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सियासतः महज 28-29 की उम्र में कोमल जंघेल ने लड़ा था विधानसभा चुनाव ! 47 साल बाद खैरागढ़ में खिलाया कमल

file photo

सीजी क्रांति/खैरागढ़। पूर्व संसदीय सचिव व विधायक कोमल जंघेल ने एक समय जनता दल के खिलाफ भी चुनाव लड़ा था। खैरागढ़ भाजपा के आधार स्तंभ रहे कोमल कोठारी और तब के लोकप्रिय नेता रानी रश्मि देवी सिंह और महज 28-29 वर्ष की आयु में कोमल जंघेल ने निर्दलीय पर्चा दाखिल किया था। उन्होंने कितना मत हासिल किया, इसकी स्पष्ट जानकारी नहीं है। तब भाजपा और जनता दल में गठबंधन हुआ था। गन्नालाल चंदेल ने जनता दल से चुनाव लड़ा था! जानकारों के अनुसार तब कांग्रेस की रानी रश्मि देवी सिंह ने 29 हजार 973 वोट और कोमल कोठारी ने 17 हजार 43 मत हासिल किया था! कोमल जंघेल ने पंचायत स्तर से विधानसभा तक की यात्रा पूरी की।

2007 में जब खैरागढ़ के विधायक रहे देवव्रत सिंह ने लोकसभा चुनाव जीता तो विधानसभा सीट खाली हो गई। तब खैरागढ़ विधानसभा उप चुनाव में कोमल जंघेल को प्रत्याशी बनाया गया। हालांकि तब अधिवक्ता टीके चंदेल का भी नाम दौड़ में था। एक समय ऐसा भी आया कि टीके चंदेल को टिकट मिलने की खबर के बाद आतिशबाजी और श्री चंदेल को बधाई संदेश भी मिलने शुरू हो गए, लेकिन अंतिम दौर में कोमल जंघेल का नाम फाईनल हो गया।

कोमल जंघेल को जब विधानसभा की टिकट मिली तब वे जिला पंचायत सदस्य थे। तब के विधानसभा उप चुनाव में कांग्रेस से देवव्रत सिंह की पत्नी पदमा सिंह को टिकट मिला। भाजपा ने महल से हल टकराएगा, कोमल विधानसभा जाएगा, महल से हल की लड़ाई, राजा और रंक, पैसा और पसीना जैसे नारे दिए। अततः कोमल जंघेल चुनाव जीत गए। कोमल जंघेल वहीं नेता हैं, जिन्होंने खैरागढ़ में 47 साल बाद राजपरिवार के मिथक को तोड़ा था। साल 2007 में उन्होंने पहली बार राजा देवव्रत सिंह की पत्नी पद्मा सिंह को शिकस्त देकर खैरागढ़ में कमल खिलाया।

दरअसल, साल 1960 से 1993 के बीच हुए खैरागढ़ विधानसभा के चुनाव में हमेशा से रानी रश्मि देवी सिंह जीतती रहीं। उनके निधन से 1995 में सीट खाली हुई तो उपचुनाव में उनके ही बेटे देवव्रत सिंह ने जीत दर्ज की। इसके बाद 1998 और 2003 के चुनाव में भी देवव्रत सिंह ने बाजी मारी।

2007 में खैरागढ़ विधानसभा उप चुनाव में भाजपा का परचम लहराने के बाद 2008 में कोमल जंघेल का मुकाबला कांग्रेस के मोतीलाल जंघेल से हुआ। उस चुनाव में कोमल जंघेल को 62 हजार 437 और मोतीलाल जंघेल को 42 हजार 893 वोट मिले थे। इस तरह 19 हजार 544 वोटों से एक बार फिर कोमल जंघेल ने आम चुनाव में अपनी जीत दर्ज की। हालांकि 2013 के चुनाव में कांग्रेस के गिरवर जंघेल ने उन्हें 2190 वोट से शिकस्त दी।

2018 के आमचुनाव में कोमल को लगातार दूसरी बार हार का सामना करना पड़ा तब जोगी कांग्रेस से देवव्रत सिंह चुनाव मैदान में थे। महज 870 वोटों से कोमल जंघेल पराजित हुए थे। मतगणना रात तक चली और खैरागढ़ विधानसभा का परिणाम सबसे आखिरी में आया था। इसमें देवव्रत को 61516 और कोमल को 60646 वोट मिले थे। जबकि सीटिंग एमएलए गिरवर जंघेल 31 हजार 811 वोट पाकर तीसरे स्थान पर थे।

2021 में जनता कांग्रेस पार्टी के विधायक देवव्रत सिंह की आकस्मिक मौत हो गई। उनकी मौत के बाद 2022 में उप चुनाव हुए। इस चुनाव में कोमल जंघेल को कांग्रेस की यशोदा वर्मा से हार का सामना करना पड़ा। इस तरह कोमल जंघेल दो चुनाव जीते, पर तीन चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। प्रदेश की राजनीति में कोमल जंघेल विरले नेता है जिन्हें लगातार पांच बार विधानसभा की टिकट मिली। जिसमें वे लगातार दो बार जीत और तीन बार हार चुके हैं।

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