सीजी क्रांति/रायपुर। जिले में भाजपा अध्यक्ष के लिए समीकरण बन और बिगड़ रहे हैं। पार्टी पूरी 360 डिग्री में विचार कर रही है। नफा-नुकसान का खाता-बही तैयार किया जा रहा है। इन सियासी पैतेरबाजी से बनने वाले माहौल को भांपा जा रहा है। संभव है कि इस सप्ताह केसीजी का नया भाजपा अध्यक्ष घोषित हो जाएगा। किन्ही कारणों से नहीं हुआ तो दीपावली के बाद ही स्थिति स्पष्ट हो पाएगी।
फिलहाल खैरागढ़-छुईखदान-गंडई जिला भाजपाध्यक्ष के लिए जिला पंचायत सभापति घम्मन साहू का नाम आगे है। क्षेत्र की राजनीतिक व जाति समीकरण, एज लीमिड, साधन-संसाधन जैसे अन्य मामलों में बाकी दावेदार फिलहाल पीछे हैं। अगला बड़ा नाम छुईखदान के प्रेम नारायण चंद्राकर और गंडई के खम्मन ताम्रकार का पलड़ा भारी तब होगा जब जिले के सांसद संतोष पाण्डेय जोर मारेंगे। ये दोनों वरिष्ठता और सक्रियता में घम्मन से आगे हैं लेकिन जाति समीकरण में पीछे हैं। गंडई के अनिल अग्रवाल को लेकर राजनीतिक स्तर पर बड़ी लामबंदी नहीं दिख रही है। हालांकि वे विक्रांत सिंह के करीबी माने जाते हैं, वहीं जिला स्तर के नेताओं से भी उनके अच्छे ताल्लुकात है। लेकिन ये काम आएंगे ऐसा नजर नहीं आ रहा। ये तय है कि खैरागढ़ में 2023 विधानसभा के राजनीतिक बिसात को ध्यान में रखकर नया जिला भाजपाध्यक्ष का चयन किया जाएगा। पूर्व जनपद पंचायत टिलेश्वर साहू का नाम सामने लाकर भी पार्टी कार्यकर्ताओं को चौंका सकती है। इन सबके बीच हेमू साहू भी अपना नाम आगे बढ़ा रहे हैं।
जातिवाद के भंवर में फंस चुका है खैरागढ़ ?
बहरहाल खैरागढ़ विधानसभा पूरी तरह से जातिवाद के भंवर में फंस चुका है। लोधी समाज के बाद जनसंख्या के हिसाब साहू समाज खुद को बड़ा मान रहे हैं। क्षेत्र में आश्चर्यजनक तरीके से साहू समाज काफी सक्रिय हुआ है। यह सक्रियता दलगत राजनीति से उठकर सामाजिक होने से और मजबूत हो रहा है। साहू समाज तेजी से लामबंद हो रहा है। प्रदेश की राजनीति में साहू समाज के दबदबे का सीधा फायदा स्थानीय साहू नेताओं को मिलना तय है। शैक्षणिक, राजनीतिक और आर्थिक रूप से संपन्न होने के बाद साहू समाज क्षेत्र में लोधी समाज के बाद बड़ी राजनीतिक शक्ति के रूप में उदय होने वालेे हैं।
लोधीवाद का तोड़ साहू समाज ?
यदि घम्मन साहू को जिला भाजपा की कमान सौंप दी जाती है। तो विधानसभा 2023 में लोधीवाद का काट बनाकर साहू समाज को खड़ा कर दिया जाएगा। भाजपा ने लोधी समाज के कोमल जंघेल को 5 बार टिकट दे दिया है। लिहाजा उन्हे अगली बार टिकट से वंचित किया गया तो स्वाभाविक रूप से विक्रांत सिंह का नाम पहले नंबर पर आ जाएगा। वहीं साहू समाज को यह कहकर मनाया जा सकेगा कि उनके समाज के व्यक्ति को पार्टी ने जिला अध्यक्ष बनाया है। इस तरह से जातिवाद के भंवर को काफी हद तक नियंत्रण कर लंबे समय से विधानसभा टिकट के मैराथन में दौड़ रहे विक्रांत सिंह को मौका मिल सकता है। हालांकि हर बार की तरह विक्रांत सिंह के सामने जातिवाद के तिलिस्म को तोड़ने और अपने दामन से परिवारवाद का दाग हटाने की सफल कोशिश अग्नि परीक्षा के सामान होगी।
कोमल, विक्रांत … अब घम्मन साहू का बढ़ता कद
पूर्व विधायक व संसदीय सचिव कोमल जंघेल के साथ लोधी समाज का बड़ा वोट बैंक है। इसके अलावा अन्य समाज में भी वे अपनी पकड़ बनाने में सफल हो चुके हैं। विक्रांत सिंह युवाओं के बीच खासे लोकप्रिय है। पार्टी और कार्यकर्ताओं में उनका दबदबा भी जबर्दस्त है। विक्रांत सिंह को पार्टी में सीधा और स्पष्ट संदेश देना होगा कि विधानसभा में उनके वोटों की गिनती कम से कम 20 हजार से शुरू होगी।
इधर कोमल जंघेल जाति ही नहीं वोटों के समीकरण में भी अब तक कमजोर साबित नहीं हुए हैं। क्षेत्र में कोमल जंघेल और विक्रांत सिंह के बाद घम्म्न साहू का नाम तेजी से उभर रहा है। हालांकि घम्मन साहू विक्रांत सिंह के कट्टर समर्थक माने जाते हैं। यह भी एक वजह है कि घम्मन साहू के बढ़ते कद को उनके ही करीबी और विरोधी खेमा बर्दाश्त नहीं कर पा रहा है। इसकी बानगी पिछले दिनों देखने को भी मिली। जब राजनांदगांव में पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के समक्ष पार्टी का एक खेमा घम्मन साहू के खिलाफ यह कहकर शिकायत कर दिए कि उनका कांग्रेस विधायक यशोदा वर्मा से सांठगांठ है। हालांकि वह आरोप निराधार निकला। दूसरी ओर घममन साहू की पर्सनल और प्रोफेशनल लाईफ की खामियों को खोजकर उसे उजागर करने की साजिश भी शुरू हो चुकी है!