सीजी क्रांति/खैरागढ़। एशिया का पहला इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय में ओड़िसी संकाय के प्रो. सुशांत दास पर छात्राओं ने गंदी नीयत से छूने और प्रताड़ित किए जाने का आरोप लगाया है। विश्वविद्यालय प्रशासन से भी इसकी शिकायत की है। पुलिस थाने में लिखित शिकायत कर एफआईआर करने की मांग तक की है। लेकिन शिकायत के बाद छात्राएं पुलिस के समक्ष बयान देने से डर रही है! छात्राओं के बयान नहीं देने की वजह से आरोपी प्रोफेसर के खिलाफ पुलिस चाहकर भी कार्रवाई नहीं कर पा रही है। पूरी कार्रवाई केवल बयान नहीं दिए जाने की वजह से अटकी है।
बहरहाल जिले में तीन महिला शक्ति प्रभावशील होने के बाद भी आखिरकार छात्राएं अपने खिलाफ हुए अन्याय को लेकर डरे हुए क्यों हैं ? वे आरोपी प्रोफेसर के खिलाफ अपनी कंपलेंट को प्रुव करने पुलिस के समक्ष बयान देने में डर क्यों रही है। जबकि वे आज की आधुनिक जीवन शैली में पली, बढ़ी और पढ़ी—लिखी युवा जागरूक युवतियां हैं। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि दूरस्थ क्षेत्र की गरीब,अशिक्षित और गैरजागरूक युवतियां अपने पर हो रही ज्यादती के खिलाफ जिंदा लाश बनकर सब कुछ सहकर शांत बैठ जाती होंगी।
सवाल यह उठता है कि जब विवि की बागडोर संभाल रही मोक्षदा ममता चंद्राकर जो अपने आप में महिला सशक्तिकरण और महिला शक्ति की प्रतीक होने के साथ ही मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की रिश्ते में भाभी लगती है। खैरागढ़ महोत्सव में सीएम ने खुद अपनी जुबां से यह बात स्वीकारी है। इसके बाद बात करें यशोदा वर्मा की जो खैरागढ़ के इतिहास में राज परिवार के बाद पहली महिला है जो क्षेत्र की विधायक है। और भाजपा के पुरूष उम्मीदवार को पराजित किया है। वही तीसरी महिला अंकिता शर्मा जो छत्तीसगढ़ की पहली महिला आईपीएस अफसर है। ये बस्तर में जोखिम भरे जगह में नक्सल सेल की कमान संभाल चुकी है। ये वहीं महिला एसपी है जो सत्ताधारी दल की कांग्रेस विधायक तक से भिड़ चुकी है। जिन्हें महिला सशक्तिकरण की मिशाल तक कहा जाता है। एसपी ही नहीं एएसपी नेहा पांडेय भी जो पुलिस विभाग में लंबे समय से कार्यरत है। अनुभवी है।
जिले में महिला सशक्तिकरण की ऐसी मिशाल होने के बाद भी क्षेत्र की छात्राएं यदि पुलिस से शिकायत के बाद बयान न देकर पुलिस कार्रवाई को आगे बढ़ाने में झिझक रही हैं। लोगों में शिकायत करने वाली छात्राओं की मंशा पर ही उंगली उठाई जा रही है। वहीं प्रोफेसर के अश्लील वीडियो देखे की जाने वाली वीडियो को भी जस्टीफाई किया जा रहा है!
लिहाजा यह समाज के लिए चिंतनीय विषय है। इस मामले में प्रो. सुशांत दास दोषी है या नहीं? इसे प्रमाणित होने या न होने से ज्यादा जरूरी है कि गलत के विरोध में दमदारी से खड़े होकर न्यायिक लड़ाई लड़ने की। यदि पारिवारिक, सामाजिक, राजनीतिक या लोकलाज के भय से छात्राएं अपने लगाए आरोपों से पीछे हट गई तो कुत्सित मानसिकता जीत जाएगी। बेटियां ही रोकी और टोकी जाएंगी। क्योंकि वो हर बार की तरह इस बार भी हार जाएंगी ? स्त्री की लज्जा ही उसके अपमान और घुटन की वजह बन जाएगी।