सीजी क्रांति/खैरागढ़। नगर पालिका खैरागढ़ में कार्यरत संविदा व आउट सोर्सिंग कर्मियों के खाते में 2013 से 2018 के बीच ईपीएफ की राशि जमा नहीं की गई! हैरानी की बात यह है कि मानदेय से ईपीएफ राशि की कटौती की गई! ऐसे में कम मानदेय पाने वाले कर्मचारी विभागीय अत्याचार और ठेका कंपनी से परेशान हैं। भाजपा-कांग्रेस की सत्ता के बीच करीब तीन प्लेसमेंट ठेका बदला गया। इतना बड़ा घोटाला होने के बाद भी गरीब कर्मचारियों के हित में कोई आवाज उठाने वाला नहीं है। पालिका में ईपीएफ घोटाले में करीब 70 से अधिक प्लेसमेंट, संविदा और दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी प्रभावित है!
4 लोगों की हुई मौत! परिजनों को नहीं मिला लाभ ?
सूत्रों की मानें तो इस दौरान प्लेसमेंट और संविदा के 4 कर्मचारियों की मौत भी हुई। लिहाजा उन्हें ईपीएफ राशि की जब जरूरत हुई तो उसका लाभ समय पर नहीं मिल सका। विभाग के जिम्मेदारों की लापरवाही के चलते कार्यरत संविदा व आउट सोर्सिंग कर्मी हैरान हैं। विभागीय लापरवाही का आलम यह है कि इन कर्मचारियों को प्रति माह दिए जा रहे मानदेय से ईपीएफ राशि की कटौती तो कर ली जाती है लेकिन वह राशि उनके ईपीएफ खाते में जमा नहीं की जा रही है। ऐसे में कटौती के बाद भी उनके खाते में राशि जमा नहीं होने से कम मानदेय पर काम करने वाले कर्मियों का बड़े पैमाने पर नुकसान किया जा रहा है।
ईपीएफ के पैसे से मिलने वाले ब्याज से कर्मचारी वंचित
प्रतिमाह कटौती के साथ उनके खाते में राशि जमा कर दी जाए तो उन्हें बैंक से उसका ब्याज भी मिल सकेगा। संविदा व आउट सोर्सिंग के जरिए नौकरी करने की वजह से यह कर्मचारी खुलकर कुछ बोल भी नहीं पा रहेे हैं। जिम्मेदार हैं कि उनकी कमाई की ही राशि डकारने में जुटे हैं ? कर्मचारियों को तो यह भी नहीं पता है कि उनके मानदेय से कटौती करने के बाद राशि कब जमा होगी। जमा होगी भी या नहीं। ईपीएफ की राशि जमा नहीं होने से कर्मचारियों में रोष व्याप्त है।
ईपीएफ के नाम 12 फीसदी राशि की कटौती
जानकारी के अनुसार 15 हजार व उससे कम मानदेय पाने वालों का प्रत्येक माह 12 फीसदी ईपीएफ काटा जाता है। इतनी ही राशि नियोक्ता अपनी ओर से जमा करता है। कर्मचारियों केे मानदेय से प्रत्येक माह 12 फीसदी ईपीएफ की कटौती तो कर ली जाती है लेकिन उसे उनके खाते में नियमित रूप से जमा नहीं किया जाता। यदि ईपीएफ कटौती के पैसे उनके खाते में जमा करा दी जाए तो उन्हें बैंक से उसका ब्याज मिलेगा। जो उनके जरूरत और विपरीत परिस्थितियों में काम आएगा।
जांच की आवश्यकता, कलेक्टर से बंधी आस
इस पूरे मामले में कई अनियमितताएं बरते जाने की आशंका है। कर्मचारी नौकरी में आंच न आए इसलिए मजबूर है। जनप्रतिनधि गरीब कर्मचारियों के तकलीफों से वास्ता नहीं रख रहे हैं। प्रशासनिक स्तर पर भी कर्मचारियों के हितों की अनदेखी की जा रही है। चूंकि अब जिला बन गया है। कलेक्टर पालिका से करीब 800 मीटर की दूरी पर बैठ रहे हैं। इसलिए हालात से मजबूर कर्मचारियों के मन में आस बंधी है कि कलेक्टर इस पर संज्ञान लेंगे और पूरी संवदेनशीलता के साथ मामले की जांच उपरांत कर्मचारियों के साथ न्याय करेंगे।