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चिंता : खैरागढ़-छुईखदान-गंडई की राजनीति में बापजी नहीं, जननेता ढूंढ रही जनता, जो झुके, सुने, समझे और समाधान के लिए सड़क पर लड़े

file photo

सीजी क्रांति न्यूज/खैरागढ़। खैरागढ़ की राजनीति में जनता लंबे समय से ऐसे जननेता की तलाश कर रही है जो जनता के बीच रहे। जनता के सामने झुके, उनकी भावनाओं को समझे और जनसमस्या के समाधान के लिए सड़क पर उतरकर लड़ सके। राजनीति में बापजी कल्चर के सामने विवश जनता अपनी समस्याओं से कराह रही है। अपनी तकलीफों से मुक्ति के लिए मुखर आवाज उठाने की बजाय गिड़गिड़ा रही है।

विडंबना यह है कि युवा पीढ़ी राजनीति की चकाचौंध में उलझे हुए हैं। परिवार की जिम्मेदारी उठाने की बजाए नेताओं की परिक्रमा में ही अपने कीमती समय को नष्ट कर रहे हैं। जो पूरी शिद्दत से राजनीति करना चाह रहे हैं या जिनमें संभावनाएं हैं वे जमीन पर उतरकर जनसमस्याओं के लिए लड़ने का पुरूषार्थ नहीं कर रहे हैं। कुछ है पर उनका प्रभाव सीमित क्षेत्र तक है। लिहाजा खैरागढ़ की माटी के लिए लड़ने वाले नेताओं से महरूम जनता जो चल रहा है चलने दो वाली या छोड़ों हमें क्या करना है जैसे लाचारी भरी शब्दों से अपने दर्द पर मरहम लगा रहे हैं।

बता दें कि खैरागढ़ जिला बनने के बाद भी समस्याओं से घिरा हुआ है। सिविल अस्पताल में व्यवस्थागत सुधार लाने कोई प्रयास नहीं हो रहा है। शहर के ढांचागत विकास के लिए सुनियोजित काम नहीं हो रहा। विकास के नाम पर क्रंकीटीकरण पर ध्यान दिया जा रहा है। राजस्व की जमीन को लिए बगैर नगर पालिका कांपलेक्स तान रहा है। जिसकी नीलामी प्रक्रिया से केवल पूंजीपतियों को लाभ मिल रहा। नदियों के शहर खैरागढ़ में नदियां अवैध अतिक्रमण से पट रही है।

बेशकीमती सरकारी जमीन का बंदरबाट हो चुका है। शासकीय प्रयोजन के लिए अब जमीन की कमी पड़ गई है। डेढ़ दशक से बाइपास रोड नहीं बन पाया है। अमलीपारा पुल के तकनीकी खामियों को अब तक दूर नहीं किया जा सका। तय समय में सरकारी योजनाओं का लाभ समाज के अंतिम व्यक्ति तक नहीं पहुंच रहा है। पीएम आवास योजना की स्वीकृति से लेकर पैसा रिलीज होने तक के लिए आम जनता खुद ही जद्दोजहद कर रही है। अवैध कब्जे, अवैध निर्माण और अवैध कॉलोनियों ने शहर को कुरूप कर दिया है।

सर्वाधिक समस्या जमीन से जुड़े कार्यों के लिए हो रहा है। राजस्व विभाग में जनता के लिए सीधे कार्य कराना टेढ़ा खीर साबित हो रहा हैं अधिकांश जगहों पर दलालों का जाल बिछ चुका है। प्रशासनिक व्यवस्था को बेहतर करने की दिशा में प्रयास करने की बजाए उन्हें राजनीतिक मिलीभगत व संरक्षण मिलने लगा है।

शहर में अब भी एकमात्र फतेह सिंह खेल मैदान है। जो रियासतकालीन राजाओं की देन है। खेल मैदान की कमी के कारण शहर की खेल प्रतिभाएं दम तोड़ रही है। जिला मुख्यालय बनने के बाद भी शहर में एक वाचनालय तक नहीं है।
सगीत की इस नगरी में अब तक एक आडिटोरियम नहीं बन सका है। ​शहर में चौकों का विकास नहीं हो सका है। भीमराव अंबेडकर को छोड़कर देश के महापुरूषों के नाम पर एक मूर्ति तक नहीं है। जिससे नई पीढ़ी को प्रेरणा मिल सके।

अवैध प्लाटिंग और कॉलोनियों के कारण शहर का ढांचागत विकास बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। जिसका खमियाजा भविष्य में आने वाली पीढ़ी को भुगतना होगा। लगभर हर विभाग में भ्रष्टाचार और घोटाले उजागर हो रहे हैं। इससे भी बड़ी विडंबना यह है कि दोषियों पर कार्रवाई करने की बजाय बख्शा जा रहा है।

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