सियासत: तानों के शोर में शांत लोधी समाज, कैसे शुरू हुआ लोधी समाज की राजनीति, कैसे परवान चढ़ा, अब कैसे मिल रही चुनौती, पढ़ें पूरी खबर

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सीजी क्रांति न्यूज/खैरागढ़। खैरागढ़ विधानसभा सीट पर पहली बार लोधी समाज ने अपनी ताकत का अहसास राज्य के पहले चुनाव में दिखाया था। 2003 के पहले विधानसभा चुनाव में क्षेत्र की राजनीति में जातिवाद का पहला बड़ा प्रयोग कमलेश्वर लोधी ने शुरू किया। जितनी कुशलता से कमलेश्वर लोधी ने राजनीति बिसात बिछाई और समाज को राजनीतिक रूप से एकजुट और जागरूक किया, ऐसा उससे पहले कभी नहीं हुआ। उन्होंने तब के कद्दावर नेता देवव्रत सिंह और सिद्धार्थ सिंह के प्रतिद्धंद्धी होने के बाद भी सम्मानजनक वोट हासिल कर लोधी समाज को उसकी शक्ति का अहसास करा दिया। तभी से राजनीतिक दलों के कान खड़े हुए। और 2007 में भाजपा ने लोधी प्रत्याशी देकर जातिवाद का पहला दांव खेला। जो सफल भी रहा। उसके बाद लोधीवाद राजनीति का सफल हथियार बन चुका है। लगातार 4 विधानसभा चुनावों में कांग्रेस-भाजपा से लोधी समाज से उम्मीदवार बने।

खैरागढ़ सीट में जातिवाद का पहला प्रयोग भाजपा ने 2007 में किया। और इसका अंत भी भाजपा ने 2023 में सामान्य वर्ग से विक्रांत सिंह को प्रत्याशी बनाकर किया। अब कांग्रेस भी सामान्य सीट से लोधी समाज से उम्मीदवार बनाए जाने का खुला विरोध कर रही है। लोधी समाज के नेताओं पर जातिवाद और उनकी योग्यता तक में सवाल उठाए जा रहे हैं।

आश्चर्य यह है कि खैरागढ़ विधानसभा में आजाद भारत के बाद से ही परिवारवाद और वंशवाद की राजनीति का वर्चस्त रहा है। लेकिन इसका विरोध कांग्रेस नेताओं ने तब नहीं किया जब देवव्रत सिंह रहे। यही हाल भाजपा में भी है जब विक्रांत सिंह को टिकट दिया गया है। जातिवाद के विरोध और अंतर्कलह के बीच लोधी समाज शांत है। समाज की शांति रहस्यमयी बनी हुई है। क्योंकि यह तो तय है कि खैरागढ़ सीट में लोधी समाज के वोटर्स ही निर्णायक भूमिका निभाएंगे। हालांकि बीते दो साल से साहू समाज ने खुद को लोधी समाज के बाद दूसरा विकल्प के रूप में पेश कर रही है।

फिलहाल भाजपा ने 2007 में जिस जातिवाद को जन्म दिया था, उसे खत्म कर दिया। अब कांग्रेस की बारी है। क्योंकि कांग्रेस नेता लोधी समाज से उम्मीदवार बनाए जाने के विरोध में छुईखदान में प्रेसवार्ता आयोजित कर अपनी आपत्ति जता चुकी है। वे यही नहीं रूके राजधानी रायपुर पहुंचकर वहां प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज व विधानसभा अध्यक्ष चरणदास महंत तक से अपनी शिकायत व दुखड़ा सुना चुके हैं।

इधर कांग्रेस में अब भी विधायक पद के दावेदारों में यशोदा नीलांबर वर्मा, गिरवर जंघेल और नए चेहरे के रूप में कविता जंघेल का नाम तेजी से सामने आया है। इस बीच लगातार समाज पर हो रहे राजनीतिक हमले से आहम लोधी समाज का रूख क्या होगा, यह दिलचस्प होगा। हालांकि लोधी समाज खैरागढ़ सीट से अपनी राजनीतिक वर्चस्व को इतनी आसानी से कमजोर नहीं होने देगा। हालांकि यह भी भविष्य के गर्भ में है कि लोधी समाज के वोटर्स किसके माथे पर विजय तिलक लगाएगी और किसे पराजय का स्वाद चखाएंगे।

2008 के बाद कांग्रेस-भाजपा में लोधी उम्मीदवार ही रहे

कांग्रेस और राजपरिवार के इस अभेदगढ़ खैरागढ़ को पहली बार 2007 में हुए उप चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार कोमल जंघेल ने भेदा। कोमल जंघेल की जीत में भाजपा के परम्परागत वोटों के अलावा उनके समाज के समर्थन का भी बहुत बड़ा योगदान था। 2008 के चुनाव में अपने प्रतिद्वंदी कांग्रेस प्रत्याशी मोतीलाल जंघेल को हरा कर कोमल जंघेल दूसरी बार विधायक बने। यही से कांग्रेस-भाजपा में लोधी समाज से प्रत्याशी उतारने की परंपरा शुरू हुई।

2013 के चुनाव में यह सीट पुनः कांग्रेस के कब्जे में चली गयी और कोमल जंघेल को हराकर गिरवर जंघेल विधायक बने। 2018 के चुनाव में फिर से भाजपा और कांग्रेस दोनों ने लोधी समाज के उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा और दो परम्परागत प्रतिद्वंदी कोमल जंघेल और गिरवर जंघेल आमने-सामने थे। इस बार देवव्रत सिंह छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस (जोगी) के प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतरे।

2003 के बाद पहली बार क्षेत्र में त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति निर्मित हुई थी। अनुभवी देवव्रत सिंह अपने सधे हुए चुनावी प्रबंधन के कारण जनमत को अपने पक्ष में करने में सफल हुए। त्रिकोणीय संघर्ष में उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी कोमल जंघेल को 870 मतों से पराजित कर न केवल एक नया इतिहास रचा, बल्कि अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा पुनः प्राप्त कर ली।

इस चुनाव में प्रदेश में प्रचण्ड कांग्रेस लहर के बावजूद कांग्रेस प्रत्याशी गिरवर जंघेल तीसरे स्थान पर पिछड़ गये थे। देवव्रत सिंह के निधन के बाद 2022 में हुए उपचुनाव में पांचवी बार भाजपा के कोमल जंघेल और कांग्रेस की यशोदा वर्मा के बीच मुकाबला हुआ। जिसमें कांग्रेस ने यह सीट जीती। यानी 2008 से खैरागढ़ सीट में कांग्रेस-भाजपा दोनों ही दलों से लोधी समाज का उम्मीदवार मैदान में उतारा गया।


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1 thought on “सियासत: तानों के शोर में शांत लोधी समाज, कैसे शुरू हुआ लोधी समाज की राजनीति, कैसे परवान चढ़ा, अब कैसे मिल रही चुनौती, पढ़ें पूरी खबर”

  1. कमलेश्वर लोधी ने अपनी राजनीतिक जीवन का बलिदान दे दिया निर्दलीय चुनाव लड़कर कमलेश्वर लोधी ऐसे पहले व्यक्ति है जिसने हिम्मत दिखाई राज-परिवार और पार्टीवाद से लड़ने की ।कमलेश्वर लोधी ने सभी दलों को मजबूर कर दिया कि खैरागढ़ विधानसभा में लोधी प्रत्याशी ही विजयश्री हासिल कर सकते ।

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