सीजी क्रांति/खैरागढ़। महानदी के पानी को लेकर ओडिसा और छग के बीच सालों से चले आ रहे विवाद के निपटारे को लेकर महानदी जल विवाद न्यायाधिकरण के सदस्य जिसमें सुप्रीम और हाईकोर्ट के तीन जजो के साथ तकनीकी जानकारो का दल शुक्रवार को खैरागढ़-छुईखदान-गंडई जिला के तीन जलाशयो का भौतिक सत्यापन करने पहुंचे। छुईखदान ब्लाक के सिद्ध बाबा जलाशय और पिपरिया जलाशय का भौतिक सत्यापन व तयशुदा कार्य संपन्न किए। दल पहले उदयपुर जलाशय जाने वाले थे लेकिन वे वहां न जाकर पहले घिरघोली ग्राम पंचायत के गभरा गांव में प्रस्तावित सिद्धबाबा जलाशय पहुंचे।
पिपरिया जलाशय छुईखदान के ग्राम छिंदारी में पिपरिया और नथेला नदी पर अवस्थित है, इसकी इसकी जल क्षमता 40.56 मिलियन क्यूबिक मीटर है। वही सिद्धबाबा लघु जलाशय, ग्राम उरतुलि में लमती नदी पर प्रस्तावित है। इसकी जल क्षमता 8.34 मिलियन क्यूबिक मीटर होगी। संयुक्त दल के समक्ष चर्चा के दौरान छत्तीसगढ़ और उड़ीसा राज्य के विधिक एवं तकनीकी अधिकारियों के द्वारा पक्ष रखा गया। इस अवसर पर जिले के कलेक्टर डॉ. जगदीश कुमार सोनकर, एसपी अंकिता शर्मा समेत जल संसाधन के अफसर समेत बड़ी संख्या में स्थानीय ग्रामीण भी मौजूद रहे।
बता दें कि महानदी जल विवाद न्यायाधिकरण ने मंगलवार को छत्तीसगढ़ से पांच दिवसीय क्षेत्र सर्वेक्षण शुरू किया है ताकि गैर-मानसून मौसम में जल प्रवाह और पानी की उपलब्धता और उपयोग का अध्ययन किया जा सके। तीन सदस्यीय ट्रिब्यूनल ने एक तकनीकी टीम की मदद से धमतरी जिले में नदी के उद्गम केंद्र से दौरा शुरू किया। उद्गम स्थल के बाद टीम संदूर बांध, रविशंकर सागर और अन्य प्रमुख सहायक नदियों सहित महानदी के अपस्ट्रीम के कई क्षेत्रों का दौरा करेगी। टीम 22 अप्रैल को समोदा बांध का जायजा लेने के बाद दिल्ली लौटेगी।
जानकारी के अनुसार 22 अप्रैल को समाप्त होने वाले सर्वेक्षण के पहले चरण में ट्रिब्यूनल छत्तीसगढ़ में महानदी बेसिन को कवर करेगा और दूसरे चरण में 29 अप्रैल से 3 मई तक ओडिशा का दौरा करेगा। जल विवाद न्यायाधिकरण अब तक 36 सुनवाई कर चुका है। छत्तीसगढ़ और ओडिशा के बीच नई दिल्ली में 25 मार्च को हुई जल विवाद की सुनवाई के दौरान जमीनी सर्वेक्षण करने का निर्णय लिया गया था।
महानदी जल विवाद अधिकरण के अध्यक्ष और सुप्रीम कोर्ट के जज एएम खनविलकर की अध्यक्षता, पटना हाईकोर्ट के जज डॉ रवि रंजन, दिल्ली हाईकोर्ट जज इंदरमीत कौर कोचर सहित 39 सदस्यो का दल पहुंचे। जिसमे 3 वकील, प्रदेश के सात तकनीकी विशेषज्ञ, और ओडिसा सरकार की ओर से 19 लोगो का प्रतिनिधि मंडल जलाशयो का भौतिक सत्यापन किया। राज्य अतिथि के दर्जा प्राप्त दल के आगमन को लेकर जल संसाधन विभाग ने दल के अध्यक्ष समेत सदस्यों के ठहरने और भोजन की चाक चौबंद व्यवस्था की है।
इन निरीक्षण में महानदी के उद्गम क्षेत्र से छत्तीसगढ़ राज्य की सीमा यथा जिला रायगढ़ तक का क्षेत्र शामिल होगा। इसके बाद ओडिशा राज्य के महानदी बेसिन क्षेत्र में इसी प्रकार महानदी जल विवाद अधिकरण के पृथक आदेश के अनुसार निरीक्षण किया जाएगा।
छत्तीसगढ़ राज्य दो दशक पहले 01 नवंबर 2000 को अस्तित्व में आया है। छत्तीसगढ़ में देश की सबसे बड़ी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की आबादी है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की आबादी राज्य की आबादी का 43 प्रतिशत से अधिक है। छत्तीसगढ़ राज्य की अधिकांश जनसंख्या कृषि और कृषि आधारित उद्योगों पर निर्भर है। राज्य का लगभग 44 प्रतिशत भाग वनों से आच्छादित है।
छत्तीसगढ़ राज्य में पांच नदी घाटियों (महानदी, गोदावरी, गंगा, ब्राह्मणी, नर्मदा) के बेसिन क्षेत्र आते हैं। छत्तीसगढ़ की 78 प्रतिशत जनसंख्या महानदी बेसिन में निवास करती है, जोकि इस राज्य की जीवन-रेखा है।
अंतरराज्यीय नदी, महानदी, के जल संसाधनों का बंटवारा करने के लिए ओडिशा एवं छत्तीसगढ़ राज्य के बीच कभी भी कोई अंतरराज्यीय समझौता नहीं हुआ है, हालांकि मतभेदों को दूर करने के लिए अतीत में कुछ प्रयास जरूर किए गए।
आधिकारिक स्तर पर दोनों राज्यों की बैठकें वर्ष 1973, 1976 और 1979 में ओडिशा राज्य और मध्यप्रदेश राज्य (अब छत्तीसगढ़) के अधिकारियों के बीच आयोजित की गईं। महानदी बेसिन क्षेत्र में स्थित कुछ परियोजनाओं पर 1983 में मध्यप्रदेश राज्य और ओडिशा राज्य के मुख्यमंत्रियों के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे, परंतु इस समझौते पर अधिकरण की स्थापना तक राज्यों द्वारा संपूर्ण रूप से क्रियान्वयन नहीं किया गया है।
ओडिशा राज्य द्वारा मुख्य महानदी की धारा पर छः औद्योगिक बैराज के निर्माण एवं गैर मानसून अवधि में छत्तीसगढ़ राज्य में स्थित महानदी एवं अन्य स्त्रोतों से जल आवक की कमी को लेकर केंद्र सरकार के समक्ष शिकायत दर्ज की गई। ओडिशा राज्य द्वारा छत्तीसगढ़ राज्य के अंतर्गत स्थित महानदी के जल का बंटवारा करने के लिए आवेदन किया गया है। ओडिशा राज्य द्वारा प्रस्तुत तथ्य तकनीकी विषयों पर आधारित होने के कारण माननीय सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप/आदेश के आधार पर महानदी जल विवाद अधिकरण का गठन दिनांक 12 मार्च 2018 को केन्द्र शासन द्वारा अधिसूचना के आधार पर किया गया है।
छत्तीसगढ़ राज्य में महानदी पर निर्मित बैराज/एनीकट मानसून के समय के वर्षा जल की अल्प मात्रा को एकत्रित करने तथा भू-जल को संवर्धित करने के लिए हैं तथा महानदी के पानी के प्रवाह को बाधित नहीं करते हैं, जैसा कि ओडिशा द्वारा गलत आरोप लगाया गया है। इन तथ्यों को महानदी जल विवाद अधिकरण के समक्ष भी छत्तीसगढ़ राज्य द्वारा प्रस्तुत किया गया है। छत्तीसगढ़ ने भी केंद्र सरकार से शिकायत की और समग्र रूप से बेसिन में कुल उपलब्ध जल संसाधनों को ध्यान में रखते हुए महानदी के पानी के समान रूप से वितरण की मांग की गई।
अंतरराज्यीय नदियों के पानी को आवंटित करने की कोई भी शक्ति केन्द्रीय जल आयोग, नई दिल्ली के पास नहीं हैं। इस अंतर्राज्यीय महानदी के जल आबंटन हेतु अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 के तहत जल का बंटवारा संभव होने के कारण महानदी जल विवाद अधिकरण की स्थापना दिनांक 12 मार्च 2018 को माननीय सर्वाेच्च न्यायालय नई दिल्ली के आदेश के अनुपालन में की गई है।
वर्तमान में अधिकरण की समय सीमा समाप्त होने के कारण केन्द्रीय जल शक्ति मंत्रालय द्वारा दिसंबर 2024 तक समय-सीमा में वृद्धि की गई है। महानदी जल विवाद अधिकरण की अब तक 36 सुनवाई हो चुकी है। दिनांक 25 मार्च 2023 के आदेश अनुसार छत्तीसगढ़ राज्य में स्थित महानदी बेसिन क्षेत्र में दो चरणों में महानदी में जल की उपलब्धता एवं उपयोगिता का निरीक्षण किया जाना है। छत्तीसगढ़ में जल संसाधन विभाग का विकास इसी विवाद के महानदी जल विवाद अधिकरण के द्वारा जारी अवार्ड में छत्तीसगढ़ राज्य को आबंटित जल की मात्रा के परिणाम पर निर्भर है। उक्त अवार्ड की वैधता वर्ष 2051 तक रहेगी।
ओडिशा ने पानी के कम प्रवाह के लिए दर्ज कराई थी शिकायत
अधिकारियों ने बताया कि महानदी बेसिन क्षेत्र में स्थित कुछ परियोजनाओं पर 1983 में मध्य प्रदेश और ओडिशा के मुख्यमंत्रियों के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर हुआ था। ओडिशा सरकार ने 2016 में जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय (अब जल शक्ति मंत्रालय) के पास अपस्ट्रीम में औद्योगिक उद्देश्य के लिए छह बैराज के निर्माण और विशेष रूप से डाउनस्ट्रीम में कम प्रवाह पर आपत्ति जताते हुए एक शिकायत दर्ज की थी।
2018 में तीन सदस्यीय ट्रिब्यूनल का गठन
अधिकारी ने बताया कि 2018 में केंद्र ने तीन सदस्यीय ट्रिब्यूनल का गठन किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एएम खानविलकर अध्यक्ष और जस्टिस डॉ रवि रंजन और पटना और दिल्ली उच्च न्यायालयों के इंदरमीत कौर कोचर सदस्य के रूप में शामिल थे।
महानदी नदी और उसकी नदी घाटी से संबंधित जल विवाद को अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 के तहत अधिनिर्णय के लिए एक न्यायाधिकरण को भेजने की मांग करने वाली ओडिशा सरकार द्वारा दायर एक मुकदमे में सर्वाेच्च न्यायालय के आदेश के बाद न्यायाधिकरण का गठन किया गया था।
ओडिशा में जाता है महानदी का पूरा पानी- सीएम भूपेश बघेल
ट्रिब्यूनल के दौरे के बारे में बोलते हुए छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि यह मामला ट्रिब्यूनल में नहीं जाना चाहिए था। महानदी छत्तीसगढ़ से निकलती है और हमारे यहां कोई बांध नहीं है। विवाद बैराज बनने के बाद शुरू हुआ। पानी के बंटवारे को लेकर चल रहे विवाद के चलते हम सरगुजा में बांध और अन्य जगहों पर बैराज नहीं बना सके। मैं समझता हूं कि हमें और बैराज निर्माण के लिए अनुमति लेनी चाहिए क्योंकि नदी का पूरा पानी ओडिशा में जाता है।