छुईखदान गोलीकांड: आज 71 वीं बरसी में उन 5 शहीदों को नमन, आखिर क्यों हुआ था इतना बड़ा कांड ? जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर

सीजी क्रांति न्यूज/छुईखदान। आज ही के दिन यानी 9 जनवरी को छुईखदान में गोलीकांड हुआ था। छुईखदान तहसील को बचाने यहां के 5 लोगों ने अपनी शहादत दी थी। गोलीकांड में मारे गए लोगों और घायलों को सरकार की ओर से कोई राहत या मुआवजा भी नहीं दिया गया लेकिन छुईखदान के नागरिकों ने तहसील की सुरक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहूति देने वाले पं. बैकुंठ प्रसाद तिवारी, पं. द्वारिका प्रसाद तिवारी, वीरांगना रमसिर बाई, कचराबाई, भूलिन बाई और ठा. मना सिंह को शहीद का दर्जा प्रदान किया।

आज 71 वीं बरसी में नगर के लोगों ने शहीद स्थली पहुंच कर उन्हें श्रंद्धांजलि दी। उनकी शहादत को याद किया। साथ ही इस बात का संकल्प भी लिया कि छुईखदान के समग्र विकास की खातिर जरूरत पड़ने पर वे भी सर्वस्य न्योछावर करने से पीछे नहीं हटेंगे। इस अवसर पर राजकुमार जैन, नपं अध्यक्ष पार्तिका महोबिया, दीपाली जैन, देवराज किशोर, मनोज चौबे, अरविंद शर्मा नवनीत जैन, शैलेंद्र तिवारी, भागीरथी कुंभकार, सोनू चंद्राकर समेत बड़ी संख्या में नगरवासी उपस्थित थे।

बता दें कि खैरागढ़ विधानसभा अंतर्गत छुईखदान को शहीद नगरी भी कहा जाता है। यहां की पवित्र माटी में ऐसे सपूत जन्म लिए हैं जिन्होंने देश की आजादी की लड़ाई भी लड़ी है। गौरवशाली इतिहास को समेटे होने के बावजूद छुईखदान अब भी अपेक्षित विकास से वंचित है।

बहरहाल छुईखदान में हुए गोलीकांड में अपने जान की आहूति देने वाले वीरों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए सीजी क्रांति आप पाठकों को आजाद भारत के इस पहले गोलीकांड के बारे वह सब बताने जा रहा है, जो आपको जानना अत्यंत जरूरी है।

यह आलेख वरिष्ठ पत्रकार वीरेंद्र बहादुर सिंह की है, जिनकी अनुमति से हम आपको हु-ब-हू पेश कर रहे हैं।

रियासतों के विलीनीकरण के बाद 1 जनवरी 1948 में सी.पी. एण्ड बरार के दुर्ग जिले में दुर्ग, राजनांदगांव, कवर्धा, बेमेतरा, बालोद, खैरागढ़ और छुईखदान 7 तहसीलें थी। तत्कालीन मध्यप्रदेश सरकार ने दिसंबर 1952 में दुर्ग जिले की एकमात्र छुईखदान तहसील को समाप्त करने का फैसला किया।

छुईखदान के लोगों को इस बात की जानकारी मिली तो नागरिकों ने तहसील की रक्षा करने के लिए 6 दिसम्बर 1952 को अमृतलाल महोबिया के नेतृत्व में तहसील सुरक्षा समिति छुईखदान का गठन किया। समिति ने मुख्यमंत्री पं. रविशंकर शुक्ल को 21 दिसंबर 1952 को ज्ञापन सौंपकर छुईखदान तहसील यथावत रखने की मांग की।

नागरिकों की मांग को नजरअंदाज करते हुए मध्यप्रदेश शासन के राजस्व विभाग द्वारा अधिसूचना क्रमांक 7987-1617 एम, दिनांक 24-12-1952 को दुर्ग जिले में 01.01. 1953 से तहसीलों के पुनर्गठन को मंजूरी दी गयी। इस अधिसूचना के तहत छुईखदान तहसील के अधिकांश गांवों को प्रस्तावित नई तहसील खैरागढ़ में शामिल किया जाना था। उस समय खैरागढ़ के महाराजा वीरेंद्र बहादुर सिंह शुक्ल मंत्रिमंडल में उप मंत्री थे।

शासन के वित्त विभाग ने अपने 26 दिसंबर को छुईखदान उपकोषागार को बंद करने के निर्देश जारी कर डोंगरगढ़ तथा खम्हरिया में संचालित दो अन्य उपकोषालयों को भी रद्द कर दिया। दुर्ग जिले के अतिरिक्त सहायक आयुक्त एच. एस. ठक्कर को तहसील पुनगर्ठन का प्रभारी अधिकारी नियुक्त किया गया। उन्हें 20 फरवरी 1953 तक तहसील पुनगर्ठन का कार्य संपादित करने की समय सीमा दी गई। वित्त विभाग की अधिसूचना के परिपालन में छुईखदान, डोंगरगढ़ तथा खम्हरिया में तहसील उपकोषालय में कार्य एक जनवरी 1953 से बंद कर दिये गये थे।

45 हजार रुपये हटाये गए

26 दिसंबर को सुबह नायब तहसीलदार बाजपेयी ने उपकोषालय से 45 हजार रुपये नकद, स्टॉम्प पेपर एवं स्टॉम्प टिकट आदि को हटा लिया। उन्हें 26.12.1952 से 31.12.1952 तक छुईखदान उप-राजकोष से राजस्व रिकार्ड भी स्थानांतरित करना था। अचानक नायब तहसीलदार वाजपेयी को 29 दिसंबर को छुट्टी पर जाना पड़ा। तब दुर्ग के डिप्टी कमिश्नर ने खैरागढ़ के तहसीलदार एच. आर. शुक्ला को जिम्मेदारी दी।

इस बीच छुईखदान की जनता ने शुक्ल सरकार के इस फैसले का विरोध करने का निर्णय लिया। एक जनवरी 1953 को नागरिकों की बैठक में छुईखदान तहसील की रक्षा करने का संकल्प लिया गया। बस स्टैंड के पास के धर्मशाला में नगाड़ा रखा दिया गया। निर्णय लिया गया कि जैसे ही अधिकारियों का दल छुईखदान पहुंचे तब धर्मशाला के पास जो भी व्यक्ति मौजूद हो वह नगाड़ा और घंटी बजाकर नागरिकों को सूचित कर दे ।

ट्रेजरी हटाने का विरोध

2 जनवरी 1953 को सुबह खैरागढ़ के तहसीलदार एच. आर. शुक्ला नकद और स्टॉम्प टिकटों का पुनर्भुगतान करने के लिए छुईखदान पहुंचे। उन्हें छुईखदान के लोगों ने अनुमति नहीं दी। परंतु जब उन्होंने नागरिकों की बात अनसुनी कर दी। विरोध में भीड़ ने तहसीलदार की जीप को घेर लिया। अंततः उन्हें बैरंग खैरागढ़ लौटना पड़ा। तहसीलदार ने इस घटना की जानकारी दुर्ग के सहायक आयुक्त ठक्कर को दी।

उसी दिन दोपहर तीन बजे जब खैरागढ़ से सी. सी. केर, तहसीलदार शुक्ला और अन्य पुलिस अधिकारी जब छुईखदान पहुंचे और श्री ठक्कर ने अपनी कार में खजाना ले जाने का प्रयास किया मगर वहां मौजूद लगभग लोगों की भीड़ ने उन्हें भी ऐसा करने से रोक दिया। इस भीड़ में 15 महिलाएं भी थीं, जिनका नेतृत्व समीपस्थ ग्राम कोहलाटोला की मनभौतिन बाई कर रही थी।

दिनांक 5.01.1953 को नई तहसील के बीच राजस्व अभिलेखों के विभाजन का पर्यवेक्षण करने के लिए दुर्ग के उपायुक्त ठक्कर ने छुईखदान का दौरा किया। जैसे ही वे छुईखदान पहुंचे, धर्मशाला में रखे नगाड़े और घंटियां बज उठी। लगभग 500 लोगों की भीड़ तहसील कार्यालय के पास एकत्रित हो गई। जमकर नारेबाजी हुई। शाम को जब वे खैरागढ़ लौटने लगे तो भीड़ ने जयस्तंभ के पास उनकी कार को रोक लिया और उनकी कार पर मिट्टी पोत दी।

6 जनवरी 1953 को 2.30 बजे राजनांदगांव के अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट श्री एच.एस. अवस्थी और अनुविभागीय अधिकारी पुलिस राम सिंह ने छुईखदान का दौरा किया। उनके छुईखदान पहुंचते ही फिर चेतावनी की घंटी बज गई, नगाड़ों का शोर छुईखदान में गूंज उठा। भीड़ बस स्टैंड के पास एकत्रित हो गयी और नारेबाजी करने लगी।

अवस्थी ने भीड़ को संबोधित करते हुए कहा था स्वराज का मतलब हुल्लड़ नहीं है। अगर आप लोग अड़ंगे लगाएंगे तो सरकार के पास इतनी शक्ति है कि वह अपने हुकूम का पालन करा सकती है और अड़ंगे लात मारकर अलग करने की शक्ति सरकार में है। एसडीएम द्वारा इस्तेमाल किये गये उपरोक्त आपत्तिजनक वाक्य से छुईखदान की जनता उत्तेजित हो गयी। स्थिति को तनावपूर्ण देखते हुए अवस्थी और डीएसपी रामसिंह जयस्तंभ चौक से समीप ही जनपद सभा के कार्यालय की ओर चले गये। जनपद कार्यालय उस समय पुतरी शाला की पुरानी बिल्डिंग में लगती थी।

दोनों अधिकारी जब जनपद सभा कार्यालय की ओर गये तो भीड़ में शामिल कुछ युवक पठानपारा गये और वहां मुसलमान महिलाओं से काले रंग के दुपट्टे लेकर आए। दुपट्टे को फाड़कर उसे झंडे का रूप दिया गया और अधिकारी द्वय जब जनपद कार्याेलय से वापस आने लगे तो उन्हें काले झंडे दिखाये गए। काला झंडा देखकर अवस्थी और रामसिंह और नाराज हो गये। अधिकारी तब तक नगर पालिका कार्यलय पहुंच गये थे।

इस दौरान जय स्तंभ चौक में लोगों की भारी भीड़ जमा हो गयी थी । भीड़ ने अवस्थी से दुर्व्यवहार और आपत्तिजनक वक्तव्य के लिए माफी मांगने की मांग की। लोगों के आक्रोश को देखकर अवस्थी और रामसिंह को क्षमा याचना करनी पड़ी। माफी मांगने पर अवस्थी के अहम को काफी चोट पहुंची थी। उन्होंने एक डीओ लेटर लिखा था। वे उस पत्र को लेकर नागपुर में मंत्री श्री मंडलोई, खैरागढ़ के पूर्व नरेश एवं प्रदेश के तत्कालीन उप मंत्री वीरेन्द्र बहादुर सिंह से मिले। मुख्यमंत्री के साथ 7.01.1953 को नागपुर में साक्षात्कार के बाद सरकार द्वारा कड़े कदम उठाने का निर्णय ले लिया गया था।

अंतिम प्रयास

8 जनवरी को पूर्व विधायक एवं तहसील सुरक्षा समिति के अध्यक्ष अमृतलाल महोबिया ने दुर्ग में डिप्टी कमिश्नर एम. वी. राजवाड़े से मुलाकात की। कहते हैं वे छुईखदान की स्थिति पर विचार विमर्श कर रहे थे उसी समय नागपुर से फोन आया। राजवाड़े ने महोबिया से कहा कि मुख्यमंत्री पं. रविशंकर शुक्ल का उनके लिए एक संदेश है। संदेश इस प्रकार था महाकौशल कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य के रूप में आपको शांत करना चाहिए और लोगों को कानून अपने हाथ में लेने की अनुमति नहीं देनी चाहिए अन्यथा आपको सरकार के साथ-साथ कांग्रेस कमेटी के लिए भी जिम्मेदार ठहराया जाएगा और उन्हें अराजकता के लिए प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए।

नौ जनवरी काला दिन

छुईखदान के इतिहास में 9 जनवरी को काला दिन माना जाता है। दुर्ग जिले के डिप्टी कमिश्नर एम. वी. राजवाड़े और जिला पुलिस अधीक्षक तनखीवाले ने पुलिस बल के साथ छुईखदान तहसील एवं उपकोषालय के रिकार्ड तथा खजाने को हटाने के लिए छुईखदान प्रवास पर जाने का निर्णय लिया। डीएसपी अपने साथ दो प्रधान आरक्षक और 23 आरक्षकों से लैस थे। राइफल के 30 राउंड के साथ हेड कांस्टेबल और कांस्टेबल लाठियों से भी लैस थे।

साथ में 800 राउंड का बंदूक की गोलियों का एक बाक्स भी रखा गया था। अतिरिक्त सहायक आयुक्त एच. एस. ठक्कर, अतिरिक्त डिस्ट्रक्ट मजिस्ट्रेट अवस्थी, एसडीओपी राम सिंह, खैरागढ़ के तहसीलदार शुक्ला, राजनांदगांव के सब इंस्पेक्टर, अब्बास, खैरागढ़ के उपनिरीक्षक, बसाक, छुईखदान के सब इंस्पेक्टर, शर्मा, खैरागढ़ के उपनिरीक्षक, दुबे पुलिस दलबल के साथ दोपहर लगभग 1.30 बजे छुईखदान पहुंचे। अधिकारियों के छुईखदान पहुंचते ही पूर्व की भांति नागरिकों को घंटी एवं नगाड़ा बजाकर सूचना दी गई।

देखते ही देखते जयस्तंभ चौक में सैकड़ों लोगों की भीड़ एकत्रित हो गई। भीड़ ने नारेबाजी शुरू कर दी। उधर पुलिस बल तहसील आफिस, जनपद सभा कार्यालय और जयस्तंभ चौक के आसपास फैल गया, अधिकारियों ने लोगों को समझाने का प्रयास कर वहां से हटने के लिए कहा। लेकिन भीड़ हटने के लिए राजी नहीं थी।

इस पर डिप्टी कमिश्नर ने धारा 144 लागू करने की घोषणा की। भीड़ को तहसील परिसर में प्रवेश से रोकने के लिए जयस्तंभ चौक के पास लाठीधारी पुलिस बल तैनात किया गया था। अचानक पुलिस ने लाठी चार्ज किया और चेतावनी दी गयी कि अगर भीड़ तितर-बितर नहीं हुई तो बंदूकों का सहारा लिया जाएगा। लाठीचार्ज के बाद भीड़ फिर से एकत्र हो गयी ।

फायरिंग से अनेक हताहत

लगभग 2.25 बजे डिप्टी कमिश्नर राजवाड़े ने पुलिस अधीक्षक को भीड़ पर गोलियां चलाने का आदेश दिया। फायरिंग दस्ते को पहले एक-एक राउंड हवाई फायर करने का आदेश दिया गया। सभी 18 शाट्स में पहले हवाई फायर किया गया। हवाई फायर का भीड़ पर कोई असर नहीं हुआ तब प्रत्येक फ्लैक से भीड़ पर गोलियां चलाई गई। प्रत्येक फ्लैक से दो शाट दागे गए। इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। फिर सभी 19 राउंड में एक साथ भीड़ पर गोली दागी गई।

पहले राउंड की फायरिंग के शिकार छुईखदान के परस्पर चचेरे भाई पं. बैकुण्ठ प्रसाद तिवारी और पं. द्वारिका प्रसाद तिवारी हुए। ये दोनों अपने मेहमानों को विदा करने बस स्टैंड आये थे। थ्री-नाट-थ्री की गोलियां लगते ही दोनों की घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गई। दूसरे राउंड की गोली जयस्तंभ चौक के किनारे सीताराम तिवारी के होटल के पास खड़ी भूलिन बाई को लगी। एक गोली नगर पालिका परिषद परिसर के समीप खड़ी कचरा बाई को लगी जिनकी दूसरे दिन 10 जनवरी को मृत्यु हो गई।

दूसरी गोली कचरा बाई के समीप खड़ी श्रीमती सीताबाई वैष्णव को लगी जो गंभीर रूप से जख्मी हो गई। फायरिंग में एक गोली छुईखदान के समीपस्थ ग्राम नवागांव में निवासी ठा. मना सिंह को भी लगी। एक माह के उपचार के पश्चात् उनका देहावसान हुआ। स्वतंत्रता सेनानी पं. पद्माकर प्रसाद त्रिपाठी को भी गोली का छर्रा लगा।

रमसिर बाई का बलिदान

गोलीकांड के दौरान श्रीमती रमसिर बाई तहसील कार्यालय परिसर के बाड़े के समीप खड़ी थी। उसी दौरान छुईखदान के सब इंस्पेक्टर शर्मा की नजर रमसिर पर पड़ी। शर्मा ने रमसिर को डपट कर वहां से भागने के लिए कहा। डांट से रमसिर बाई बिफर गईं। वह सीना तानकर सामने खड़ी हो गई। एक महिला की चुनौती से सब इंस्पेक्टर आग बबूला हो उठा। उसने पहले तो रमसिर के सीने पर पैर से प्रहार किया और फिर उसके सीने पर गोली दाग दी। वीरांगना रमसिर बाई शहीद हो गई।

पांच शहीद और 24 घायल इस गोलीकांड में दो पुरुष और तीन महिलाओं की मृत्यु हुई और लगभग 24 लोग घायल हुए। घायलों में ठा. मना सिंह, रामकुंवर बाई, सीता बाई, रामा नगारची, कार्तिकराम, कमला बाई, केजाबाई, कन्हाई राम, अर्जुनराम, सुकालू राम और सुखलाल प्रमुख थे।

खजाना खैरागढ़ रवाना

गोली कांड में पांच लोगों की मौत और 24 लोगों के जख्मी होने के बाद नगर में सन्नाटा पसर गया। डिप्टी कमिश्नर राजवाड़े के नेतृत्व में आया अधिकारियों का दल खैरागढ़ रवाना हो गया। वे अपने साथ एंटी मलेरिया वैन में रखे उपकोषागार के रिकार्ड और खजाना तथा ट्रक में भरे फर्नीचर आदि को भी अपने साथ ले गए…और पीछे छोड़ गए शोक, दुख और चीख पुकारों का एक अंतहीन सिलसिला…

सामूहिक अंतिम संस्कार

शनिवार को छुईखदान में साप्ताहिक बाजार लगता है। 10 जनवरी सन् 1953 को शनिवार का दिन था लेकिन उस दिन बाजार नहीं भरा था। समूचा नगर शोकाकुल था। छुईखदान तहसील की रक्षा करते हुए शहीद हुए पं. बैकुंठ प्रसाद तिवारी, पं. द्वारिका प्रसाद तिवारी, वीरांगना रमसिर बाई, भूलिन बाई और कचरा बाई की एक साथ शवयात्रा निकली। वर्तमान शहीद स्मारक उद्यान में नम आंखों के साथ चारों शहीदों का अंतिम संस्कार किया गया। श्रीमती कचरा बाई को मुस्लिम रिवाज के साथ अलग स्थान पर दफनाया गया।

देशव्यापी प्रतिक्रिया

छुईखदान गोलीकांड की पूरे देश में व्यापक प्रतिक्रिया हुई थी। प्रमुख समाचार पत्र छुईखदान गोलीकांड और उसके बाद की घटनाओं से भरे हुए थे। नागपुर से प्रकाशित नागपुर टाइम्स ने 29 जनवरी 1953 के अंक में छुईखदान त्रासदी और उसके बाद शीर्षक समाचार तथा दैनिक हितवाद ने छुईखदान त्रासदी समाचार में पुलिस गोलीबारी को अमानवीय, अंधाधुंध और पुलिस द्वारा निर्दाेषों की हत्या करार दिया था।

दैनिक युग संदेश, नागपुर ने 25 जनवरी 1953 के अंक में क्या अच्छा है अगर वह अन्यायी किसी भी व्यक्ति पर प्रहार करे इस लेख में घटना को खून की होली के रूप में प्रस्तुत किया था। नागपुर से प्रकाशित नया खून ने 16 जनवरी 1953 के अंक में छुईखदान गोलीकांड की तुलना जलियांवाला बाग हत्याकांड से की थी।

विधायक मंचेरशा अवारी ने छुईखदान गोलीकांड की जांच के लिए एक निष्पक्ष और स्वतंत्र न्यायाधीश नियुक्त करने की मांग की। रायपुर के विधायक और सीपी एंड बरार विधानसभा में विपक्ष के नेता ठाकुर प्यारेलाल सिंह ने एक पर्चा प्रकाशित कराकर अपील की थी कि 9 मार्च 1953 को छुईखदान शहीद दिवस मनाया जाए।

जांच समिति

गोलीकांड की न्यायिक जांच की मांग के समक्ष सरकार को झुकना पड़ा। आयोग के एकमात्र सदस्य के रूप में नागपुर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बी. के. चौधरी को नियुक्त किया गया। सरकारी आदेश में कहा गया था कि न्यायमूर्ति बी. के. चौधरी आयोग की पहली बैठक 13 फरवरी 1953 को पूर्वान्ह 11 बजे छुईखदान रेस्ट हाऊस में शुरू होगी। 13 फरवरी को शासकीय अवकाश होने के कारण चौधरी 14 फरवरी 1953 को छुईखदान पहुंचे। जांच आयोग की सुनवाई 14 फरवरी को शुरू हुई और 19 अप्रैल 1953 को समाप्त हुई।

जस्टिस बी. के. चौधरी ने जांच के अभिमत देते हुए कहा कि मेरा निष्कर्ष यह है कि छुईखदान में 9 जनवरी को किया गया गोली चालन उचित नहीं था। 24 अप्रैल को जांच रिपोर्ट मध्यप्रदेश सरकार को सौंपी गई। सरकार ने काफी दिनों तक इस रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाले रखा था। बाद में यह रिपोर्ट प्रकाशित की गई, जो कुल 24 पृष्ठों की है।

अविश्वास प्रस्ताव

छुईखदान के सत्याग्रहियों पर स्वतंत्र भारत में हुए इस अमानुषिक बर्बरता के कारण मध्यप्रदेश के नेता प्रतिपक्ष और रायपुर के विधायक तथा ठा. प्यारेलाल सिंह के आव्हान पर समूचे प्रदेश में 9 मार्च 1953 को छुईखदान शहीद दिवस आयोजित किया गया था। उन्होंने नागपुर विधानसभा में पं. रविशंकर शुक्ल मंत्रिमंडल के विरोध में अविश्वास प्रस्ताव प्रस्तुत करते हुए कहा कि छुईखदान में जो कुछ हुआ वह प्रशासन की अदूरदर्शिता का परिणाम है। स्वतंत्र राष्ट्र में भी वही बर्बरता और आतंक है जो अंग्रेजी शासन में था, तब फिर स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए हमारा सारा संघर्ष ही निष्फल हो गया है। संख्याबल के आगे अविश्वास प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया गया था।

शहीदों की समाधि पर जुटते हैं लोग प्रतिवर्ष 9 जनवरी को शहीदों की याद में उनकी समाधि पर श्रद्धा सुमन अर्पित करना और शाम को दीप प्रज्ज्वलित कर शहीदों के अद्भुत योगदान को स्मरण कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करना आज भी प्रत्येक छुईखदानवासी अपना कर्तव्य समझता है।

(राजनांदगांव के वरिष्ठ पत्रकार दैनिक सबेरा संकेत के सहायक संपादक श्री वीरेंद्र बहादुर सिंह की वर्ष 2020 को प्रकाशित किताब छुईखदान परत-दर-परत से साभार )

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