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0  जल, जंगल और जमीन पर मंडराने लगा खतरा

0 संभावनाएंऔर संकट के बीच घिरा साल्हेवारा–छुईखदान: खनन बढ़ा, पर्यावरण और गांवों की चिंता बढ़ी

खैरागढ़। साल्हेवारा और छुईखदान क्षेत्र इन दिनों खनन गतिविधियों की तेज रफ्तार के साथ-साथ पर्यावरणीय चिंताओं और स्थानीय विरोध के कारण चर्चा में है। नचनिया, भाजीडोंगरी और जगमड़वा–हनाईबन–मरदकठेरा—ये तीन बड़े खनिज ब्लॉक नीलामी और आवंटन की प्रक्रिया पार कर अब आगे बढ़ चुके हैं। लौह और चूना पत्थर के समृद्ध भंडार इस इलाके को औद्योगिक निवेश के लिए आकर्षक बना रहे हैं, लेकिन लगातार बढ़ती खनन संभावनाएँ पर्यावरणीय संतुलन, जल संकट और ग्रामीण जीवन पर गहरा असर डालने की आशंका भी बढ़ा रही हैं।

आयरन और लाइमस्टोन ब्लॉकों में तेजी, लेकिन पर्यावरण पर मंडराया खतरा

नचनिया आयरन ओर ब्लॉक में 3.93 मिलियन टन और भाजीडोंगरी में 2.07 मिलियन टन अयस्क का भंडार दर्ज है। दोनों ब्लॉकों का सर्वे कार्य निजी कंपनियों को सौंपा जा चुका है। प्रशासन का कहना है कि अभी केवल सर्वे की अनुमति है, खनन नहीं। दोनों ब्लॉक घने वन क्षेत्र में आते हैं, इसलिए विशेषज्ञों का मानना है कि यहाँ खनन शुरू होने की स्थिति में जंगलों का कटाव, जंगली जीवों पर असर और भूजल स्तर में गिरावट जैसी गंभीर पर्यावरणीय चुनौतियाँ सामने आ सकती हैं।

इसी तरह जगमड़वा–हनाईबन–मरदकठेरा चूना पत्थर ब्लॉक, जहाँ 52.74 मिलियन टन का विशाल भंडार है, भविष्य में बड़े औद्योगिक निवेश को आकर्षित कर सकता है। यह ब्लॉक वनभूमि रहित जरूर है, लेकिन बड़े पैमाने पर चूना पत्थर खनन स्थानीय जल स्रोतों और कृषि पर दीर्घकालीन प्रभाव डाल सकता है।

क्षेत्र में विकास की संभावनाएं, पर किस कीमत पर?

खनन और उद्योगों के विस्तार से रोजगार, राजस्व और बुनियादी ढाँचे में वृद्धि की उम्मीद है। जिला खनिज अधिकारी भी मानते हैं कि ये ब्लॉक क्षेत्र को खनिज-आधारित औद्योगिक हब बना सकते हैं। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यदि उद्योगों का विकास पर्यावरणीय संतुलन, स्थानीय संसाधनों और ग्रामीणों की सहमति को ध्यान में रखे बिना होता है, तो यह विकास असंतुलित हो जाएगा।

छुईखदान में श्री सीमेंट विरोध के बाद नई खनन परियोजना की दस्तक

इन खनन परियोजनाओं में तेजी उसी समय हो रही है जब छुईखदान और आसपास के गांव श्री सीमेंट की प्रस्तावित माइंस और फैक्ट्री के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध कर चुके हैं। ग्रामीणों ने जलस्रोतों के खत्म होने, धूल प्रदूषण बढ़ने, कृषि पर नुकसान और संभावित विस्थापन को लेकर अपनी गहरी चिंता जताई थी।

स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि नई खनन परियोजनाएँ बिना पारदर्शिता और ग्रामसभा की सहमति के आगे बढ़ती हैं, तो यहाँ भी श्री सीमेंट जैसी स्थिति बन सकती है। ग्रामीणों को डर है कि बढ़ती खनन गतिविधियाँ जल संकट को और गहरा कर देंगी, जबकि जंगलों पर दबाव बढ़ने से वनाधारित जीवन और आजीविका खतरे में पड़ सकती है।

विशेषज्ञों का स्पष्ट कहना है कि यह पूरा बेल्ट खनन क्षमता के लिहाज से बेहद समृद्ध है, लेकिन इसकी कीमत पर्यावरण और सामाजिक संरचना को नहीं चुकानी चाहिए। खनन परियोजनाओं को केवल रोजगार और उद्योग के नाम पर आगे बढ़ाना, बिना वैज्ञानिक आकलन, पर्यावरणीय सुरक्षा और ग्रामसभा की सहमति के, आने वाले वर्षों में बड़े संकट खड़े कर सकता है।

साल्हेवारा–छुईखदान फिलहाल छत्तीसगढ़ का सबसे सक्रिय खनिज हॉटस्पॉट बन चुका है। संभावनाएँ बड़ी हैं, पर जोखिम भी उतने ही गंभीर। खनन से विकास तो संभव है, लेकिन तभी जब यह विकास प्रकृति, संसाधनों और स्थानीय समुदायों के अधिकारों की कीमत पर न हो। अन्यथा, श्री सीमेंट प्रकरण की तरह यहां भी संघर्षों और विरोधों का दौर लंबा चल सकता है।

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