सीजी क्रांति/खैरागढ़। दिसंबर 2021 में खैरागढ़ के राजा व पूर्व विधायक देवव्रत सिंह के गांव उदयपुर में हुए बलवा के आरोपियों को अब तक नहीं पकड़ा जा सका है। इस मामले को पुलिस व प्रशासन ने ठंडे बस्ते में डाल दिया है! घटना के ढाई साल बाद भी आरोपी नामजद तक नहीं हुए हैं ? जांच प्रक्रिया अटकी हुई है। अब खैरागढ़-छुईखदान-गंडई जिला बनने के बाद एक बार यह उम्मीद जताई जा रही है कि उदयपुर बलवाकांड की फाइल पर पड़ी धूल एक बार फिर झड़ाई जाएगी। पुलिस बलवा के आरोपियों को सलाखों के पीछे भेजने में सफल होगी।
बहरहाल उदयपुर में हुआ बलवा सुनियोजित था, उसके प्रमाण पुलिस को मिलने की बात कही गई थी। उपद्रवियों ने पुलिस पर भी पत्थर बरसाए थे। लाठी-ठंडे से पुलिस गाड़ियों को बुरी तरह क्षतिग्रस्त किया था। उदयपुर ही नहीं बल्कि आसपास के गांवों में भी दहशत का माहौल था। यदि पुलिस ने मुस्तैदी से भीड़ को बिखराकर हालात को काबू नहीं किया होता तो किसी की जान भी जा सकती थी।
बता दें कि खैरागढ़ विधायक व राजा स्व. देवव्रत सिंह की मौत के करीब 56 दिनों बाद गुरुवार को उदयपुर स्थित पैलेस का ताला तो खुला, लेकिन विवादों के चलते कोई फैसला नहीं हो पाया! पैलेस को दोबारा सील करने की खबर के बाद ग्रामीण समर्थकों ने हंगामा शुरू कर दिया। देवव्रत की पत्नी विभा सिंह के खिलाफ जमकर नारेबाजी करते उग्र हुई भीड़ ने पैलेस के मेन गेट को ही तोड़ दिया! हंगामे को शांत कराने पुलिस ने भी लाठी लहराई, जिसे देख भड़के ग्रामीणों ने खैरागढ़ एसडीओपी दिनेश सिन्हा के साथ गंडई एसडीओपी व पुलिस के तीन बस और कार में तोड़फोड़ कर दी। यही नहीं राजपरिवार के सदस्यों की गाड़ियों का कांच भी उग्र भीड़ ने तोड़ दिया।
लाठीचार्ज कर पुलिस ने ग्रामीणों को खदेड़ा, जिसके बाद रात करीब 11 बजे प्रशासनिक टीम ने पैलेस को सील किया। रात में उग्र हुई भीड़ ने पुलिस पर पथराव किया। इस मामले में छुईखदान पुलिस ने अज्ञात ग्रामीणों के खिलाफ बलवा का मामला दर्ज किया था। लाठीचार्ज कर ग्रामीणों को खदेड़ने के बाद पुलिस ने रात में उदयपुर में पैदलमार्च भी किया। गांव में कर्फ्यू जैसा माहौल रहा। दूसरे दिन गांव में सन्नााटा पसरा रहा।
खैरागढ़ विधानसभा में इतना बड़ा हादसा हो गया, उसके बाद भी पुलिस ढाई साल से हाथ पर हाथ धरे बैठी हुई है। जांच प्रक्रिया में विलंब के पीछे राजनीतिक दबाव होने की भी बात कही जा रही है। हैरानी की बात यह है कि घटना स्थल पर बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात थी। सैकड़ों की संख्या में ग्रामीणों ने पथराव और लाठियां भांजी। इसके बाद एक भी ग्रामीणों की पहचान नहीं होने जैसी बात स्वीकार करने योग्य नहीं है। घटना स्थल पर दूसरे दिन बड़ी संख्या में पत्थर पड़े मिले। गलियों में लाठियां थी। इन्हे ध्यान में रखते हुए बलवा सुनियोजित थी, और लोगों को उकसाया गया, यह शंका सत्य के करीब लगती है! ऐसे ही कई तथ्यों की जांच उपरांत काफी पहले ही आरोपियों को पकड़ा जा सकता था लेकिन आश्चर्यजनक तरीके से ढाई साल बाद भी आरोपियों का गांव में खुला घूमना पुलिस व्यवस्था पर सवाल उठा रहा है!