नीलेश यादव 94061-60466
सीजी क्रांति/खैरागढ़. नगर सहित ग्रामीण अंचल में सावित्री वट पूजा को लेकर महिलाओं में खासा उत्साह नजर आया. पति की दीर्घायु और सुखद वैवाहिक जीवन के लिए महिलाओं ने वट सावित्री व्रत रखा. परंपरा के मुताबिक महिलाएं सोलह श्रृंगार कर बांस की लकड़ी का पंखा, अगरबत्ती, लाल व पीले रंग का कलावा, पांच प्रकार के फल, चढ़ावे के लिए पकवान, हल्दी, अक्षत, सोलह श्रृंगार, कलावा, तांबे के लोटे में पानी, पूजा के लिए साफ सिंदूर, लाल रंग का वस्त्र आदि पूजन सामग्री के साथ सुबह सात बजे से ही पीपल और बरगद के वृक्ष के नीचे एकत्रित होकर पूरे विधि विधान से वटवृक्ष के चारों ओर धागा लपेटकर पूजा व अर्चना की. इसके बाद पीपल व वट वृक्ष की नीचे देवी सावित्री की कथा सुनी. महिलाओं ने पीपल व वट वृक्ष से भेंटकर उन्हें धागा बांधकर अपने पति के दीर्घायु होने की कामना की.
वट सावित्री व्रत पूजन को लेकर संशय की स्थिति
ज्योतिषाचार्य विभाष पाठक ने बताया कि इस बार वट सावित्री व्रत पूजन को लेकर संशय की स्थिति बनी हुई है, क्योंकि पंचांगों में अमावस्या तिथि नौ और कैलेंडर में 10 जून को वट सावित्री पूजा करने का उल्लेख है. जेष्ठ मास की चतुर्दशीयुक्त अमावस्या पर यह पूजन श्रेष्ठ माना गया है और नौ जून को ही वट सावित्री का पूजन करना उचित होगा.
जानें सुहागिनें क्यों करती है वट वृक्ष की पूजा
माना जाता है कि वटवृक्ष के नीचे सावित्री ने अपने पति व्रत की प्रभाव से मृत पड़े सत्यवान को पुनः जीवित किया था. तभी से इस व्रत को वट सावित्री नाम से ही जाना जाता है. इसमें वटवृक्ष की श्रद्धा भक्ति के साथ पूजा की जाती है. पुराणों में यह स्पष्ट किया गया है कि वट में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का वास है. मान्यता अनुसार इस व्रत को करने से पति की अकाल मृत्यु टल जाती है. वट अर्थात बरगद का वृक्ष आपकी हर तरह की मन्नत को पूर्ण करने की क्षमता रखता है. पीपल और वट वृक्ष की परिक्रमा का विधान है. इनकी पूजा के भी कई कारण है. आध्यात्मिक दृष्टि से देखें तो वट वृक्ष दीर्घायु व अमरत्व के बोध के नाते भी स्वीकार किया जाता है. धार्मिक मान्यता है कि वट वृक्ष की पूजा लंबी आयु, सुख-समृद्धि और अखंड सौभाग्य देने के साथ ही हर तरह के कलह और संताप मिटाने वाली होती है.