सीजी क्रांति न्यूज/खैरागढ़। खैरागढ़ की भागा दाई नहीं रहीं। 5 दिसंबर को उन्होंने अंतिम सांस ली। उनकी उम्र अनुमानित 90 साल रही होगी। 15 दिन पहले उनकी तबीयत बिगड़ी। उन्हें कमजोरी का अहसास होने लगा था। उम्र के इस पड़ाव को बुढ़ापा कहा जाता है। लेकिन भागा दाई युवा थी। सक्रिय थी और मानसिक रूप से पूरी तरह स्वस्थ थी। युवा और सक्रिय इसलिए क्योंकि वे 90 साल की उम्र में भी 15 दिन पहले तक अपने भोजनालय का संचालन कर रहीं थी।
ऐसा नहीं है कि भागा दाई के पास इस उम्र में काम करने की मजबूरी थी। पूरा भरा पूरा परिवार है उनका। लेकिन भागा दाई ने लोगों की भूख मिटाने के लिए संचालित भोजनालय को व्यावसाय नहीं बल्कि अपना भगवान और धर्म मान लिया था।
जी हां भागा दाई … के होटल या भोजनालय। न्यू बस स्टैंड के दाहिने ओर सबसे आखिरी में उनका भोजनालय है। जहां एक समय में बड़े-बड़े अफसर तक भोजन करने आते थे। आज भी कामकाजी और स्टुडेट्स उनके भोजनालय में खाना खाते है। बताते हैं कि भागा दाई के होटल में लोगों को घर जैसा ही शुद्ध भोजन उपलब्ध होता था। भागा दाई के व्यवहार में मातृत्व और अपनेपन का अहसास होता था। बताते हैं कि वे भोजनालय के लिए काफी समय तक खुद ही सब्जी खरीदने भी जाती थी। और सब्जी मंडी से अच्छी सब्जी खरीदती थी। जबकि व्यावसायीकरण के इस दौर में लोग पैसे बचाने के चक्कर में अधकचरे सब्जी तक ग्राहकों को परोस देते हैं।
भागा दाई का यह करीब 60 साल पुराना भोजनालय है। जहां शुरू से ही काफी कम कीमत पर लोगों को भोजन उपलब्ध रहता है। भागा दाई ने कभी अपने होटल का व्यावसायीकरण नहीं किया और न ही होने दिया। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम क्षण तक होटल की बागडोर अपने हाथों में ही रखा।
उन्होंने अपने जीवन का सिद्धांत बनाकर रखा था कि भोजनालय से सिर्फ उतना ही कमाना है, जिससे उनका परिवार पल सके। और बस इसी ध्येय वाक्य को आत्मसात कर भागा दाई के होटल में काफी कम दाम में लोगों के पेट की आग अब तक बुझती रही है।
अब भागा दाई नहीं है…. खैरागढ़ की वह भागा दाई जिन्होंने महिला सशक्तिकरण की मिशाल कायम की है। भूखों को भोजन कराया है। अंतिम सांस तक जिन्होंने अपने कर्म को ही धर्म समझा है। भागा दाई के भोजनालय में भोजन करने वालों के जेहन में वे सदैव रहेंगी लेकिन आज भी खैरागढ़ का एक बड़ा तबका खासकर महिला व युवा वर्ग के लिए प्रेरणादायी भागा दाई गुमनाम है।
आमतौर पर समाज में यही देखने को मिलता है। प्रेरणा और पुरूषार्थपूर्ण जीवन जीने वाले हाशिए पर रहकर चुपके से अपना काम करते हैं और चले जाते हैं….। पर ऐसी शख्सियतों के कर्म उनकी स्मृतियों को सालों तक संजोए रखते हैं। मौत के बाद भी ऐसे लोगों की यादें सालों जिंदा रहती है।
भागा दाई के दो पुत्र थे, श्याम सिंह और माखन सिंह। अभी उनके पोते रंजीत सिंह, मंजीत सिंह और संदीप सिंह समेत पूरा भरापूरा परिवार है।
1 thought on “नहीं रही खैरागढ़ की भागा दाई, जो 90 की उम्र में खिलाती थी भूखों को खाना, और उतना ही कमाती थी, जिससे परिवार चल सके”
नमन है नेक दिल देवी को । आजकल अब इस प्रकार नेकी करने वाले बिलकुल भी नई मिलेंगे ।