नीलेश यादव/ मनोज चेलक/ सीमा ठाकुर
सीजी क्रांति/खैरागढ़। नियती के आगे किसी का बस नही चलता। कृपा बरसाती है, तो जिंदगी बन जाती है। वही नियती की कुदृष्टि पड़ती है, तो सब कुछ तबाह हो जाता है…इस बार नियती का प्रकोप राजघराने पर पड़ा है…तीन नवंबर की वो मनहूस रात…जब राजघराने पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा…जब दुनिया दिवाली की खुशियां मना रही थी, तो राजपरिवार दु:ख के सागर में डूबा था। आखिर दिवाली की रोशनी उनकी घर तक कैसे पहुंचती, राजघराने का दीपक ही बूझ गया।
राजा देवव्रत सिंह के निधन को लेकर तरह-तरह की अफवाहें फैल रही है। इस बीच सीजी क्रांति डॉट कॉम की टीम ने राजा देवव्रत सिंह के खैरागढ़ स्थित कमल विलास पैलेस पहुंची। जहां राजकुमारी शताक्षी सिंह से विशेष चर्चा की। इस दौरान उन्होंने घटना वाली रात की दुखदायी पलों को सीजी क्रांति डॉट कॉम के साथ साझा की।
राजकुमारी शताक्षी सिंह की जुबानी… देवव्रत सिंह के अंतिम क्षणों की कहानी…
वो रात जिसने हम सबके होश उड़ा दिये जिसने सबकुछ ले लिया हमसे, वो रात ऐसी थी, जिसे हम कभी भूल नहीं सकते। दीपावली पर हमारे घर दीपक बुझ गया। उस दिन सबकुछ ठीक था। मैंने पापा को आज तक दीपावली पर्व पर इतना उत्साहित कभी नहीं देखा था। उन्होंने हम दोनों भाई-बहनों के साथ दीपावली सेलिब्रेशन की पूरी तैयारी कर ली थी।
हमने शाम को बैठ के चाय पी, हम खेत गये। रात 9 बजे हम सबने साथ में खाना खाया। फिर अचानक रात के 2 या 2.15 बजे ने पापा ने मुझसे कहा – बेटा, चलो! हम हॉस्पिटल चलते हैं, मुझे अटैक आ रहा है।
उस समय मुझे कुछ समझ नहीं आया कि मैं क्या करूं। तो तुरंत ही हम अस्पताल के लिये निकले, उनकी तबीयत काफी बिगड़ चुकी थी। मैं और भाई आर्यव्रत सिंह आखिरी समय तक उनके साथ थे, और पापा को हमसे और हमें उनसे बहुत प्रेम था, उन्होंने आखिरी पल में भी हमें याद किया।
अस्पताल ले जाते वक्त जब ड्राईवर ने गाड़ी स्टार्ट की, और गाड़ी आगे बढ़ाई, तो उन्होंने कहा – रूको-रूको बच्चे भी आ रहे हैं, उन्होंने आखिरी समय तक हमें अपने से दूर नहीं होने दिया।
पापा को तेज रफ्तार में गाड़ी चलाना कभी पसंद नहीं था। तेज गति से गाड़ी चलाने पर अक्सर पापा ड्राईवर को मना कर देते थे लेकिन उस दिन उदयपुर से खैरागढ़ की 22 कि.मी. की दूरी हमने मात्र 12 मिनट में तय किया था।
जब हम इतवारी बाजार पहुंचे, तो पापा की आँखे बंद होने लगी थी, उनका बोलना बंद हो गया था। शुरू से ही उनको सांस लेने में बहुत दिक्कत हो रही थी। उनके आखिरी शब्द भी यही थे, शिया मुझे सांस नहीं आ रही है। बस, उसके बाद उन्होंने कुछ नहीं बोला…
जब हॉस्पिटल में मैने डॉक्टर से बात की तो उन्होंने बताया कि उन्हें सेकंड अटैक आ चुका था, बस इसी बात को हम सोचते हैं, कि लोग एक अटैक आने के बाद दिल्ली-से बॉम्बे तक चले जाते हैं, लेकिन हमें वो मौका नहीं मिला। वो चीज हमारी किस्मत में नहीं थी।
“पापा जहां भी हैं, वो हमें देख रहे हैं, हमारे साथ हैं, आगे का रास्ता भी वो ही दिखाएंगे…।“