य रखा गया है। धर्मयात्रा आगे बढक़र कवर्धा में मौजूद विरासतकालीन विन्ध्यवासिनी मंदिर के दर्शन पश्चात कवर्धा के सभी मंदिरों का दर्शन कर भोरमदेव मंदिर पहुंचेगी। प्रत्येक सप्ताह किसी एक क्षेत्र तक पहुंचने का लक्ष्य रखा गया है।

पर्यटन की भी है अपार संभावनाएं

भागवत शरण सिंह ने बताया कि धार्मिक तीर्थाटन के साथ ही इस पूरे कॉरिडोर में पर्यटन की भी अपार संभावनाएं हैंं,जहां वनक्षेत्र,वन्यजीव,नदी,झरने,बांध सभी मौजूद हैं। खैरागढ़ में इंदिरा कला संगीत विवि परिसर,प्राचीन बावड़ी,रूसे जलाशय,प्रधानपाठ बैराज,भोथली,भुजारी सहित अन्य जंगलों में प्राकृतिक झरने पर्यटन के दृष्टिकोण से उपयुक्त हैं,इसी तरह छुईखदान क्षेत्र में बैताल रानी घाटी,स्व ऱानी रश्मि जलाशय सहित साल्हेवारा क्षेत्र की सुरम्य वादियां पर्यटन के लिहाज से उपयुक्त हैं,साल्हेवारा क्षेत्र से अभ्यारण कान्हा किसली की दूरी महज़ डेढ़ सौ किमी है,जो कॉरिडोर की संभावनाओं को और मजबूती देता है। इसके साथ ही सरोधा दादर और चिल्फी घाटी पूर्व से ही पर्यटन मानचित्र में अंकित हैं,इन सबके एक सूत्र में बंध जाने से पर्यटन उद्योग की नई संभावनाएं जन्म लेंगी जो रोजगार के अवसर पैदा करने में सहायक होगी।

इन उद्योगों को मिलेगी दिशा

यदि इस धर्मयात्रा के माध्यम से कॉरिडोर का निर्माण होता है,तो खैरागढ़ कला,चित्रकला,मूर्तिकला को बाजार मिलेगा,साथ ही छुईखदान में पान,बुनकर,बांस कला को फायदा मिलेगा। और कला उत्पादों की बिक्री से एक नए उद्योग की संभावनाएं जन्म लेंगी। होटल और लॉज भी व्यापारिक दृष्टिकोण से स्थापित हो सकेंगें।

ऐसा है गौरवशाली इतिहास

खैरागढ़ व कवर्धा सहित डोंगरगढ़,छुईखदान,गंडई व लोहारा का इतिहास गौरवशाली रहा है,खैरागढ़ और कवर्धा दोनों रियासतों में नागवंशी शासकों का शासन रहा है। जिसकी समृद्ध विरासत रही हैं। तत्कालीन खैरागढ़ की सीमा डोंगरगढ़ के बोरतालाब से थान खम्हरिया तक रहीं हैं। राजा टिकैत राय के शासन काल में जहां तपस्वी संत रूख्खड़ बाबा का आगमन और पीठ की स्थापना हुई। लोहारा – कवर्धा क्षेत्र के कई मंदिर कई शताब्दी पूर्व के हैं। जो पर्यटन मात्रचित्र में अंकित है ।

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