सीजी क्रांति/खैरागढ़। तालुक विधिक सेवा समिति खैरागढ़ अध्यक्ष चन्द्र कुमार कश्यप एवं सचिव देवाशीष ठाकुर के मार्गदर्शन ग्राम घोंठिया में विधिक साक्षरता शिविर का आयोजन किया गया। जहां पैरालीगल वालंटियर गोलूदास साहू द्वारा लोगों को भारतीय साक्ष्य अधिनियम एवं उसकी प्रक्रियाओं के संबंध में विस्तृत जानकारी दी।
उन्होंने बताया गया कि गतिशील परिवर्तनशील समाज में लोग कहीं हुई बातों पर विश्वास नहीं करते है, बल्कि वे तथ्यों पर विश्वास करने के लिए लिखित, दस्तावेजी बयान पसंद करते हैं। इस प्रकार, साक्ष्य उन घटनाओं को स्थापित करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं जो घटित हुई थीं या जो धीरे-धीरे होने वाली थीं। इसलिए घटनाओं के घटित होने या न होने को स्थापित करने के लिए, न्यायालय में साक्ष्य बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसलिए साक्ष्य का नियम तर्क पर आधारित है।
कानून की अदालत में मामले की योग्यता निर्धारित करने के लिए उचित साक्ष्य के बिना, लोगों को न्याय दिलाने के लिए मुकदमे में बहुत देरी होगी। इस प्रकार, भारतीय साक्ष्य अधिनियम के गठन का मूल विचार न्यायपालिका को शक्ति देना और मामले को तय करने में उनकी मदद करना और उसके सामने लाए गए तथ्यों और साक्ष्यों के आधार पर दोष सिद्धि और दोषमुक्ति का फैसला देना है। इसलिए, भारतीय साक्ष्य अधिनियम एक तरीका या एक साधन है जिसके माध्यम से अदालत ने प्रत्येक मामले की सच्चाई तक पहुंचकर अपने कार्यों को बरकरार रखा है। साक्ष्य विधि का कार्य उन नियमों का प्रतिपादन करना है, जिनके द्वारा न्यायालय के समक्ष तथ्य साबित और खारिज किए जाते हैं। किसी तथ्य को साबित करने के लिए जो प्रक्रिया अपनाई जा सकती है, उसके नियम साक्ष्य विधि द्वारा तय किये जाते हैं।
साक्ष्य विधि अपने आप में अत्यंत महत्वपूर्ण विधि है। समस्त भारत की न्याय प्रक्रिया भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की बुनियाद पर टिकी हुई है। साक्ष्य अधिनियम आपराधिक तथा सिविल दोनों प्रकार की विधियों में निर्णायक भूमिका निभाता है। इस साक्ष्य अधिनियम के माध्यम से ही यह तय किया जाता है कि सबूत को स्वीकार किया जाएगा या नहीं किया जाएगा।
पीएलबी साहू ने साक्षी के प्रकार को बताते हुए कहा कि प्रत्यक्ष साक्ष्य, परिस्थितिजन्य साक्ष्य, प्राथमिक साक्ष्य, गौण साक्ष्य,वास्तविक साक्ष्य,अनुश्रुत साक्ष्य,मौखिक साक्ष्य,दस्तावेजी साक्ष्य, न्यायिक साक्ष्य,न्यायेत्तर साक्ष्य होते हैं। जिसके माध्यम से न्यायालय अपना फैसला देती है।