सीजी क्रांति/खैरागढ़। नगर के प्रतिष्ठित डॉ. महेश मिश्रा ने मृत्योपरांत देहदान की घोषणा की है। शुक्रवार को प्रेसवार्ता में उन्होंने बताया कि पूरी जिंदगी जिस शरीर को स्वस्थ और सुरक्षित रखने तमाम जतन किया जाता है। मरने के बाद उसे खाक में मिलाने से अच्छा है कि शरीर चिकित्सा के क्षेत्र में काम आएं। आज मेडिकल के छात्रों के लिए मृत शरीर की आवश्यकता है। ताकि चिकित्सा के क्षेत्र में नई पीढ़ी के शिक्षा व शोध कार्य बेहतर तरीके से हो सके। श्री मिश्रा ने कहा कि उनकी पांच बेटियां है। सभी खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं। उनके इस फैसले को परिवार के लोगों ने सराहते हुए अपनी सहमति दी है।
देहदान के लिए राजनांदगांव मेडिकल कॉलेज के एनाटॉमी विभाग में तमाम औपचारिकताएं पूरी कर ली है। श्री मिश्रा ने देहदान के संबंध में बताया कि मौत के बाद बॉडी को चिकित्सा छात्रों के लिए अधिकतम 3 वर्ष तक प्रयोग में लाया जा सकता है। मेडिकल के बच्चों के लिए पुस्तकीय अध्ययन के साथ ही मृत शरीर का व्यावहारिक अध्ययन भी आवश्यक है। अभी समाज में देहदान को लेकर जागरूकता नहीं आई है। जबकि चिकित्सा शिक्षा के विकास के लिए देहदान आज की बड़ी आवश्यकता है। देहदान के बाद उन्हें इस बात की संतुष्टि है कि मरने के बाद भी उनका शरीर समाज के काम आएगा।
बता दें कि मेडिकल कॉलेजों में डॉक्टर बनने वाला प्रत्येक छात्र मानव शरीर को अंदर से देखकर ही प्रैक्टिकल सीखते हैं। मेडिकल ऑपरेशन में जब भी कोई नई तकनीक आती हैं, तो उसे सीखने और प्रैक्टिकल कर देखने के लिए कडैवेरिक वर्कशॉप (मानव शरीर पर प्रयोग) के लिए भी बॉडी का उपयोग किया जाता है। जानकारी के मुताबिक एमबीबीएस कोर्स में प्रवेश लेने वाले विद्यार्थियों को पहले साल से ही मानव शरीर की संरचना पर इलाज का प्रशिक्षण दिया जाता है। कॉलेज के एनाटॅामी विभाग में विद्यार्थियों को मृत मानव शरीर से डॉक्टरी का प्रशिक्षण देने के लिए विशेष केमिकल में शव को रखा जाता है।