सीजी क्रांति न्यूज/ खैरागढ़।
विधायक यशोदा वर्मा के करीबी मनराखन देवांगन को पछाड़कर जिला केसीजी कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कोमल दास साहू बन गए। उनके अध्यक्ष बनने से यह साबित हो गया कि नवाज खान का जलवा बरकरार है। वहीं संगठनात्मक मामले में विधायक यशोदा नीलांबर वर्मा एक बार फिर कमजोर साबित हुईं। पूर्व विधायक स्व. देवव्रत सिंह के बाद कोई सर्वमान्य नेता नहीं है। यही वजह है कि दूसरे जिले के नवाज खान की यहां दमदार मौजूदगी देखने को मिल रही है।
नवाज खान आक्रमक तेवर के नेता हैं। जनता और कार्यकर्ताओं से सीधे संवाद, संपर्क और समय पड़ने पर सहयोग करना उनकी लोकप्रियता का पैमाना है। साथ ही उन्होंने यह भी साबित किया है कि हाईकमान के साथ सामंजस्य और संबंध स्थापित करने में भी वे माहिर खिलाड़ी है। तीसरी बड़ी खासियत यह है कि वे जनता की नब्ज जानते हैं। लिहाजा जिले के संगठन में उनका दबदबा बना हुआ है। उनकी कमियां भी ढेर सारी है लेकिन राजनीति में बने रहने के लिए जो खूबियां होनी चाहिए, वह नवाज के व्यवहार और कार्यशैली में दिखती है, जिसके सामने उनकी कमियां दब जाती है। नवाज की नवाबी उसकी दबंग शैली में छुपी है। कार्यकर्ता उसके मुरीद है। लेकिन उनकी इसी शैली के कारण अविभाजित जिले में निर्वाचित विधायक भी खुद को बौने महसूस करते रहे हैं। यही वजह है कि नवाज से विधायकों की पटरी नहीं बैठती और अंदरखाने में कड़वाहट कम होने का नाम नहीं ले रहा है।
राजनीति की रपटीली राह में विधायक की सरलता कमजोरी साबित हो रही
विधायक यशोदा वर्मा व्यक्तिगत तौर पर काफी सरल, सहज और अच्छे स्वाभाव वाली नेता है। यही उनका स्ट्रेंथ है। पर राजनीति की रपटीली राह में उनकी यह सरलता कमजोरी साबित हो रही है। वे खुद बड़ा आंदोलन खड़ा नहीं कर पा रही है। सरकार के खिलाफ मुखर नहीं है। मिशन संडे को आगे रखकर वे जनहित से जुड़े विकास कार्यों के करोड़ों रुपयों के प्रोजेक्ट को छोड़ लाखों रुपयों के भ्रष्टाचार और गड़बड़ियों पर प्रदर्शन करती रही हैं।
जीत की दो वजह, पहला जिला निर्माण, दूसरा विक्रांत के खिलाफ एंटीकंबेसी
विधायक यशोदा यह मुगालते में न रहे कि वे भाजपा के दो दिग्गजों को पराजित कर चुकी है। राजपरिवार से अलग हटकर वे ऐसी पहली नेता हैं जो दो बार विधायक चुनी गईं है। पहली जीत उन्हें सत्ता-सरकार और जिला निर्माण के कारण मिला तो दूसरी जीत उन्हें भाजपा प्रत्याशी विक्रांत सिंह को पराजित करने की मंशा पाले जनता और बागी भाजपा कार्यकर्ताओं के कारण मिली है। यानी दोनों ही जीत यशोदा नीलांबर वर्मा को खुद के पुरुषार्थ के दम पर नहीं मिली है। समय और भाग्य ने उनका साथ दिया। अब समय है, कि अपने कर्म, व्यवहार और कुशल रणीनीति तैयार कर जिले में कांग्रेस पार्टी के भीतर ही अपनी बेहतर छाप छोड़े और प्रभावी बने। लेकिन ऐसा होते नहीं दिख रहा है।
शहर तक ही सीमित रहे मनराखन, कोमल को करीबियत का मिला लाभ
खैर कोमल साहू कांग्रेस के पुराने कार्यकर्ता है, किंतु जिला कांग्रेस अध्यक्ष की दौड़ कोमल के प्रतिद्धंदी रहे खैरागढ़ के मनराखन देवांगन काफी सक्रिय और प्रभावशाली नेता हैं। उन्होंने राजनीति जीरो से शुरू की। छात्र राजनीति से उन्होंने सार्वजनिक जीवन की सफल शुरुआत की। तीन बार भाजपा की सत्ता में पार्षद रहे। कांग्रेस की सत्ता में उन्हें पहली बार हार का सामना करना पड़ा। वे विधायक यशोदा वर्मा के करीबी नेता हैं। विधायक के निर्देशन में मिशन संडे संगठन खड़ा किया। लेकिन सक्रियता सिर्फ खैरागढ़ तक सीमित रही। जैसे ही वे छुईखदान पहुंचे, वे विवादों में घिर गए। पार्टी नेताओं ने आपस में ही एक दूसरे पर खूब किचड़ उछाला। जिससे विधायक के दामन में भी दाग के छिटे पड़े। उसके बाद मिशन संडे चुपके से निष्क्रिय हो गया। मनराखन खुद को सर्वमान्य नेता बनाने में लगे रहे। उनकी गतिविधियां शहर तक ही सीमित रही। अखबारी सुर्खियों में वे अपनी लोकप्रियता तलाशने और तराशने लगे। लिहाजा वे जमीनी सच्चाई और भ्रमपूर्ण वातावरण को भांपने में चुक गए। यह झूठ भी हो सकता है क्योंकि मनराखन तेज दिमाग वाले और पढ़े- लिखे नेता है लेकिन कई बार खुद को काबिल समझना या समझाना, असफलता की ओर मोड़ देता है।
कांग्रेस में राजनीति के तीन शक्तिकेंद्र
बहरहाल खैरागढ़ में कांग्रेस का वर्तमान राजनीतिक फिजा को देखकर यही लग रहा है कि पूर्व विधायक देवव्रत सिंह की मृत्यु के बाद कांग्रेस में कोई सर्वमान्य नेता नहीं है। कांग्रेस तीन गुटों में बंटा हुआ है। पहला नवाज खान, दूसरा विधायक गुट और तीसरा गुट पूर्व विधायक देवव्रत सिंह के समर्थकों का है। जो भविष्य के लिए शताक्षी सिंह को स्थापित करने में लगे हैं।
