सीजी क्रांति/छुईखदान। छुईखदान नगर पंचायत में लचर प्रशासनिक और भ्रष्ट व्यवस्था में गुम अध्यक्ष और पार्षदों की गैरजागरूकता का जीता जागता उदाहरण स्टेट हाईवे में बन रहा शॉपिंग कांपलेक्स हैं। यहां महज 8 दुकानों को बनाने में 6 साल गुजर गए लेकिन अब तक यहां कांपलेक्स अधूरा है। इन दुकानों के निर्माण पूर्ण होने से पहले ही नगर पंचायत प्रशासन ने नीलामी कर दी। जिन्होंने नीलामी में दुकानें खरीदी, उनसे ढाई लाख रूपए भी वसूल लिए। अब दुकानों के खरीदार भटक रहे हैं। उनका पैसा तो गया ही, दुकानें भी नसीब नहीं हो रहा है।
हैरानी की बात यह है कि इन दुकानों के निर्माण के लिए तीन बार टेंडर करना पड़ा। ठेकेदारों को नोटिस जारी करने की औपचारिकताएं भी पूरी की गई लेकिन किसी भी ठेकेदार पर दंडात्मक कार्रवाई नहीं की गई। उल्टा उन्हें अधूरा काम किए जाने के बाद भी भुगतान कर दिया गया।
बता दें कि कॉमर्शियल कांपलेक्स के लिए 6 साल पहले मार्च 2017 में 8 दुकानों के निर्माण के लिए 33 लाख 24 हजार रूपए का टेंडर निकाला गया। पहला वर्क आर्डर मार्च 2017 में परेश बख्शी को जारी किया गया। वर्क आर्डर में स्पष्ट निर्देश है कि निर्माण कार्य 6 माह में पूर्ण करना है। वहीं दूसरी बार वर्क आर्डर दिसंबर 2020 को अभिजीत सिंह को जारी किया गया। उसके बाद वर्तमान में छुईखदान के ही किसी सनी सरदार को वर्क आर्डर जारी किया गया है। लेकिन करीब दो साल गुजर जाने के बाद भी काम पूरा नहीं हुआ है।
दिलचस्प यह है कि सनी सरदार को अधूरे कार्य का भुगतान भी कर दिया गया है। लिहाजा काम अधूरा छोड़ देने से सीधे तौर पर नगर का विकास प्रभावित होता है। इसके अलावा उन खरीदारों ने जिन्होंने करीब 5 लाख रूपए में यह दुकानें खरीदी थी, उनका एडवांस ढाई लाख रूपए 5 साल से नगर पंचायत के खाते में जमा है। एक तरफ दुकान नहीं मिला वहीं दूसरी ओर उनका पैसा भी जाम हो गया है।
यह कांपलेक्स खैरागढ़-छुईखदान स्टेट हाईवे में स्थित है। इन छह सालों में किसी भी जनप्रतिनिधि ने इस मुद्दे पर आवाज बुलंद नहीं की। वहीं नगर पंचायत में कई सीएमओ आए और गए लेकिन किसी ने भी इस अधूरे कांपलेक्स निर्माण को पूर्ण कराने में कड़ाई नहीं बरती।
नेताओं के सांठगांठ से ही मिलता रहा ठेका
बता दें कि नगर पंचायत में सीएमओ और अध्यक्ष व पार्षदों की सहमति के बाद ही ठेकेदारों को कार्यों के लिए जारी निविदा प्रपत्र दिया जाता है! यानी किस ठेकेदार को क्या-क्या काम मिलेगा, सबकुछ तयशुदा होता है। सीधे तौर पर ठेकेदारों को जनप्रतिनिधियों का संरक्षण होता है।
यही कारण है कि काम अधूरा करने की बात हो या वर्क आर्डर मिलने के बाद भी ठेकेदार अपनी मनमानी चलाते हैं। अधिकारी भी नियमानुसार किसी भी ठेकेदार पर दंडात्मक कार्रवाई करने से परहेज करते हैं। कार्यालयीन रिकार्ड मेंटेन करने के लिहाज से महज नोटिस जारी करने की औपचारिकताएं की जाती है। नेताओं और अधिकारियों की इस सांठगांठ के कारण आम जनता परेशान होती है।
इस पूरे मामले में नगर पंचायत अध्यक्ष पार्तिका संजय महोबिया ने कहा कि यह मामला हमारे संज्ञान में है। नगर पंचायत में ठेकेदार ठेका लेने के बाद समय पर काम पूरा नहीं कर रहे हैं। यहां स्थायी सीएमओ की भी व्यवस्था नहीं है। जो आते हैं, उनका काम परफार्मेंस बेस्ड नहीं होता। इसकी वजह से विकास कार्य प्रभावित होते हैं। इस संबंध में कलेक्टर ने भी बैठक ली है। जल्द ही समाधान कर दिया जाएगा।