0 1753 से स्थापित है भस्म से बना एकमात्र शिवपीठ
सीजी क्रांति/खैरागढ़। सिद्धपीठ श्री रुक्खड़ स्वामी मंदिर में 15 फरवरी को महाशिवरात्रि के अवसर पर दिन भर पूजन व अभिषेक का क्रम चलेगा। पार्थिव शिवलिंग का अभिषेक शुभ मुहूर्त सुबह 8:40 बज़े प्रारंभ होगा। इस दौरान मंदिर में स्थित शिवलिंग में दिन भर अभिषेक का क्रम चलता रहेगा। जो दूसरे दिन 19 फरवरी रविवार की सुबह 4 बज़े तक चलेगा। श्रद्धालु पंजीयन करा पूजन में बैठ सकते हैं। पूजन सामग्री की व्यवस्था श्री रुक्खड़ स्वामी ट्रस्ट समिति कर रही है। प्रचलित कथानक के अनुसार आमनेर,पिपरिया और मुस्का से घिरे खैर के जंगलों में श्री रुक्खड़ स्वामी बाबा ने अपनी धुनि रमाई। ये 1753 का दौर था। और नागवंशी शासक टिकैत रॉय का शासन। टिकैत रॉय प्रतापी राजा थे। और बाबा के प्रति उनकी अगाध आस्था थी। रुक्खड़ बाबा कोई सामान्य संत नहीं थे। बल्कि स्वयं शिव स्वरूप थे। बाबा ने अपने धुनि स्थान में ही भभूति से पीठ की स्थापना जिसकी पूजा भगवान शिव के रूप में निरंतर लगभग 300 वर्षों से होती आ रही है। संभवतः यह पूरे भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व में राख ( भस्म ) से बना एकमात्र शिव पीठ है। साल दर साल पीठ बढ़ता चला जा रहा है। जो पीठ की सिद्धता का प्रमाण है। प्रति सोमवार व विशेष दिनों में पीठ में बादाम व घी का लेप चढ़ाया जाता है। पीठ के ठीक सामने श्री रुक्खड़ स्वामी बाबा द्वारा प्रज्वलित धुनि है जो अनवरत जल रही है। मंदिर परिसर में बेल के विशाल वृक्ष की छाया में विशेष अवसरों के समस्त पूजा पाठ सम्पन्न होते हैं।
मध्यप्रदेश में है रुक्खड़ वनग्राम कुही महाराष्ट्र में भी है बाबा का आश्रम
कथानक बताते हैं कि श्री रुक्खड़ स्वामी बाबा मां नर्मदा के अनन्य भक्त थे। पेंच टाइगर रिज़र्व ( मध्य प्रदेश ) के घने जंगल बाबा की तपस्थली रहे। रिज़र्व के मध्य में बाबा का समाधि स्थल है। और रिज़र्व का मुख्य गेट कहलाता है। जंगल को रुक्खड़ वन ग्राम के नाम से जाना जाता है। दुल्लापुर (कवर्धा), खैरा ( दशरंगपुर, कवर्धा), नारदा ( छत्तीसगढ़ ),देवादा ( छत्तीसगढ़ ), कुही ( महाराष्ट्र ), मणिकर्णिका घाट (बनारस) सहित अन्य कुछ नाम भी हैं। जहां बाबा ने अपनी उपस्थिति के प्रमाण रख छोड़े हैं। जिनकी पूजा होती है। इन स्थानों में कहीं खड़ाऊ, चिमटे, नारियल,गोबर से बाबा द्वारा बनाए गए हनुमान जी की पूजा होती है।
टिकैतराय को दिया था ज्ञान
श्री रुक्खड़ स्वामी महाराज के आगमन की जानकारी मिलने पर टिकैतराय बाबा के पास पहुंचें। और राज भवन में आमंत्रित किया। टिकैतराय ने अपने पुत्र को बाबा के सामने प्रस्तुत किया। रुक्खड़ स्वामी उक्त बालक को देखकर मस्कुराए और कहा – तुम यहाँ कहाँ आ गए हो, तुम्हारी – धुनि रिक्त है और महात्मा लोग तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं। उसी रात वह बालक अस्वस्थ हो गया और अपना शरीर त्याग दिया। राजभवन में शोक छा गया। दशहरा नहीं मनाया गया। तब रुक्खड़ बाबा ने टिकैतराय को बुलाया सांत्वना दी और कहा – तुम्हारे दो कुमार होंगें बड़ा पुत्र महात्मा होगा । जन्म के समय ही उसके सिर पर जटा होंगीं और पीठ में पांच उंगलियों का चिन्ह होगा । बाद दृगपाल सिंह उक्त गुणों से युक्त थे। कुछ दिन बाद महिपाल सिंह का जन्म हुआ ।
चिमना बहादुर ने देखा था चमत्कार
मराठा शासन काल में रघु जी भोंसले के सेनापति चिमना बहादुर रुक्खड़ स्वामी महाराज की ख्याति सुनकर दर्शन के लिए आए। उस समय श्री रुक्खड़ स्वामी महाराज को बुखार आया था। चिमना बहादुर के आने की ख़बर पाकर बाबा ने अल्फी ( एक तरह का शॉल ) उतारकर रख दी। चिमना बहादुर ने जब अल्फी की ओर देखा तो अल्फी हिल रही थी। तो चिमना बहादुर ने स्वामी जी से इसका कारण पूछा। तो स्वामी जी के कहा कि मैंने कुछ देर के लिए ज्वर को उसी में कर दिया है। तो चिमना बहादुर ने कहा- तो आपने बुखार को आने ही क्यों दिया। तो श्री रुक्खड़ स्वामी बाबा ने कहा • कि शरीर का धर्म शरीर के साथ है। पिछले जन्मों का शेष बिना भोग के खत्म नहीं होता है। सांसारिक मनुष्यों की तरह संतों को उसका आभास नहीं होता।
“जब तक मेरी मढ़ी, तब तक तेरी गढ़ी”
श्री रुक्खड़ स्वामी बहुत समय तक खैरागढ़ में रहे। फिर कुछ दिनों बाद खैरागढ़ नरेश को गेरूआ पताका प्रदान किया। और आशीर्वाद देते हुए कहा “जब तक यहां मेरी मढ़ी ( वर्तमान शिव पीठ ) रहेगी, तब तक तेरी गढ़ी रहेगी।” बाबा ने एक मुट्ठी भस्म लेकर स्थापित कर दिया। जिसकी वर्षों से शिव स्वरूप में पूजा होती है।
रविवार को है भोगराग भंडारे का आयोजन
पूजन बाद रविवार को हवन संपन्न होने के बाद विशाल भोगराग भंडारे का आयोजन किया गया है। मंदिर परिसर में ही बड़ी संख्या में प्रसादी प्राप्त करने के लिए श्रद्धालुओं को आमंत्रित किया गया है।