छुईखदान हमेशा छला गया, क्योंकि यहां की राजनीति शुरू से खैरागढ़ के अधीन रही, 1953 में गोलीकांड के बाद लोगों ने; न सिर उठाया न मुट्ठी बांधी

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सीजी क्रांति न्यूज/छुईखदाऩ। आजादी के बाद से खैरागढ़ विधानसभा में खैरागढ़ रियासत और सियासत का दबदबा रहा। जो अब तक कायम है। इस बीच छुईखदान हमेशा से पिछड़ा रहा। जबकि रियासत यहां भी रही, लेकिन यहां की रियासत और राजनीति खैरागढ़ के सामने बौनी ही साबित हुई। हां देश की आजादी के लिए छुईखदान में जरूर स्वतंत्रता सेनानी हुए लेकिन अगली पीढ़ी के भीतर वो आग कभी प्रज्जवलित नहीं हुई, जो उनके पुरखों में थी। फलस्वरूप छुईखदान आज भी अपने वाजिब हक के लिए सिसक रहा है। तड़प रहा है। अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है।


बता दें कि यह वही छुईखदान है, जहां कभी मौजूदा पीढ़ी के पूर्वजों ने 1953 में अपनी माटी यानी छुईखदान के हक के लिए गोली खाई थी। आजाद भारत का संभवतः वह पहला गोलीकांड था। आज करीब 70 साल बाद आजादी के मतवालों के शहर छुईखदान में अपने हक और माटी के लिए वहीं तड़प, गुस्सा और स्वाभिमान दिख रहा है।

रविवार को नया जिला बनने के बाद छुईखदान में जिला अस्पताल समेत अन्य विभाग खोले जाने की मांग लेकर नगर बंद रहा। इस आंदोलन का क्या परिणाम होगा, यह तो भविष्य के गर्भ में है। ये भी तय है कि इस आंदोलन के पीछे मसूंबे राजनीति से परे माटी के प्रति समर्पण का है तो प्रतिसाद बेहतर होगा, इसमें कोई शक नहीं।

बता दें कि छुईखदान में आंदोलन की जो चिंगारी सुलग रही है, वह यहां के नव पीढ़ी को एक मौका दे रही है कि 1953 में उनके पूर्वजों ने जो लड़ाई लड़ी थी, उसे पूरा करने इतिहास फिर से वापस लौट आया है। वक्त ने फिर करवट लिया है और कह रहा है कि अपने मातृभूमि के लिए अब वह सब मांगो, जिसके लिए वे अब तक महरूम रहे हैं।

छुईखदान का अपना गौरवशाली इतिहास रहा है। छुईखदान की मिट्टी में स्वतंत्रता सेनानी हुए हैं। यही नहीं छुईखदान में तहसील कार्यालय और कोषागार को स्थानांतरित किए जाने के विरोध में 9 जनवरी 1953 में 5 लोगों ने पुलिस की गोली से अपनी जांन गंवाई थी। जानकारी के अनुसार उस गोलीकांड में पंडित द्वारिका, बैकुंठ प्रसाद तिवारी, भूलिन बाई, कचरा बाई और मशीर बाई मारे गए थे। तब यह दुर्ग जिले में था।

इस घटना के बाद कालांतर में छुईखदान विकासखंड बना, 1978 को उपतहसील का दर्जा मिला। कोषालय की स्थापना हुई। लेकिन सियासी और प्रशासनिक सुविधाओं की दृष्टि से छुईखदान अब भी खैरागढ़ का पिछलग्गू बना हुआ है।

पहली बार कोमल जंघेल ने तोड़ा खैरागढ़ का सियासी वर्चस्व
आजादी के करीब 60 साल बाद विधानसभा उप चुनाव 2007 में जीतकर विधायक बने कोमल जंघेल ने खैरागढ़ के सियासी धार को छुईखदान की ओर मोड़ दिया। हालांकि 2018 और 2022 में क्रमशः देवव्रत सिंह और यशोदा नीलांबर वर्मा ने फिर से विधानसभा की राजनीतिक नेतृत्व पर कब्जा कर लिया। भले ही विधानसभा परिसीमन के लिहाज से छुईखदान मध्य में है लेकिन जिला और राजनीति का केंद्र खैरागढ़ ही है।

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