सीजी क्रांति/खैरागढ़। खूबियों की लंबी फेहरिस्त होने के बाद भी खैरागढ़ का दुर्भाग्य रहा कि यहां कोई स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पैदा नहीं हुआ! यही नहीं एक और बड़ी विडंबना यह है कि आजादी के 75 साल बाद भी यहां शहीदों की स्मृति को संजोने के लिए एक शहीद की मूर्ति तक स्थापित नहीं की जा सकी। खैरागढ़ की राजनीति में आजादी के बाद से ही राज परिवार का दबदबा रहा है। चाहे कांग्रेस हो या राज्य निर्माण के बाद भाजपा हो। सामंतवादी विचार और ताकतों का ही यहां बोलबाला रहा है। जबकि खैरागढ़ से महज 12 किमी दूर छुईखदान को शहीदों की नगरी नाम की उपमा दी गई है।
नगर में एकमात्र स्वतंत्रता सेनानी व दलितों और पिछड़ों के अधिकार की लड़ाई लड़ने वाले डॉ. भीमराव अंबेडर की मूर्ति स्थापित की गई है। इस प्रतिमा का रख-रखाव भी बौद्ध अनुयायी ही कर रहे हैं। खैरागढ़ की राजनीति में सिंह लोगों का दबदबा है। इसके बाद भी महाराणा प्रताप, शिवाजी, भगत सिंह या फिर जाति बाहुल्यता को ध्यान में रखकर वीर नारायण सिंह या बिरसा मुंडा जैसे वीर शहीदों की भी सुध ही नहीं ली गई। हैरानी की बात यह है कि खैरागढ़ में जनप्रतिनिधियों ने अपने पूर्वजों के नाम पर जरूर सरकारी संस्थाओं या सार्वजनिक संपत्ति का नामकरण किया लेकिन देश के लिए मर मिटने वालों की प्रेरणादायी जीवन को नजरअंदाज कर दिया।