राजू यदु……
नया जिला केसीजी बनने के बाद जिले में जिस प्रशासनिक कसावट और विकास की परिकल्पना की गई थी, उसका मूर्तरूप तो दूर धूंधली तस्वीर भी नजर नहीं आ रही है। जिलाधीश कार्यालय में बाबू से लेकर कलेक्टर तक अनुभव की कमी से जूझ रहे हैं। अनुभव की इसी कमी की वजह से नये जिले की दशा और दिशा तय करने में बाधा उत्पन्न हो रही है ?
हैरानी की बात यह है कि अब तक क्षेत्र के किसी भी बड़े जनप्रतिनिधियों ने जिले के विभिन्न आयामों को कैसे गढ़ना है, इस दिशा में प्रशासन से गंभीर चर्चा किए जाने की खबर नहीं है। वहीं प्रशासन ने भी अपने स्तर पर क्षेत्र के प्रबुद्ध नागरिक, जनप्रतिनिधियों की औपचारिक बैठक लेकर उनसे रायशुमारी किए हो! ऐसी जानकारी नहीं है। लिहाजा जनसहभागिता भी नगण्य ही है।
खैर शिक्षा विभाग के करीब तीन दर्जन कर्मचारियों को कलेक्टरोट में वित्त, स्थापना समेत अन्य कार्यों में संलग्न किया गया है। हालांकि यह हाल हर नए जिले में होने की बात कही जा रही है लेकिन अन्य जिले खैरागढ़ के भौगोलिक, भौतिक संपदा एवं अन्य मामलों में कमतर है। लिहाजा खैरागढ़ का विकास तीव्रता से हो सकता है, इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं है। इसके बावजूद जिले के विकास में अनिश्चितताओं की धूंध नजर आना निराशजनक स्थिति निर्मित कर रहा है। जिला निर्माण के बाद से नगर में सिर्फ आयोजनों की संख्या बढ़ी है। जिसमें प्रशासनिक अमला इवेंट मैनेजर की भूमिका में ही नजर आ रहे हैं। हालांकि यह जरूरी कार्य है लेकिन इसके अलावा जो मूल कार्य है, उसमें पारदर्शिता और तीव्रता व ठोस पहल की भी आवश्यकता है। बहरहाल तमाम कमियों के बाद भी खूबियों की बात करें तो विपरित परिस्थतियों के बीच प्रशासनिक व्यवस्था पटरी पर आ चुकी है।
नए जिले का स्वरूप कैसा होगा इसका खाका अब तक तैयार नहीं
नया जिला केसीजी और जिला मुख्यालय का खाका अब तक स्पष्ट नहीं हो पाया है। जिला मुख्यालय की समस्याएं ज्यो की त्यो हैं। जिला पुलिस विभाग ने कुछ माह पहले दुर्घटना जन्य क्षेत्रों को चिन्हांकित कर उन्हे ब्लैक स्पॉट घोषित किया था। इस समस्या को खत्म या कम करने का अब तक समाधान नहीं ढूंढा जा सका। नदियों से घिरे खैरागढ़ में अवैध कब्जों से घिरकर कराहती आमनेर, मुस्का और पिपारिया नदी को बचाने स्थानीय प्रशासन के पास कोई ब्ल्यू प्रिंट नहीं है। नगर में अवैध कब्जे, अवैध निर्माण, नियमों से खिलवाड़ कर अवैध प्लाटिंग और कॉलोनी निर्माण बदस्तुर जारी है। चिकित्सा सुविधा अब भी पुराने ढर्रे पर है। आत्मानंद स्कूल अब भी कंडम व्यवस्था में चल रहा है। नगर का एकमात्र फतेह मैदान अब भी अपनी बदहाली का रोना रो रहा है। नगर को नए खेल मैदान की आवश्यकता है। शासकीय स्कूलों की मानीटरिंग व शिक्षण व्यवस्था को दुरूस्त करने की दिशा में भी काम नहीं हो रहा है।
स्कूलों की अव्यवस्था से नाराज होकर संभागीय कमिश्नर महादेव कांवरे निलंबन तक की कार्रवाई कर चुके हैं। जल जीवन मिशन हो या जल आवर्धन योजना, इनकी गति धीमी है। नगर का एकमात्र बायपास निर्माण की धीमी गति भी बड़ी समस्या है। जिसमें मुआवजा से लेकर रोड व पुल निर्माण में अनावश्यक देरी व अनियमितताएं बरती गई है। सीएम भूपेश बघेल द्वारा टिकरापारा पुल निर्माण की घोषणा अब तक अधूरी है। छुईखदान दनिया मार्ग हो या किल्लापारा के वे पीड़ित जो सड़क निर्माण व चौड़ीकरण में मुआवजा के लिए भटक रहे हैं। ऐसे ही दर्जनों समस्याएं, जो पहले से यहां मौजूद है, लोगों को उम्मीदें थी कि जिला बनने के बाद उनकी समस्याओं के निराकरण में तेजी आएगी, पर ऐसा नहीं हो रहा है। नगर समेत जिले में छोटे—छोटे ऐसे कार्य जो मामूली प्रयासों से ठीक हो सकते हैं,उस दिशा में भी ठोस प्रयास व परिणाममूलक कार्य नहीं हो रहा है।