खास खबर/ छत्तीसगढ़ में भाजपा के मुकाबले कांग्रेस में वंशवाद और परिवारवाद हावी, प्रदेश में इसकी शुरूआत खैरागढ़ से हुई ? जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर

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सीजी क्रांति न्यूज/रायपुर। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजनीति में परिवारवाद पर सीधा हमला किया है। इसके बाद वंशवाद और परिवारवाद चुनावी मुद्दा बनता दिख रहा है। छत्तीसगढ़ के राजनीतिक इतिहास को देखें तो राजनीतिक परिवारों को चुनावों में टिकट बंटवारे से लेकर सत्ता में भागीदारी तक तवज्जो मिलती रही है। इसकी शुरुआत 1957 के आम चुनाव में हुई, जब खैरागढ़ के राजा वीरेंद्र बहादुर सिंह के बाद उनकी रानी पदमावती सिंह को कांग्रेस ने खैरागढ़ से प्रत्याशी बनाया।

खैरागढ़ राजपरिवार का राजनीति में परिवारवाद तीसरी पीढ़ी तक कायम रहा। पूर्व विधायक देवव्रत सिंह की मौत के बाद परिवावाद की राजनीति में फिलहाल विराम लग गया। लेकिन हाल ही में खैरागढ़ सीट से भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के भांजे विक्रांत सिंह को टिकट दिया है। इसके बाद परिवारवाद के मुद्दे पर सीएम भूपेश बघेल समेत कांग्रेस भाजपा पर हमलावर हो गई है।

अविभाजित मध्यप्रदेश में शुक्ल बंधुओं का रहा वर्चस्व

अविभाजित मध्यप्रदेश फिर छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की राजनीति में पूर्व मुख्यमंत्री पं. रविशंकर शुक्ल परिवार का वर्चस्व रहा। 1947 के संसद में छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व पंडित रविशंकर शुक्ल के पुत्र ईश्वरीचरण शुक्ल ने किया तो 1952 के प्रथम आम चुनाव में निर्वाचित होकर दूसरे पुत्र भगवतीचरण शुक्ल ने।

पंडित रविशंकर शुक्ल के निधन के बाद उनके पुत्रों विद्याचरण शुक्ल व श्यामाचरण शुक्ल कई दशकों तक छत्तीसगढ़ व मध्यप्रदेश की कांग्रेसी राजनीति के शीर्ष पर रहे। 2008 में पंडित श्यामाचरण के पुत्र अमितेश शुक्ल राजिम से विधायक चुने गए। वर्तमान में वे राजिम से विधायक हैं।

छत्तीसगढ़ में राजघरानों का रहा प्रभाव

प्रदेश की राजनीति में आजादी के बाद से राजघरानों का प्रभाव रहा। बसना व सरायपाली राजपरिवारों से महेंद्र बहादुर व वीरेंद्र बहादुर सिंह 1957 से लेकर आगे भी कई चुनाव लड़े और जीते। जब कांग्रेस ने प्रत्याशी नहीं बनाया तो वे निर्दलीय भी लड़े। इसी परिवार से पुखराज सिंह व देवेंद्र बहादुर सिंह भी विधानसभा तक पहुंचे। हालांकि 2013 के विधानसभा चुनाव में देवेंद्र बहादुर सिंह बसना से चुनाव हार गए। 2018 में फिर विधायक चुने गए।

खैरागढ़ के राजा वीरेंद्र बहादुर सिंह के पुत्र शिवेंद्र बहादुर 1980 से कांग्रेस से लोकसभा सांसद रहे। शिवेंद्र बहादुर की भाभी रश्मि देवी विधायक रहीं जबकि उनकी पत्नी गीतादेवी कांग्रेस सरकार में मंत्री भी रही हैं। रश्मिदेवी के निधन के बाद उनके पुत्र देवव्रत सिंह सांसद बने। 2018 में पुनः विधायक चुने गए।

अविभाजित मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे सारंगढ़ के राजा नरेशचंद्र के इस्तीफे से रिक्त विधानसभा सीट पर उपचुनाव में कांग्रेस ने उनकी पत्नी ललिता देवी को प्रत्याशी बनाया। इसके बाद उनकी पुत्री कमलादेवी सिंह चुनाव जीतती रहीं। नरेशचंद्र की पुत्री पुष्पा देवी तीन बार रायगढ़ लोकसभा से सांसद रहीं।

रायगढ़ के राजा सुरेंद्र सिंह 1972 से 85 तक लगातार लैलूंगा से कांग्रेस के विधायक चुने गए। 1990 से यह सीट उनकी पुत्री उर्वशी सिंह को दी गई। जशपुर से दिलीप सिंह जुदेव, फिर उनके पुत्र युद्धवीर सिंह जुदेव विधायक बने। 2018 में उनकी पत्नी 2018 में चुनाव लड़ी, जिसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

कांग्रेस का परिवारवाद

राजपरिवारों के बाहर सतपथी परिवार में वंश की राजनीति जो शुरू हुई थी, उसे 1980 में विस्तार मिला। 1980 में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता नेमीचंद्र श्रीमाल के पौत्र स्वरूपचंद्र जैन व बिसाहूदास महंत के पुत्र डॉ. चरणदास महंत विधानसभा प्रत्याशी बनाए गए। वर्तमान में डॉ. चरण दास महंत विधानसभा अध्यक्ष है। उनकी पत्नी वर्तमान में सांसद है।

साजा की विधायक रही कुमारी देवी चौबे के बाद उनके पुत्र रविंद्र चौबे व प्रदीप चौबे विधायक रहे हैं। रविंद्र चौबे लगातार छह बार विधायक, कई बार कैबिनेट मंत्री व छत्तीसगढ़ विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी रहे। वर्तमान में वे मंत्री हैं। मुख्यमंत्री और कांग्रेस के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा लगातार तीसरी बार राज्यसभा के सदस्य निर्वाचित हुए हैं। उनके पुत्र अरुण वोरा दुर्ग क्षेत्र से वर्तमान में कांग्रेस विधायक हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम की पत्नी छबीला नेताम सांसद और उनके भाई शिव नेताम विधायक रहे हैं। अरविंद नेताम की बेटी प्रीति नेताम ने भी 2008 में विधानसभा चुनाव लड़ा।

दुर्ग जिला से वरिष्ठ नेता वासुदेव चंद्राकर के बाद उनकी पुत्री प्रतिमा चंद्राकर 1998 व 2008 में विधायक चुनी गईं। बस्तर में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता स्व. महेंद्र कर्मा का परिवार भी पूरी तरह राजनीति में है। झीरम हमले में कर्मा के निधन के बाद उनकी पत्नी देवती कर्मा विधायक बनीं। उनके पुत्र दीपक कर्मा भी सांसद चुनाव लड़ चुके है और वर्तमान में राजनीति में सक्रिय है।

परिवारवाद से भाजपा भी अछूती नहीं

कांग्रेस पर परिवारवाद का आरोप लगाने वाली भाजपा भी इससे अछूती नहीं है। बस्तर सांसद बलीराम कश्यप के पुत्र दिनेश कश्यप पिता की मृत्यु के बाद सांसद बने। बलिराम कश्यप के दूसरे पुत्र केदार कश्यप 2003 से लगातार विधायक व राज्य सरकार में मंत्री रहे। रायपुर सांसद रहे व वर्तमन में राज्यपाल रमेश बैस के भाई श्याम बैस को 1993 व 1998 के विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी बनाया गया।
भाजपा के वरिष्ठ नेता स्व. लखीराम अग्रवाल के पुत्र अमर अग्रवाल लगातार बिलासपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक निर्वाचित होते रहे हैं, मंत्री बने। 2018 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। सांसद पुन्नूलाल मोहले व उनका परिवार भी राजनीति में सक्रिय रहे।

स्व. दिलीप सिंह जूदेव सांसद और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रहे। उनके पुत्र युद्धवीर सिंह जूदेव चंद्रपुर से विधायक हैं। दिलीप सिंह जूदेव के भतीजे रणविजय सिंह जूदेव राज्यसभा सदस्य चुने गए हैं। तखतरपुर से विधायक रहे मनहरण पांडेय की पुत्री हर्षिता पांडेय भी भाजपा की राजनीति में सक्रिय है।

मुख्यमंत्री का परिवार भी

छत्तीसगढ़ में जीत की हैट्रिक बनाने वाले मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का परिवार भी राजनीति में सक्रिय है। उनके पुत्र सांसद रह चुके है। भांजा विक्रांत सिंह समेत सचिन बघेल भी राजनीति में सक्रिय हैं। यही नहीं पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी, उनकी धर्मपत्नी रेणु जोगी वर्तमान में उनके पुत्र अमित जोगी राजनीति में सक्रिय है।

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