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बैताल रानी घाटी : हसीन वादियों में मौजूद इस घाटी का खूनी इतिहास, कैसे पड़ा ये नाम…!

बैताल रानी घाटी
बैताल रानी घाटी का अद्भुत नजारा

सीजी क्रांति टीम/खैरागढ़. हसीन वादियों में बहुत से गहरे राज छिपे होते हैं. छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के छुईखदान ब्लॉक में ऐसी ही एक जगह हसीन वादियों से घिरी हुई है जिसका नाम बैताल रानी घाटी है.

ऊँची-ऊँची पहाड़ियाँ, हरे-भरे घने जंगल के बीच बैताल रानी घाटी के खतरनाक मोड़ एवं गहरी खाईयां वाहनों को लील जाने के लिये हरदम तैयार रहती है. यह घाटी भय, रोमांच, आध्यात्म के साथ साथ मन को प्रफुल्लित करने वाले दृश्यो का भी सुखद अहसास कराती है. यही कारण है कि इन दिनों बड़ी संख्या में पर्यटक बैताल रानी घाटी की ओर आकर्षित हो रहे है. छत्तीसगढ़ की सबसे खूबसूरत और खतरनाक केशकाल, चिल्फी जैसी घाटियों में अब राजनांदगांव जिले में स्थित बैताल रानी घाटी का भी नाम शुमार हो गया है.

बैताल रानी घाटी
बैताल रानी घाटी

बैताल रानी घाटी का इतिहास : धमधा के राजा ने इसी घाटी में अपनी रानी के कर दिये थे तीन टुकड़े !

इतिहास का अपना महत्व होता है. किसी भी स्थान के नाम के पीछे भी कोई कहानी या इतिहास जरूर होता है. इतिहास के कारण ही हम किसी भी प्राचीन घटना या किसी क्षेत्र विशेष के बारे में अच्छे से जान सकते हैं. इसी तरह का इतिहास बैताल रानी का भी है.

सीजी क्रांति डॉट कॉम की टीम बैताल रानी घाटी के नामकरण और इसके पीछे का इतिहास जानने बसन्तपुर स्थित प्राचीन बैताल रानी मंदिर पहुँची. घाटी क्षेत्र के जानकारों और स्थानीय ग्रामीणों ने इस मंदिर और घाटी में छुपे कई गहरे राज को उजागर करते हुये इससे जुड़े कई चौंकाने वाली जानकारी हमारी टीम को दी.

बैताल रानी की प्रतिमा

किवदंती के अनुसार बैताल रानी मध्यप्रदेश के लांजी राज की राजकुमारी थी, जिनका विवाह धमधा (दुर्ग) के राजा हरिचंद्र के साथ हुआ था. राजा हरिचंद्र के ठाकुरटोला के राजा के साथ मधुर संबंध थे. राजा और रानी को इस घाटी का मनोरम प्राकृतिक वातावरण काफी भाता था. अक्सर धमधा का राजा ठाकुरटोला में आकर रुका करते थे.

जनश्रुति के अनुसार बैताल रानी को एक चरवाहे से प्रेम हो गया था. रानी छुप-छुप कर चरवाहे के साथ मिला करती थी. इसी बीच राजा हरिचंद को गुप्तचरों के माध्यम से बैताल रानी और चरवाहे के प्रेम संबंध की सूचना मिली. राजा हरिचंद ने इस बात की पुष्टि हेतु अपने गुप्तचरों को बैताल रानी और चरवाहे के प्रेम संबंध की पुष्टि के लिये नियुक्त किया. गुप्तचरों ने इस बात की पुष्टि कर इसकी जानकारी राजा हरिचंद को दी.

बैताल रानी घाटी के मनोरम प्राकृतिक दृश्य का लुत्फ़ उठाते पर्यटक

इसी बीच बैताल रानी और चरवाहे को राजा के नियुक्त गुप्तचरों की सूचना मिल गई. जिसके बाद रानी और चरवाहे ने महल से भागने की योजना बनाई. एक दिन बैताल रानी ने मौका पाकर उस चरवाहे के साथ महल से भाग गई. इसकी सूचना राजा तक पहुंची तो उन्होंने बैताल रानी की खोजबीन के लिये अपने सैनिकों को अलग अलग दिशा में भेजकर स्वयं कुछ सैनिकों के साथ इस घाटी की ओर आ गये. राजा हरिचंद को बसन्तपुर के एक पर्वत में बैताल रानी और चरवाहे के छिपे होने की सूचना मिली.

जनश्रुति के अनुसार राजा हरिचंद्र ने बैताल रानी और चरवाहे को इसी घाटी में पकड़ा था और क्रोधित राजा ने बैताल रानी का सर धड़ से अलग कर उसके तीन टुकड़े कर दिये थे. राजा ने उस चरवाहे को भी मौत के घाट उतार दिया था.

मौत के बाद पत्थर में बदल गई बैताल रानी !

बैताल रानी मंदिर की स्थापना को लेकर जब हमारी टीम ने ग्राम बसन्तपुर के 90 वर्षीय सबसे उम्रदराज बुजुर्ग प्यारी मरकाम से बात की तो उन्होंने अपनी लड़खड़ाती ज़ुबान से बताया कि “सदियों पहले आदमी के खून का रंग सफेद होता था और सफेद खून वाला आदमी मरने के बाद पत्थर में तब्दील हो जाता था. बैताल रानी का खून भी सफेद था, इसलिए वो पत्थर बन गई थी. जिसके बाद स्थानीय लोगों ने उस पत्थर को विधिवत स्थापित इस घाटी के पर्वत में स्थापित किया था”.

पहले इसी स्थान पर विराजित थी बैताल रानी की मूर्ति

स्थानीय ग्रामीणों ने हमारी टीम को घाटी के उस पर्वत पर लेकर गए जहाँ पूर्व में बैताल रानी की मूर्ति स्थापित थी. पूर्व में यहाँ घने जंगल के एक चबूतरे में एक पेड़ के नीचे बैताल रानी की मूर्ति स्थापित थी. चबूतरे के नजदीक ही दो समाधि नुमा स्थान बने नजर आते है, जिसे देखकर ऐसा लगता है जैसे इसमें किसी दो लोगों के शव को दफनाया गया हो.

इसके बाद जब हमने बैताल रानी की मूर्ति को देखने की इच्छा जताई तो ग्रामीणों ने हमें मुख्य मार्ग के किनारे एक झोपड़ीनुमा अस्थाई मंदिर की ओर ले गये. ग्रामीणों ने बताया कि सड़क निर्माण होने से पूर्व में स्थापित मूर्ति के स्थान तक जाने का मार्ग अवरुद्ध हो गया जिसके कारण तीन साल पहले इस मूर्ति को मुख्य मार्ग के किनारे एक पेड़ के नीचे झोपड़ीनुमा अस्थाई मंदिर में रखा गया है.

बैताल रानी का कुटियानुमा मंदिर

मूर्ति देखने की प्रबल इच्छा से जब हमने मंदिर में प्रवेश किया तो वहाँ बैताल रानी की तीन हिस्सों में विभक्त मूर्ति को देखकर चौंक गये ! अभी तक हम ग्रामीणों की बात को सिर्फ एक किवदंती ही मानकर चल रहे थे, लेकिन बैताल रानी की मूर्ति के दर्शन के बाद अब हमें भी इस किवदंती पर कुछ-कुछ भरोसा होने लगा. मूर्ति के पास ही एक चरण पादुका भी रखी हुई है. प्रथम दृष्ट्या ये मूर्ति अति प्राचीन नजर आती है. इसके साथ ही आसपास बैताल रानी घाटी के इस किवदंती से जुड़े अवशेषों की अगर पुरातत्व विभाग से जाँच कराई जाये तो इस किवदंती से जुड़े कई ऐतिहासिक तथ्य सामने आ सकते हैं.

बैताल रानी घाटी का शानदार दृश्य

रायगढ़ के हर्ष का बैताल रानी घाटी का ड्रोन से शूट वीडियो हो रहा वायरल

रायगढ़ के हर्ष वर्मा ने अपने ड्रोन से बैताल रानी घाटी का अद्भुत वीडियो फुटेज शूट की है, जो इस वक्त सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही है. हर्ष के इस वीडियो के वायरल होने के बाद से ही बड़ी संख्या में पर्यटक बैताल रानी घाटी पहुँच रहे है.
मूल रूप से बेमेतरा जिले के साजा ब्लॉक के सुवरताला गांव के रहने वाले हर्ष राइडर हैं और अपने मोटर सायकल से पूरे छत्तीसगढ़ को एक्सप्लॉयड कर रहे हैं. हर्ष बीते 2 साल से छत्तीसगढ़ के पर्यटन स्थलों का ड्रोन से वीडियो फुटेज शूट कर अपने यूट्यूब चैनल छत्तीसगढ़ राइडर के माध्यम से पूरे देश में प्रचार कर रहे हैं.

आप हर्ष के ऐसे ही अन्य अद्भुत वीडियो उनके यूट्यूब चैनल छत्तीसगढ़ राइडर में देख सकते हैं.

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2 thoughts on “बैताल रानी घाटी : हसीन वादियों में मौजूद इस घाटी का खूनी इतिहास, कैसे पड़ा ये नाम…!”

  1. पुजारी जी ने बताया है कि बैताल रानी नौकर से साथ भागी नहीं थी बौताल रानी अपने मायके का रही थी तो रास्ते में उनके नौकर मिले और रानी को अकेला जाता देखा उनके नौकर उन्हें मायके छोड़ने घोडे में सवार होकर जा रहे थे थक गए थे तो घाटी (बैताल रानी घाटी) पर आराम कर रहे तो राजा को अपनी पत्नी पर शक हुआ (जो कि रानी सती थी पवित्र थी) और राजा ने गुस्से में आकर रानी का टीन टुकड़ा कर दिए जो की बाद में मूर्ति में बदल गई।

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