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नक्सलवादः खैरागढ़ के जंगलों में बारूद की गंध, नक्सलियों का खौफ, जंगल से शहर तक तगड़ा नेटवर्क!

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सीजी क्रांति/खैरागढ़। खैरागढ़ क्षेत्र के वनांचल क्षेत्रों में नक्सली मौजूद है। हाल ही में भोथली जंगल के रास्ते में 7 किलो टिफिन बम मिलने से यह साबित हो गया। खैरागढ़ में करीब तीन दशक से नक्सलियों की आहट सुनाई दे रही है। समय-समय पर वारदात को अंजाम देकर नक्सली अपनी मौजूदगी और खौफ बनाए हुए हैं। वनांचल क्षेत्रों में सड़कों का जाल और बेस कैंप खोले जाने के बाद नक्सली मूवमेंट बढ़ तो नहीं रहा है। पर इन सबके बावजूद जिले के खूबसूरत जंगलों में नक्सलियों की मौजूदगी चिंता का विषय है। बस्तर में नक्सल ऑपरेशन की हेड रह चुकी जिले की एसपी अंकिता शर्मा ने नक्सलियों की मांद में घुसकर उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया है। टिफिन बम की बरामदगी के बाद सुरक्षा विभाग को और अलर्ट रहने का संदेश भी दे दिया है।

ईटार में समीर झा की हुई थी हत्या, रेस्ट हाउस और डिपो में हुई थी आगजनी

बता दें कि खैरागढ़ क्षेत्र में नक्सलियों का इतिहास करीब तीन दशक का रहा है। 90 के दशक में नक्सलियों ने गातापार क्षेत्र के मलैदा गांव स्थित रेस्ट हाउस को आग लगा दिया था। वहीं चंगुर्दा के डिपो में आगजनी की घटना को अंजाम दिया गया। इसी गांव के करीब ईटार में समीर झा को नक्सलियों ने सरेआम मौत की नींद सुला दी।
मलैदा में करीब 15 साल पहले नक्सलियों ने अपने मूवमेंट के लिए गांव के हर घर से एक युवा व किशोर बालक-बालिकाओं की मांग की थी। नक्सलियों के खौफ से पूरा गांव खाली हो गया था। तब मलैदा के ग्रामीणों को गातापार में कैंप लगाकर ठहराया गया था। वहीं डेढ़ दशक पहले साल्हेवारा क्षेत्र में ग्रेनेट बम एवं अन्य विस्फोटक सामग्री का जखीरा पकड़ाया था।

मुठभेड़ में एसआई को लगी थी गोली

बकरकट्टा में देवरचा और गुरूखदान के बीच पुलिस और नक्सलियों की मूठभेड़ हुई थी। जिसमें गोली लगने से एसआई घायल हुए थे। पुलिस के जवाबी फायरिंग में नक्सली भाग खड़े हुए थे। मौके से दैनिक उपयोग की सामग्री भी बरामद की गई थी।

सड़क निर्माण को रोकने वाहनों में लगाई थी आग

खैरागढ़ ब्लॉक के गातापार जंगल थाना क्षेत्र में करेलागढ़ तक निर्माणाधीन सड़क में नक्सलियों ने दो वाहनों को आग के हवाले कर दिया था। टेमरी करेलागढ़ निर्माणाधीन सड़क पर बैगाटोला के पास हुई वारदात के बाद नक्सलियों ने पर्चें फेंककर काम तत्काल बंद करने की बात कही है। आधी रात करीब 20 की संख्या में पहुंचे हथियारों से लैस महिला पुरूष नक्सलियों ने ड्राइवरों को पीटते हुए वाहन सूनसान हिस्सें में ले जाने की बात कही, जिसके बाद पानी टैंकर व एक टिप्पर के डीजल टैंक फोड़ इसमें आग लगा दी गई।

नोटबंदी के दौरान नक्सलियों का पैसा खपाने के मामले में हो चुकी है गिरफ्तारी

2016 में नोटबंदी के दौरान नक्सलियों का पैसा खपाने के मामले में खैरागढ़ के समीप अरचेडबरी मारूटोला के अश्वनी वर्मा व उसके एक सहयोगी की 2018 में गिरफ्तारी हुई थी! इन पर आरोप था कि इन्होंने नक्सलियों के पैसों का उपयोग किसानों के अनाज खरीदने में लगाए। फिर उस अनाज को बेचकर नोटबंदी के दौरान पैसे को एक नंबर में बदल दिया। ईडी की जांच में इन पैसों से जो कमीशन मिला है, उस पैसों को जमीन में इनवेस्ट किया गया था।

खैरागढ़ के तीन रसूखदारों का भी नक्सलियों से संबंध ?

नोटबंदी के दौरान नक्सलियों का पैसा खपाने के मामले में हुए गिरफ्तारी के बाद उसका नेटवर्क खैरागढ़ से भी जुड़ा। प्रारंभिक जांच में पता चला था कि नोट खपाने में खैरागढ़ के तीन रसूखदारों ने भी अहम भूमिका निभाई थी! पर उनके नामों का खुलासा नहीं हो पाया। या हो सकता है कि जांच में वह बात झूठी निकली हो!

नक्सलियों को राशन पहुंचाते देवरी में हुई थी गिरफ्तारी

खैरागढ़ क्षेत्र के जंगलों में नक्सली है, यह तय है। ये जंगलों में आम ग्रामीण की तरह रहते हैं। जब जरूरत पड़ती है, ये अपने ऑपरेशन में शामिल हो जाते है। और काम खत्म होने के बाद लौटकर फिर से आम जिंदगी जीना शुरू कर देते हैं। बताया जाता है कि यह क्षेत्र नक्सलियों के आरामगाह का सुरक्षित ठौर है। कुछ साल पहले नक्सलियों को राशन पहुंचाने के आरोप में देवरी गांव के पास दो युवकों को गिरफ्तार किया गया था। यह तय बात है कि खैरागढ़, छुईखदान बाजार नक्सलियों के दैनिक उपयोग की वस्तुएं जाती है! हालांकि अब ग्रामीण व वनांचल क्षेत्रों में रसद सामग्री आसानी से उपलब्ध है।

22 गांवों में मोबाइल नहीं चलता, कुछ जगहों पर टॉवर है, पर नेटवर्क नहीं

खैरागढ़ क्षेत्र के कई ऐसे गांव है जहां चमचमाती सड़क तो हैं लेकिन मोबाईल टॉवर नहीं है। जहां मोबाईल टॉवर है, वहां नेटवर्क नहीं है। करीब 22 गांवों में दूर संचार विभाग मोबाइल टॉवर लगाने की तैयारी कर रहा है। इनमें कई गांव नक्सली मामले में संवेदनशील है। भावे गांव में सालों पहले मोबाइल टॉवर लगाया गया है लेकिन यह टॉवर का स्ट्रक्चर है। पर नेटवर्क नहीं है। यहां स्वास्थ्य संबंधी आपातकालीन स्थिति बनती है तो ग्रामीण गांव के बेस कैंप में जवानों की मदद से 112 जैसी सुविधाओं का उपयोग कर पाते हैं। वहीं इन गांवों में नेटवर्क न होने के कारण सुरक्षा बलों को भी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

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