बड़ा सवाल/ खैरागढ़ के माथे पर लग गया कलंक, सिस्टम ने ले ली होनहार छात्रा श्रेया करकरे की जान ?

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सीजी क्रांति न्यूज/खैरागढ़। इंदिरा कला संगीत विवि में कथक की छात्रा श्रेया करकरे की मौत हो गई। उसकी मौत ने खैरागढ़ के माथे पर कलंक लगा दिया। करीब सप्ताह भर पहले ईतवारी बाजार में एक आवारा सांड ने श्रेया पर हमला किया था। जिससे उसके सिर पर गंभीर चोट आई। उपचार के दौरान भिलाई के निजी अस्पताल वह जिंदगी की जंग हार गई। लेकिन वास्तव में खैरागढ़ की प्रशासनिक व्यवस्था ने श्रेया की जान ली है! अच्छी बात यह रही है कि श्रेया की जान बचाने छात्रों और नगर की जनता ने आर्थिक योगदान दिया और दुआएं भी दी। पर सब व्यर्थ चला गया।

बता दें कि दर्जनों दुर्घटनाएं होने के बाद शहर में आवारा मवेशियों पर नगर पालिका अंकुश नहीं लगा सकी। प्रदेश में सत्ता बदलने के बाद गौठान तक को बंद कर दिया गया। इससे बड़ी लापरवाही यह है कि नगर पालिका में समुचित कांजी हाउस तक की व्यवस्था नहीं हैं जहां आवारा मवेशी को कैद रखा जा सके।

लिहाजा प्रशासन तंत्र के लचर सिस्टम के कारण विवि की होनहार छात्रा सांड के हमले से घायल होकर अस्पताल में जिंदगी से जंग लड़ रही थी, पर अब वह हार गई। श्रेया करकरे पर सांड ने नहीं बल्कि भ्रष्ट तंत्र ने हमला किया है। ये हमले पहले भी होते रहे हैं। शहर के भीतर दर्जनों हादसों हो चुके हैं। कई लोग अपनी जान तक गंवा चुके हैं। इसके बावजूद शासन-प्रशासन की आंखे नहीं खुली।

श्रेया की मौत ने पूरे सिस्टम पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। नगर पालिका अधिनियम में जब स्पष्ट उल्लेख है कि कांजी हाउस होना चाहिए। जहां आवारा मवेशियों को रखे जाने की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। आखिरकार खैरागढ़ के संगीत विवि में पढ़ रही छात्रा को जान गंवाना पड़ गया। उसकी मौत पर नगर में शोक है। विवि प्रशासन ने दो मिनट का मौन धारण कर उसे श्रद्धांजलि अर्पित कर दी।

नगर पालिका दिलीप सिंह स्मृति भवन में विकसित भारत संकल्प शिविर आयोजित कर जनता को सुविधाएं देने का सब्जबाग दिखा रही थी। उस वक्त श्रेया करकरे की अंतिम यात्रा की तैयारी चल रही थी। श्रेया करकरे की आत्मा पूरे खैरागढ़ से अपनी बेवजह मौत का कारण पूछ रही थी।

श्रेया करकरे की मौत की वजह भले ही दुर्घटना बताई जा रही हो लेकिन उसकी मौत शायद न होती, जब व्यवस्था (सिस्टम) अपना काम ईमानदारी से करती। जनप्रतिनिधि नगर के समुचित विकास के लिए आवाज बुलंद करते। लेकिन वास्तव में खैरागढ़ की धूर्त राजनीतिक व्यवस्था अपने नेताओं के आमंत्रण पत्र में कार्ड न छपने पर हल्ला मचाती है लेकिन जनता की बुनियादी सुविधाओं पर समझौते की राजनीति कर सामंजस्य बैठाकर केवल अपना स्वार्थ साधने में ही मशगूल रही है। नतीजतन समाज की बेटी जिसे अभी दुनिया के कई रंग देखने बाकी थे, वह दुनिया छोड़कर हमेशा के लिए चली गई।

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