सीजी क्रांति/डेस्क। मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्य सचिव IAS निर्मला यादव बूच नहीं रहीं। 97 वर्ष की उम्र में उन्होंने भोपाल में अंतिम सांस ली। वे मध्यप्रदेश की पहली महिला व अब तक की अकेली मुख्य सचिव रही हैं। रविवार रात उनकी मौत हुई। वे लंबे समय से अस्वस्थ थी। रविवार सुबह उन्हें हॉस्पिटल भी ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उनके निधन की पुष्टि की। उनका अंतिम संस्कार सोमवार को किया जाएगा। उनके बेटे विनीत अमेरिका में रहते हैं।
निर्मला बूच भोपाल के अरोरा कॉलोनी में अकेले निवास करती थी। करीब 8 साल पहले पति पूर्व मुख्य सचिव एमएन बुच का निधन हो चुका है। शादी के पहले निर्मला यादव जब देवास में कलेक्टर थीं, तब पड़ोसी जिले उज्जैन के कलेक्टर एमएन बुच थे। निर्मला उनके व्यक्तित्व से इतनी प्रभावित हुईं कि दोनों ने शादी कर ली। और निर्मला यादव का नाम बदलकर निर्मला बुच हो गया।
निर्मला बुच पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा के कार्यकाल में निर्मला 22 सितंबर 1991 से 1 जनवरी 1993 तक मध्यप्रदेश की मुख्य सचिव रही थीं। उनके मुख्य सचिव रहते हुए मध्यप्रदेश में महिला एवं बाल विकास विभाग अस्तित्व में आया था। उमा भारती जब मुख्यमंत्री बनीं, तो उन्होंने निर्मला बुच को अपना सलाहकार नियुक्त किया था। रिटायर होने के बाद सामाजिक क्षेत्र में उनकी सक्रियता बनी रही। उन्होंने चाइल्ड राइट्स ऑब्जर्वेटरी, महिला चेतना मंच जैसी संस्थाओं की स्थापना की। वर्किंग वुमन होस्टल खुलवाए। निर्मला ने कई पुस्तकों का संपादन भी किया।
उत्तर प्रदेश में जन्म, काशी हिंदू विश्वविद्यालय से पढ़ाई, अमेरिका से मिली फलोशिप
निर्मला यादव (शादी के बाद निर्मला बुच) का जन्म 11 अक्टूबर, 1925 को उत्तर प्रदेश के खुर्जा (जिला बुलंदशहर) में हुआ था। 1955 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य, दर्शन शास्त्र और मनोविज्ञान के साथ बीए किया। किया। 1957 में इसी विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में पोस्ट ग्रेजुएट हुईं। जर्मन और फ्रेंच लैंग्वेज में डिप्लोमा किया। 1969-70 में एमपीपीए प्रोग्राम की पढ़ाई के लिए प्रिंसटन यूनिवर्सिटी (न्यू जर्सी, अमेरिका) से फेलोशिप मिली।
पहली पोस्टिंग जबलपुर में
IAS (भारतीय प्रशासनिक सेवा) में सिलेक्शन के बाद 1960 में मसूरी से ट्रेनिंग लेकर उन्होंने करियर की शुरुआत की। 1961 में उनकी पोस्टिंग जबलपुर में हुई थी। 1961 से लेकर 1993 तक वे मध्यप्रदेश और केंद्र सरकार में विभिन्न पदों पर रहीं। वे मध्यप्रदेश सरकार में 1975-77 तक वित्त सचिव और शिक्षा सचिव भी रहीं। इन पदों पर रहते हुए उन्होंने प्रदेश के विकास के जो मॉडल तैयार किए, वे मील का पत्थर साबित हुए।