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दर्द-3 : खैरागढ़ में कोरोना से 165 की मौत! बचाव के लिए पैसे होने पर भी नगर पालिका ने नहीं किया खर्च, 50 बिस्तर अस्पताल के लिए 2 करोड़ का पता नहीं, सिविल अस्पताल का हाल अब भी बेहाल

file photo

सीजी क्रांति/खैरागढ़। खैरागढ़ में कोरोना से करीब 165 की जान गई। पूर्व नगर पालिका उपाध्यक्ष रामाधार रजक ने आरोप लगाया था कि कोरोना से बचाव के लिए नगर पालिका को शासन से पैसे भेजे गए, लेकिन समय पर उन पैसों को खर्च नहीं किया गया। भूपेश सरकार ने अस्पताल को 50 बिस्तर बनाने के लिए 2 करोड़ रूपए भी स्वीकृत किए। सिविल अस्पताल की बदहाली को बदलने के लिए तमाम घोषणा आज तक मूर्त रूप नहीं ले सका।

अब कोरोना की फिर वापस की आशंका जाहिर की जा रही है। दिल्ली में स्वास्थ्य विभाग की लगातार बैठक हो रही है। राज्यों को कोरोना से बचने के लिए सतर्क रहने के निर्देश भी जारी कर दिए हैं। इन सबके बावजूद खैरागढ़ में चिकित्सा सुविधा अपेक्षानुरूप विकसित नहीं हो सकी। हालांकि अच्छी बात यह है कि खैरागढ़ में चिकित्सा स्टॉफ अपनी क्षमता व उपलब्ध संसाधनों का समुचित उपयोग कर बेहतर सेवाएं दे रहे हैं।

विप्लव साहू


इस मामले में जिला पंचायत सदस्य, क्षेत्र के युवा व शिक्षित युवा नेता विप्लव साहू ने कहा कि भारत की आजादी से पहले अंग्रेज जमाने की सुविधा और कंडम बिल्डिंग में सामान्य संसाधनों के अभाव के बीच सिविल अस्पताल सिसक रहा है। यहां पस्त चिकित्सा सुविधा के साथ बरसात में रिसती बिल्डिंग, बजबजाती अंदरूनी नालियां और संक्रमण के साथ बदबू मारते अंदर-बाहर के शौचालय और प्रसाधन कक्ष। इन गहरे अभाव और संक्रमण व्यवस्था के मध्य, यहां मरीज स्वास्थ्य लाभ लेगा कि और अधिक बीमार होगा!

करीब ढाई वर्ष पहले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने खैरागढ़ में 50 बिस्तर अस्पताल खोले जाने हेतु 2 करोड़ की घोषणा की थी, उस पर आज तक एसडीएम, कलेक्टर, स्वास्थ्य विभाग के सचिव, स्वास्थ्य विभाग के संचालक और लोक निर्माण विभाग की कोई प्रगति 2 साल बाद भी जनता को नही दिख रही है। श्री साहू ने कहा कि विधानसभा में कांग्रेस कीे विधायक इसी क्षेत्र से हैं, जिले के कलेक्टर खुद एमबीबीएस डॉक्टर हैं, लेकिन यहां व्यवस्था सहित अन्य सेटअप पुराने अस्पतालों की तर्ज पर ही चल रहे हैं। गंभीर, संवेदनशील और आम जरूरत का मुद्दा होने के बावजूद 50 बिस्तर अस्पताल भवन निर्माण का प्रोजेक्ट फाईलों में कैद है। मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद अधर में लटके प्रोजेक्ट को लेकर जनता खुद को ठगा महसूस कर रही है।

अस्पताल में 20 साल से अधिक पुराना एक्स-रे मशीन है, जिसकी रिपोर्ट भी साफ नहीं आती, तकनीशियन जैसे-तैसे एक्सरे निकाल रहे है। लेबोरेटरी में ठीक-ठाक सुविधा है। ईसीजी मशीन बंद पड़ी है। अस्पताल में ईसीजी, सोनोग्राफी जांच सुविधा नही होने का खमियाजा आम और गरीब आदमी निजी जांच केंद्र और रेडियोलॉजिस्ट के पास महंगे दाम चुकाकर भुगत रहे हैं।

सिविल अस्पताल में संस्थागत प्रसव के मामलें भी बहुत आते हैं, जिसको निपटाने में सुधार है। लेकिन नार्मल डिलीवरी में मुश्किल आने पर रेफर करना पड़ता है। सीजेरियन प्रसव सुविधा, शिशु रोग विशेषज्ञ और महिला-पुरुष नसबंदी तत्काल शुरू होनी चाहिए। पोस्टमार्टम के पर्याप्त स्टॉफ नही है लेकिन डॉक्टर और परिजन मानवता दिखाकर जैसे-तैसे निपटा रहे हैं। सिविल अस्पताल में करीब 36 बिस्तर हैं। चार एमबीबीएस व एक स्पेशलिस्ट डॉक्टर व करीब 45 स्टॉफ सेवाएं दे रहे हैं।

उपलब्ध डॉक्टर और स्टॉफ अपने स्तर पर बेहतर करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन स्टॉफ नर्स, विशेषज्ञ डॉक्टर्स के साथ आधुनिक सुविधाओं की आवश्यकता है। सिविल अस्पताल में खैरागढ़ अंचल के साथ छूईखदान, गंडई, साल्हेवारा, जालबांधा, गातापार, बाजार अतरिया, घुमका जैसे इलाकों से भी पहुंचते है। लेकिन मरीजों को जो सुविधाएं मिलनी चाहिए, उससे वे वंचित हैं। अब जनता के साथ-साथ स्वयं अस्पताल को भी इंतजार है कि शासन-प्रशासन जल्द ही उनकी सुध लेगा और जरूरत की सुविधा और संसाधन उपलब्ध कराएगा।

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