खैरागढ़ विधानसभा उपचुनाव: न मोदी न भूपेश, 2,616 वोटर्स ने कांग्रेस—भाजपा को नकारा

फाइल फोटो

सीजी क्रांति/खैरागढ़। खैरागढ़ विधानसभा उपचुनाव में 2616 वोटर्स ने नोटा में वोट डालकर कांग्रेस—भाजपा समेत अन्य 8 प्रत्याशियों को सिरे से नकार दिया। इन वोटर्स ने यह संदेश दिया है कि उन्हें कोई प्रत्याशी पसंद नहीं आया। उन्होंने राजनीतिक दलों की रिती—नीति को भी दुत्कार दिया। यानी केंद्र में पीएम नरेंद्र मोदी और राज्य में सीएम भूपेश बघेल के कार्य भी इन्हें लुभा न सके।

हाल ही में उत्तरप्रदेश में हुए विधानसभा के आम चुनाव में भी 62 ऐसी विधानसभा सीटें रही जहां कांग्रेस उम्मीदवारों से अधिक वोट नोटा को पड़े। करीब 6 लाख 37 हजार 331 वोट नोटा के हिस्से में गए। ये सत्य है तो यह राष्ट्रीय स्तर पर बड़ा सवाल खड़ा करता है।

खैर…खैरागढ़ के परिप्रेक्ष्य में बात करें तो जिन लोगों ने वोट नहीं दिया है, उनकी मंशा को भांपा नहीं जा सकता कि उनके वोट किसके पक्ष में पड़ते! इसलिए जिन्होने वोट नहीं दिया, उनकी अपनी अलग—अलग तरह की वजहें हो सकती है लेकिन नोटा पर वोट डालने वालों ने पूरी ईमानदारी से अपने संवैधानिक अधिकार का उपयोग करते हुए कर्तव्यों का पालन किया। तपती दोपहरी में वोट डालकर अपना अभिमत प्रकट किया। नोटा पर बटन दबाने वालों ने अपना रूख स्पष्ट कर दिया। इसलिए नोटा के वोटर्स पर चिंतन जरूरी है। इन पर चर्चा होनी ही चाहिए।

कांग्रेस—भाजपा के आलावा अन्य 8 उम्मीदवारों से अधिक वोट नोटा के हिस्से में गए हैं। नोटा में कुल मतदान का 1.58 प्रतिशत वोट हुआ है। आंकाड़ों में जरूर कांग्रेस 20,176 वोट से जीत गई और भाजपा इतने ही वोटों से हार गई लेकिन वास्तव में कांग्रेस—भाजपा दोनों ही 2,616 नोटा के वोटों से हार गई है। इतने लोगों ने दोनों राष्ट्रीय दल व उनके प्रत्याशियों को पसंद नहीं किया। क्यों पसंद नहीं किया। यह विचारणीय सवाल है।

खैरागढ़ विधानसभा उप चुनाव में जो वोट पड़े, वे परंपरागत वोटर्स हो सकते हैं या फिर राजनीतिक दलों के लुभावने वायदे और प्रलोभनों में आकर भी वोट दिए हो लेकिन जिन्होंने नोटा में बटन दबाया है, वे ऐसे लोग हैं जिन्हें प्रथम दृष्टया तो प्रत्याशी पसंद नहीं आए। न वे पार्टिया पसंद आई जिन्होंने देश में 70 साल सरकार चलाई। ये मौजूदा केंद्रीय सरकार से भी प्रभावित नहीं हैं। प्रदेश की बात करें तो यह प्रदेश में 15 साल सत्ता में रही भाजपा के लिए चिंता का विषय होना चाहिए कि उन्होंने अपने इतने लंबे कार्यकाल में खैरागढ़ में कोई ऐसा एक भी नजीर पेश नहीं कर पाए! जो नोटा में बटन दबाने वालों को रोक सके।

10 में 7 प्रत्याशियों को 1 फीसदी भी वोट नहीं मिले

फॉरवर्ड डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रत्याशी विप्लव चूरन साहू 2,412 वोट हासिल किया। यह कुल मतदान का 1.45 मत है। वे चौथे स्थान पर रहे। इसके बाद अन्य 7 प्रत्याशियों ने एक फीसदी वोट तक हासिल नहीं कर पाया। जोगी कांग्रेस व निर्दलीयों में सर्वाधिक वोर्ट हासिल करने वालों में शिवसेना समर्थित निर्दलीय प्रत्याशी नीतिन भांडेकर ने करीब 0.85 फीसदी मत हासिल किए।

इनमें सबसे शर्मनाक हार जोगी कांग्रेस की हुई। जनता ने जोगी कांग्रेस के अस्तित्व को ही नकार दिया। जनता ने यह साबित कर दिया कि खैरागढ़ में जोगी कांग्रेस नहीं बल्कि देवव्रत सिंह के नाम पर वोट पड़े थे। उन्हें मात्र 1,222 वोट मिले, जो कुल मतदान का मात्र 0.74 फीसदी हिस्सा है। जबकि उनसे अधिक वोट शिवसेना समर्थित प्रत्याशी नीतिन भांडेकर को मिला।

नोटा का संकेत, जनमुद्दों पर दलगत राजनीति से उपर उठना होगा

नोटा में वोट डालने वालों ने राजनीतिक दलों को संकेत दिया है कि वे राजनीतिक दलों के थोपे हुए नहीं बल्कि अपने पैरामीटर में सही और सच्चे प्रत्याशी को ही चुनेंगे। उन नेताओं को ही चुनेंगे जो जनहित के मुद्दे पर राजनीति करेंगे। ये उन्हें पसंद करेंगे जो जनमुद्दों पर दलगत राजनीति से उपर उठकर काम करेंगे। नोटा में बटन दबाने वाले ये वे लोग हैं जो अपने लोकतांत्रिक व्यवस्था में दी गई शक्ति को समझते हैं। ये अपने संवैधानिक अधिकारों को समझते हैं। ये देश के प्रति अपने कर्तव्यों को भी भलीभांति समझते हैं।
खैर…नोटा में पड़े वोट बड़े सवाल पैदा करते हैं। साथ ही यह राजनीतिक दलों के लिए भी काफी चिंतनीय है कि जो वोट नोटा में गए हैं, वो वोट उन्हें क्यों नहीं मिले। आखिर इतनी बड़े वोटर्स की नजरों में वे क्यों खरे नहीं उतर पाए।

हार—जीत तो 5 फीसदी पड़े वोटों से भी हो सकता है, पर यह जनादेश तो नहीं

जीत और हार की बात करें तो यह 5 फीसदी मतदान पर भी हो सकता है। यानी 95 फीसदी लोगों ने वोट नहीं दिया या नोटा में वोट दिया, तो बाकी 5 फीसदी पड़े वोटों से जीत—हार का फैसला तो हो सकता है। किंतु यह जनादेश का सम्मान कहां हुआ। चुनाव में प्रत्याशी को मिले वोट जनादेश को दर्शाते हैं, ऐसे में नोटा में में पड़ रहे वोटों के प्रतिशत पर गहन चिंता और समीक्षा की आवश्यकता है।

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