सीजी क्रांति न्यूज/छुईखदान। सरकारी जमीन के संरक्षण की जवाबदेही राजस्व विभाग की है। किंतु जिले में सरकार की बेशकीमती जमीनों पर प्रशासनिक लापरवाही और राजनीतिक संरक्षण के चलते अतिक्रमण और अवैध निर्माण की शिकायतें लगातार बढ़ रही है। दिलचस्प यह है कि राजस्व विभाग की अनदेखी के कारण सरकारी जमीनों पर कब्जे हो रहे हैं और नगरीय निकाय की घोर लापरवाही के कारण अवैध निर्माण धड़ल्ले से जारी है। इन सबके बीच भू-माफिया बेखौफ होकर जमीन पर कब्जे और निर्माण कार्य भी कर रहे हैं।
इसका हालिया उदाहरण छुईखदान नगर पंचायत में देखने को मिल रहा है।
यहां सब्जी मंडी की बेशकीमती जमीन पर कांपलेक्स तन गया। वहां दुकानें भी संचालित होने लगी है। इस बीच नगर पंचायत के जिम्मेदार अफसर आंखें मूंदे बैठे रहे। वहीं स्थानीय पार्षद और जनप्रतिनिधि भी सोए रहे। यानी पूरी राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था की मौन सहमति से सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा भी हो गया, और अवैध निर्माण भी।
राजस्व विभाग की इस जमीन पर बने अतिक्रमण को हटाने और अवैध निर्माण को ढहाने का आदेश तहसीलदार दे सकता है न कि नगर पंचायत का सीएमओ! लेकिन सवाल यहां यह भी उठता है कि शहर के बीचो-बीच अवैध निर्माण की जानकारी नगर पंचायत को नहीं मिली। जबकि सच्चाई यह है कि अवैध कांपलेक्स के निर्माण होने के दौरान ही निकाय के अधिकारियों को स्थानीय लोगों नेे सूचना दे दी थी लेकिन जनता की शिकायत को अनदेखी कर अवैध निर्माण को रोकने की कोशिश ही नहीं की गई।
एसडीएम रेणुका रात्रे ने जब नगर पंचायत को जांच करने आदेश दिया। 2 बार रिमांडर भी दिया गया। उसके बाद सीएमओ ने अपनी रिपोर्ट पेश की। जिसमें उन्होंने अपना तर्क यह दिया है कि अवैध निर्माण तोड़ने का आदेश देने का उनके पास अधिकार नहीं है। यह अधिकार तहसीलदार के पास है। वे आदेश करेंगे तो हम अमला उपलब्ध करा देंगे। उन्होंने इस संदर्भ में कोर्ट का आदेश भी संलग्न किया है।
बहरहाल इस मामले को स्थानीय भाजपा नेता और कारोबारी नवनीत जैन ने उठाया। जिसके बाद शैलेंद्र तिवारी ने कलेक्टर से लिखित शिकायत की। एसडीएम रेणुका रात्रे को जांच के निर्देश दिए गए। उन्होंने नगर पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी को नोटिस जारी कर मामले की रिपोर्ट मांगी। प्रशासन के इस दस्तावेजी और कागजी कार्रवाई के उधेड़बून में अब तक यह निष्कर्ष नहीं निकल सका कि अतिक्रमण को हटाने और अवैध निर्माण को ढहाने की जिम्मेदारी कौन पूरी करेगा। यानी प्रशासनिक अमला एक दूसरे पर जिम्मेदारी डाल कर कार्रवाई करने में टाल-मटोल कर रहे हैं!
नया जिला होने की वजह से प्रशासनिक सेटअप के लिए सरकारी जमीन आरक्षित व सुरक्षित करने की प्रशासनिक जिम्मेदारी कलेक्टर के पास है। लेकिन कलेक्टर गोपाल वर्मा भी विलंब होते इस प्रकरण में प्रशासनिक रूचि दिखा रहे हैं ! यह तब लगता जब त्वरित कार्रवाई होती। लिहाजा मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए सरकारी जमीन पर तना यह अवैध कॉमर्शियल कांपलेक्स यह साबित कर रहा है कि यही कब्जा और अवैध निर्माण कोई आम आदमी करता तो उसे कब का ढहा दिया गया होता लेकिन मामला रसूखदारों का है। इसलिए ढिलाई बरती जा रही है ?
सरकारी जमीन पर अवैध निर्माण तोड़ने का अधिकार हमारे पास नहीं- सीएमओ
भू-राजस्व संहिता 1959 की धारा 248 के अंतर्गत तहसीलदार को अतिक्रमण हटाने का निर्देश देने की अधिकारिता है। पंचायत के सीएमओ के पास ऐसी कोई अधिकारिता नहीं है। यह कोर्ट का आदेश है। हमने की अपनी रिपोर्ट भेज दी है। राजस्व विभाग के जिम्मेदार अफसर निर्देश देंगे तो हम उनके मार्गदर्शन में अमला भेज कर कार्रवाई कर देंगे।
सवाल का जवाब टाल गई एसडीएम रेणुका रात्रे
सीजी क्रांति ने इस मामले में एसडीएम रेणुका रात्रे से दूरभाष पर बात की। उन्होंने सवाल सुना पर जवाब न देकर थोड़ी देर में बात करने का आश्वासन देकर पल्ला झाड़ गईं।