खैरागढ़ विधानसभा में मुद्दे कभी हावी नहीं रहे, चेहरों के दम पर होता रहा है चुनाव, पढें जनता के मुद्दे.. और भी बहुत कुछ

सीजी क्रांति न्यूज/खैरागढ़। खैरागढ़ विधानसभा में आजाद भारत के बाद से जितने भी चुनाव हुए उनमें जनहित का मुद्दा ज्यादा प्रभावी नहीं रहा। हर बार चेहरे के दम पर मतदाता विधायक चुनते रहे हैं। हालांकि यह मिथक पूर्व विधायक देवव्रत सिंह की मौत के बाद हुए 2022 के उप विधानसभा चुनाव में टूटा। इस चुनाव में जिला निर्माण का मुद्दा गर्म रहा। कांग्रेस जीती और 24 घंटे के भीतर जिला निर्माण की घोषणा कर दी गई।

2023 के हालिया विधानसभा चुनाव में एक बार फिर मुद्दों से ज्यादा चेहरों पर चर्चा हो रही है। कांग्रेस से यशोदा और भाजपा से विक्रांत सिंह उम्मीदवार है। हर बार की तरह इस बार भी यहां दमदार और प्रभावशील व्यक्तित्व पर चर्चा हो रही है। मुद्दे गायब हैं। हां विकास करने और न करने के दावे और आरोप-प्रत्यारोप जरूर लग रहे हैं। लेकिन जनहित के तमाम बड़े मुद्दों पर राजनीतिक पार्टियां चर्चा करने से परहेज कर रही है तो वहीं बीते पांच सालों में जनता से जुड़ी समस्याओं और सुविधाओं पर एक आंदोलन तक नहीं हुआ।

भय और समझौते की राजनीतिक स्वाभाव की वजह से क्षेत्र की जनता भी शांत और मौन रहने में ही समझदारी है यह मान रही है।। इसके पीछे वजह यह है कि पक्ष और विपक्ष के नेताओं के बीच सामंजस्य और समझौतापूर्ण राजनीति है। इसकी और गहराई में जाए तो खैरागढ़ की राजनीति में शुरू से राजपरिवार का दबदबा रहा है। राजनीति में एक बड़े तबके की सोच सामंतवाद से प्रभावी रहा है।

आजाद भारत के बाद के बाद जितने भी विकास और सुविधाएं मुहैया कराई गई, वह खैरागढ़ शहर तक ही सीमित रही। शहर में तमाम रिहायशी सुविधाएं रियासतकाल से रही है। लेकिन दूसरी ओर शहर के चंद किलोमीटर की दूर ग्रामीण क्षेत्र हमेशा से पिछड़ा रहा है। केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल के दौरान खैरागढ़ विधानसभा के गांव शहर से जुड़ना शुरू हुए। आज हालात में काफी सुधार हुआ है।

खैरागढ़ विधानसभा के अहम मुद्दे, जिसे गूंजना जरूरी है

0 12 साल में 6 किमी का बायपास सड़क नहीं बन पाया।
0 खैरागढ़ पालिका अंतर्गत टिकरापारा पुल बनाने में कांग्रेस-भाजपा दोनों फेल साबित हुए।
0 चिकित्सा सुविधा बीमार है।
0 विधानसभा में नक्सलियों की चहलकदमी पर कोई चर्चा नहीं।
0 उद्योग धंधे को लेकर किसी ने सुध नहीं ली।
0 बेरोजगारी, इसकी वजह से जुआं-सट्टा और अवैध शराब जैसी अपराधों में युवाओं का रूझान।
0 नगरीय क्षेत्र में बेरोजगार युवाओं के लिए कोई योजना संचालित नहीं। गरीब युवाओं के स्वरोजगार के लिए कांपलेक्स निर्माण की नीलामी में पूंजीपतियों का अधिपत्य।
0 पूरे विधानसभा में एक भी समुचित खेल मैदान नहीं। किक्रेट, फूटबॉल, कबड्डी, खो-खो जैसे खेलों के प्रतिभाशाली खिलाड़ी सुविधाओं के अभाव में पिछड़ रहे हैं।

0 खैरागढ़ के एकमात्र फतेह मैदान का विनाश भाजपा कार्यकाल में हुआ, कांग्रेस 7 साल से सत्ता में है पर उसके विकास के लिए कुछ न कर सकी।
0 अति गरीबों के लिए बनी खैरागढ़ कॉलेज के पीछे आईएचएसडीपी कॉलोनी अब तक विकसित नहीं हो पाई।
0 क्षेत्र में भू-माफिया सक्रिय। अवैध प्लाटिंग पर रोक नही। लिहाजा जमीन की कीमत आसमान पर। आम आदमी के लिए जमीन खरीदना सपना बन गया है।
0 क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा वन संपदा से भरापूरा है, पुरातात्विक और ऐतिहासक जगहों के विकास कर उन्हें पर्यटन के रूप में विकसित की जा सकती है।
0 नदियों के शहर खैरागढ़ में अधिकांश नदी अतिक्रमण की चपेट में। जिला मुख्यालय में ही नदियों में मकान और कांपलेक्स बन गए हैं।

कांग्रेस के गढ़ खैरागढ़ में शुरू से रहा राज परिवार का प्रभाव

1952- राजा वीरेंद्र बहादुर सिंह
1957 – राजा ऋतुपूर्ण किशोर दास
1962 -लाल ज्ञानेंद्र सिंह
1967- राजा वीरेंद्र बहादुर सिंह
1972- विजय लाल ओसवाल
1977- माणिक लाल गुप्ता
1980-1994 तक रानी रश्मिदेवी सिंह
1995 – उपचुनाव में देवव्रत सिंह
1998- देवव्रत सिंह
2003 – देवव्रत सिंह
2007- उपचुनाव में कोमल जंघेल
2008- कोमल जंघेल
2013 – गिरवर जंघेल
2018 – देवव्रत सिंह
2022- उप चुनाव में यशोदा नीलांबर वर्मा
2023- कांगेस से यशोदा वर्मा और भाजपा के विक्रांत सिंह आमने-सामने हैं।

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