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दुर्भाग्यः खैरागढ़ पालिका का बजट अब तक नहीं हो सका पेश, मार्च में होना था, अप्रैल खत्म होने जा रहा, शैलेंद्र वर्मा समेत पार्षद सैर-सपाटे में व्यस्त! तो विपक्ष ढेढ़ साल से गूंगी!

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सीजी क्रांति/खैरागढ़। नगर पालिका खैरागढ़ में अब तक वार्षिक बजट पेश नहीं हो सका। जबकि नया वित्तीय वर्ष शुरू हो चुका है। राज्य और केंद्र तक का बजट पेश हो चुका है। पालिका राज्य सरकार में पेश हुए बजट में दिए गए अनुदान राशि के पहुंचने का इंतजार कर रहा है ताकि बजट में राज्य सरकार से मिलने वाली राशि को पालिका के बजट में शामिल बताकर पेश किया जा सके।

कायदे से पालिका का बजट मार्च में ही पेश हो जाना चाहिए था। लेकिन पालिका के अध्यक्ष शैलेंद्र वर्मा व कांग्रेस पार्षद गोवा जैसे रंगीन शहरों के सैर-सपाटे में व्यस्त है। जबकि यह समय शहर विकास की योजनाओं को तैयार करने और उसे मूर्त रूप देने कार्ययोजना बनाने का है। लिहाजा पालिका प्रशासन पर जनप्रतिनिधियों की निर्भरता बढ़ गई है। प्रशासनिक पकड़ कमजोर हो चुकी है। जनप्रतिनिधियों की इसी कमजोरी की वजह से शहर विकास की जवाबदारी पालिका के अफसरों कंधे पर आ गया है।

बहरहाल यह भी जगजाहिर हो चुका है! कि नगर पालिका खैरागढ़ में जनता के चुने जनप्रतिनिधि शहर के सुनियोजित विकास के मुद्दे पर गंभीर नहीं है! मजेदार बात यह है कि विपक्ष में बैठी भाजपा की सहनशीलता और मौन स्वीकृति को देखकर उन पर कमीशन में बिकने जैसी चर्चा तक शुरू हो चुकी है। भले ही चर्चा अफवाहों से मिले तथ्यों पर निर्भर हो। लेकिन इन अफवाहों को विराम देने नाटकीय तौर पर भी विपक्षी भाजपा पार्षद दल सक्रिय नहीं है। यह आश्चर्य का विषय है।

पालिका के निर्वाचित जनप्रतिनिधि और अधिकारी नगर विकास के लिए कितने सजग हैं, इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वित्तीय वर्ष प्रारंभ होने से पहले बजट भी प्रस्तुत नहीं कर सके। वित्तीय वर्ष समाप्ति के बाद भी वार्षिक बजट पेश नहीं हो सका है। बजट पेश नहीं होने से विकास कार्य प्रभावित होंगे। ऐसे में नगर विकास तीन-चार माह पिछड़ जाएगा। 15 जून के बाद बरसात के चलते चार माह निर्माण कार्य नहीं हो सकता। इसके चलते जरूरी काम भी अटक जाएंगे। वित्तीय वर्ष के अंत में फरवरी या मार्च महीने में नगरीय निकायों का बजट पेश करना होता है। इसमें सालभर के संभावित आय-व्यय का लेखा जोखा प्रस्तुत किया जाता है।

साथ ही बीते वित्तीय वर्ष का आय-व्यय का व्यौरा भी रखा जाता है। नए कर लगाने या हटाने या कम करने तथा नगर विकास के कई प्रस्ताव नगरीय निकाय के सामान्य सभा में रखे जाते हैं। मार्च महीने में नगरीय निकायों को अपना बजट प्रस्तुत कर लेना था। लेकिन इस ओर न तो जनप्रतिनिधियों ने ध्यान दिया और न ही नगरपालिका के अधिकारियों ने इसमें रूचि ली। इसके चलते बजट अटक गया।

सरकारी अनुदान के भरोसे निकाय

खैरागढ़ समेत ज्यादातर नगरीय निकायों के आय का स्रोत संपत्ति व समेकित कर तथा भवन अनुज्ञा शुल्क से प्राप्त होने वाली राशि ही है। बाजार कर खत्म कर दिए जाने से आय का यह स्रोत भी समाप्त हो गया। ऐसे में नगरीय प्रशासन विकास विभाग से मिलने वाली अनुदान के भरोसे ही नगरीय निकायों में विकास कार्य होते हैं।

तो बढ़ सकती है आय
नगर पालिका अगर सख्ती से कर चोरी रोकने का प्रयास करे तो आय बढ़ सकती है। ज्यादातर मकान मालिक आवासीय बताकर ही संपत्ति कर देते है, जबकि सड़क किनारे के अधिकांश मकानों का उपयोग व्यवसायिक उद्देश्य के लिए किया जाता है या तो मकान मालिक ने खुद दुकान खोला है या दूसरे को किराए पर देकर लाभ प्राप्त किया जा रहा है। वहीं नगर में अवैध निर्माण और प्लाटिंग पर कार्रवाई करने में पालिका प्रशासन के हाथ कांप रहे हैं।

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