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राजाओं ने नही ली सुध, आम लोगों ने खैरागढ़ के खत्म होते धार्मिक इतिहास को पुर्नजीवित कर दिया, जानिए खैरागढ़ के एकमात्र ब्रम्हदेव देव स्थल की कहानी….

0 दंतेश्वरी मंदिर के सामने विराजे है ब्रम्ह्देव, 3 फरवरी को शिवलिंग की होगी प्राण प्रतिष्ठा

सीजी क्रांति/खैरागढ़। रियासतकाल में क्षेत्र की आराध्य मां दंतेश्वरी मंदिर के ठीक सामने विशालकाय पीपल वृक्ष के नीचे तत्कालीन राजाओं द्वारा स्थापित ब्रम्हदेव की पाषाण प्रतिमा का 3 फरवरी को पुर्नस्थापना की जाएगी। इसके साथ ही मुक्तेश्वर महादेव की भी प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। इस अवसर पर नगर की विभिन्न हिंदू संगठनों व हिंदू समाज के तत्वावधान में कलश यात्रा निकाली जाएगी। आश्चर्य की बात यह है कि इस ऐतिहासिक व धार्मिक स्थल के कायाकल्प की सुध राजा परिवार ने नहीं ली। नगर के आम लोगों ने इस स्थल के जीर्णोधार का बीड़ा उठाया। चंद महिनों में यहां की तस्वीर बदल दी गई। आम लोगों ने खैरागढ़ के खत्म होते इतिहास को पुर्नजीवित कर दिया।

खैरागढ़ रियासत के राजा परिवार के लोगों का मठ, इसे संरक्षित कर रियासतकालीन स्मृतियों को धरोहर के रूप संजोया जा सकता है।

जानकारों के अनुसार दंतेश्वरी मंदिर के सामने व ब्रम्हदेव के समीप ही रियासत काल में राजाओं की मृत्यु होने पर उनका अंतिम संस्कर किया जाता था। जनश्रुति है कि यहां के राजाओं के परिजनों की अंत्येष्ठि के बाद उनके परिजन ब्रम्हदेव की प्रतिमा की परिक्रमा कर शुद्ध हो जाते थे। समय के साथ राजा परिवार के सदस्यों के अंतिम संस्कर शिव मंदिर में किया जाना लगा। इसके साथ ही यह परंपरा टूट गई।

बहरहाल बताया जाता है कि अभी जहां ब्रम्हदेव की प्रतिमा हैं वहां सैकड़ों साल पहले अघोरी नागा साधुओं का डेरा जमा रहता था। समय के साथ सारी चीजें परिवर्तित हो गई। ना राजा महाराजे रहे ना ही नागा साधुओं का डेरा लेकिन पीपल पेड़ के नीचे विराजित ब्रम्हदेव की पूजा अर्चना होती रही। इस दौरान मौसम की मार ज्यादा दिन तक पीपल का पेड़ सह नहीं पाया, पहले डालिया सूखकर गिरी फिर धीरे धीरे पूरा पेड़ सूख गया। लेकिन आश्चर्य की बात यह है ब्रम्हदेव की पाषाण प्रतिमा पर टहनी नहीं गिरी।

लाल वस्त्र में लिपटे ब्रम्हदेव की पाषाण प्रतिमा

राजपरिवार के समाधि स्थल के पुराने दरवाजे के ठीक सामने स्थित ब्रम्हदेव का चबूतरा इससे अछूता नहीं रहा। देख—रेख के अभाव और खुले में प्रतिमा रखने की मान्यता के चलते चबूतरे की विशेष देखभाल नहीं हो पाई और प्रतिमा धंसने लगी। राजपरिवार के सदस्य केशव सिंह, देवेश सिंह, अमित सिंह सहित अन्य श्रद्धालुओं ने दर्जनों बार इस स्थल का मरम्मत कार्य कराया। लोहे की चारदीवारी बनाई पर वो नाकाफी साबित हुआ।

कुछ माह पहले ही लगातार चबूतरे की जर्जर स्थिति को देखते हुए श्रद्धालुओं ने जीर्णोद्धार की रूपरेखा बनाई और जन सहयोग से काम पूरा करने का बीड़ा उठाया। ब्र्म्ह्देव की कृपा कहे या जनसहयोग कि चबूतरा अल्प समय में नई साज के साथ स्थल तैयार हो गया है। जहां शानदार ग्रेनाइट बिछी है, स्टील की रेलिंग लगी है, जमीन में चेकर्स साथ दीवार में टाईल्स और चार दीवारी भगवा रंग से रंग गया है। दर्शनार्थियों के विश्राम के लिये स्टील की कुर्सी और रंग बिरंगे पौधे कायाकल्प की कहानी बयां कर रहे है।

निर्माण को लेकर आर्थिक सहयोग की बात आई तो जो भी श्रद्धालु रास्ते से गुजरा उसने अपनी यथाशक्ति सहयोग श्री राम गौ सेवा समिति, विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल सहित सभी हिन्दूवादी संगठनों के सहयोग से भव्य कलश यात्रा निकाली जाएगी। चबूतरे में शिवलिंग के रूप में स्थापित होने वाले मुक्तेश्वर महादेव शहर भ्रमण करेंगे। वैदिक पद्दति से दुर्ग के पंडित तोरण प्रसाद तिवारी द्वारा भगवान ब्रम्हदेव की पुनर्स्थापना साथ शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा कार्यारंभ कराया जाएगा। शुक्रवार 3 फरवरी को प्रदोष काल में प्राण प्रतिष्ठा साथ प्रसादी वितरण होगा।

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