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छत्तीसगढ़ में आएगी कांग्रेस की सत्ता, खैरागढ़ से विक्रांत सिंह जीत के करीब, पढ़ें पूरी खबर


सीजी क्रांति न्यूज/खैरागढ़। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सत्ता फिर लौटेगी। हालांकि भाजपा 2018 की अपेक्षा इस बार वोट शेयर के साथ ही सीटों की संख्या बढ़ाने में सफल होगी। कांग्रेस पिछले बार की तरह चमत्कारिक आंकड़ें नहीं छू पाएगी। यानी कांग्रेस 50-55 सीटों में ही सिमट सकती है। वहीं भाजपा 35-40 सीटों पर अपना पताका फहरा सकती है। गुरूवार को विभिन्न संस्थाओं के सर्वे में यह अनुमान सामने आई है।

वहीं खैरागढ़ विधानसभा सीट से पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के भांजे विक्रांत सिंह जीत के करीब होंगे। यहां कांग्रेस अपनी जीत के प्रति आश्वस्त नजर आ रही है। जबकि भाजपा कार्यकर्ताओं का दावा है कि विक्रांत सिंह न्यूनतम 5 हजार और अधिकतम 10 हजार वोटों से जीत हासिल करेंगे। हालांकि एक वर्ग ऐसा भी है जो विक्रांत सिंह के हार की आशंका भी जता रहे हैं। लेकिन तमाम समीकरणों पर गौर करें तो खैरागढ़ में मुकाबला काफी कड़ा माना जा रहा है।

खैरागढ़ विधानसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी विक्रांत सिंह हर लिहाज से कांग्रेस प्रत्याशी यशोदा वर्मा से काफी मजबूत हैं। यानी पैसा, प्रभाव, अनुभव, हर मामले में विक्रांत सिंह बाकी प्रत्याशियों से कहीं आगे है। इसके बावजूद विक्रांत सिंह की जीत को लेकर जनता के बीच जो माहौल बनना था, उसमें भाजपा विफल रही है।

पूरे चुनाव को विक्रांत सिंह ने अपने बुते और व्यक्तित्व के दम पर लड़ा है। भाजपा संगठन से लेकर चुनाव के प्रभारियों ने भी बूथ स्तर पर पार्टी के नाराज या दूर जा चुके कार्यकर्ताओं को सक्रिय नहीं कर सके। वहीं पार्टी का एक बड़ा धड़ा जो पार्टी से या विक्रांत सिंह से मनमुटाव बनाकर चल रहे थे, वे घर बैठ गए। हालांकि यही स्थिति कांग्रेस के साथ भी रही।

बता दें कि विक्रांत सिंह 19 साल से लगातार निर्वाचित पदों पर हैं। क्षेत्र की राजनीति में अब तक अजेय रहे हैं। बगैर सत्ता के पिछले पंचायती चुनाव में उन्होंने जिला पंचायत सीट पर जातिवाद के तिलिस्म को तोड़ कर जीत हासिल किया था। चुनाव लड़ने और लड़ाने का उनके पास लंबा तजुर्बा है। विक्रांत सिंह के पास पार्टी संगठन के साथ-साथ उनकी खुद की यूथ फोर्स है जो सिर्फ उनके प्रति समर्पित है।

बहरहाल मतदाता अपनी स्पष्ट राय नहीं रख रहे हैं। इससे यह भी कयास लगाया जा रहा है कि जीत हार का अंतर काफी कम या अनुमान से अधिक भी हो सकता है। प्रत्याशियों की धड़कनों के साथ जनता के बीच भी कौतुहल बढ़ रहा है कि वोटर्स ने किसके भाग्य पर अपना मुहर लगाया है। लिहाजा तमाम अटकलों पर विराम 3 दिसंबर को ही लग पाएगा।

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