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विक्रांत-यशोदा की जीत-हार से कैसे बदलेगी खैरागढ़ की राजनीतिक फिजा, पढ़ें खास रिपोर्ट


सीजी क्रांति न्यूज/खैरागढ़। खैरागढ़ में विधानसभा चुनाव का मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच है। स्वाभाविक है जीत एक की ही होगी। राजनीति संभावनाओं का गणित है। इसकी सत्यता भविष्य के गर्भ में छिपी होती है। भाजपा से विक्रांत सिंह या कांग्रेस से यशोदा नीलांबर वर्मा जीतीं तो क्षेत्र की राजनीतिक फिजा बदल जाएगी।

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किस्मत दोनों के बुलंद हैं। तर्जुेबे और अन्य विषयों में विक्रांत सिंह का पलड़ा भारी है। उन्हें सियासत विरासत में मिली है। यशोदा जमीन से उठी हुई महिला नेत्री है। इस चुनाव में दोनों की जीत और हार खैरागढ़ का राजनीतिक भविष्य तय करेगी।

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विक्रांत की जीत होती है तो आने वाले करीब 15 साल उन्हें हराना कांग्रेस के लिए मुश्किल हो सकता है। कारण, विक्रांत सिंह गुण, कर्म, स्वभाव और संसाधनों के मामले में पहले से और समृद्ध हो जाएंगे। विक्रांत की जीत से सिर्फ यशोदा या कांग्रेस की ही हार नहीं होगी, बल्कि जातिवाद की भी बड़ी हार होगी!

यानी 2007 से 2023 तक तक बना लोधी समाज का राजनीतिक वर्चस्व टूट जाएगा। वहीं परिवारवाद का जो दाग विक्रांत सिंह पर लगते रहा है, वह भी धूल जाएगा। राजनीति में विक्रांत सिंह अब तक अजेय रहे हैं। यह रिकार्ड उन्होंने इस चुनाव में भी बनाए रखा तो वे जिले के सर्वोच्च राजनीतिज्ञ के तौर पर खुद को पूरी तरह स्थापित कर लेंगे।

विक्रांत सिंह खैरागढ़ ही नहीं बल्कि अविभाजित राजनांदगांव के निर्णायक नेताओं में शामिल हो जाएंगे। राजनांदगांव से होते हुए वे संभागीय राजनीति में भी प्रभावशाली भूमिका में आ जाएंगे। प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता आई तो विक्रांत के रूप में प्रदेश भाजपा को एक अनुभवी, युवा, तेज-तर्रार और प्रभावशाली नेता मिल जाएगा। वहीं सत्ता भाजपा की आई तो विक्रांत सिंह का राजनीतिक वजन बढ़ना स्वाभाविक है।

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वहीं यशोदा वर्मा आम लोगों के बीच से चुनी गई लोधी जाति की पहली महिला विधायक हैं। इसके पहले जो महिला विधायक चुनी गईं वे राजघराना से संबंध रखती थीं। उन्हें पद, पैसा, सम्मान और राजनीतिक प्लेटफॉर्म विरासत में मिली थी। यशोदा की जीत के बाद खैरागढ़ की राजनीति में महिला नेत्रियों के लिए भी संभावनाओं के द्वार खुले हैं।

यशोदा यदि विधायक चुनी जाती है तो वो खैरागढ़ से लगातार दूसरी बार जीतने वाली ओबीसी वर्ग से पहली विधायक होंगी। उनके जीत से खैरागढ़ की सियासी जमीन में जातिवाद की जड़ें और गहरी हो जाएंगी। यशोदा महल डेढ़ साल ही विधायक रही है। इस बीच उनका व्यक्तित्व निर्विवाद रहा है।

उन्होंने काफी कम समय में अपने पर्सनैलिटी, भाषण कला और व्यवहार में काफी सुधार किया है। दूसरी बार विधायक बनने के बाद उनके आत्मविश्वास में वृद्धि तो होगी ही वहीं पार्टी के भीतर उनका प्रभाव बढ़ जाएगा। पार्टी और हाईकमान में उनकी पकड़ मजबूत होगी। इसके साथ ही महिला विधायक होने से राजनीति में महिलाओं की भूमिका और प्रभावी हो जाएगी।

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साथ ही कांग्रेस में शुरू से राजपरिवार का दबदबा रहा है। लिहाजा आगामी करीब 10 वर्ष तक राजपरिवार का विधायक पद के लिए सीधा हस्तक्षेप नहीं हो सकेगा। ऐसे में कांग्रेस की बागडोर बस्ती के नेताओं या यूं कहे कांग्रेस के जमीनी नेताओं के हाथों में आ जाएगी।

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