सीजी क्रांति/खैरागढ़। कांग्रेस से पूर्व जिला पंचायत सदस्य यशोदा वर्मा की उम्मीदवारी घोषित होने के बाद अब भाजपा से लुकेश्वरी जंघेल का नाम तय होने की संभावना जताई जा रही है। इसके पीछे तीन मुख्य वजह है। पहला जाति कार्ड, दूसरा महिला प्रत्याशी को महत्व और तीसरी महत्वपूर्ण वजह पर्दे के पीछे से आ रही है कि भाजपा के दो पुरूष उम्मीदवार में से एक ने नाराजगी व्यक्त कर दी है कि यदि मुझे नहीं तो उसे भी नहीं।
साफ कहे तो पूर्व विधायक कोमल जंघेल और जिला पंचायत उपाध्यक्ष विक्रांत सिंह के बीच ठनी तो लुकेश्वरी जंघेल का नाम फाइनल होना तय है। 2018 में हुए विधानसभा चुनाव भी छुईखदान के जंगलपुर निवासी लुकेश्वरी जंघेल का नाम तेजी से उछला था।
बता दें कि खैरागढ़ विधानसभा में भाजपा के प्रबल दावेदारों में से एक पूर्व विधायक एवं संसदीय सचिव कोमल जंघेल 4 बार चुनाव लड़ चुके हैं। पहली बार जून 2007 में हुए उप चुनाव में उन्होंने देवव्रत सिंह की तत्कालीन पत्नी पदमा सिंह को हराया था। 2008 में कांग्रेस के मोतीलाल जंघेल को पराजित किया। तीसरी बार 2013 में कोमल जंघेल कांगे्रस के गिरवर जंघेल से हार गए। वहीं 2018 में जोगी कांग्रेस के देवव्रत सिंह से महज 870 वोटों से पीछे रहे। जबकि कांग्रेस तीसरे स्थान पर रहा।
वहीं विक्रांत सिंह के लिए उनके समर्थक लगातार तीसरी बार टिकट की मांग कर रहे हैं।
विक्रांत सिंह पूरे विधानसभा क्षेत्र में एक मात्र ऐसे नेता हैं जिन्होंने अब तक कोई चुनाव नही हारा है। विक्रंात नगर पंचायत, नगर पालिका, जनपद पंचायत में अध्यक्ष रह चुके हैं। वर्तमान में वे जिला पंचायत उपाध्यक्ष है। विधानसभा क्षेत्र में जनता के बीच विक्रांत सिंह जाना-पहचाना नाम व चेहरा है। क्षेत्र में उनकी सक्रियता बनी हुई है। युवाओं की एक बड़ी टीम उनके साथ है। विक्रांत सिंह के टिकट में परिवारवाद व जातिवाद एकमात्र सबसे बड़ा रोड़ा रहा है।
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लगातार दो बार चुनाव हारने के बाद भी कोमल जंघेल को टिकट दिए जाने की सुगबुगाहट से ही पार्टी का एक मजबूत तबका आला नेताओं के सामने अपनी नाराजगी जाहिर कर चुका है। इन सबके बावजूद यदि कोमल को इस बार पांचवी दफे टिकट दिए जाने की स्थिति बनती है तो पार्टी का एक बड़ा गुट नाराज होकर घर बैठ सकता है। कोमल जंघेल ने पिछला चुनाव हारने के बाद पार्टी की समीक्षा बैठक में इस बात से अवगत कराया था कि वे कांग्रेस की लहर के बीच भी मामूली अंतर से हारे थे, अपनों ने साथ दिया होता तो भाजपा जीत सकती थी।
बहरहाल कांग्रेस से यशोदा वर्मा के सामने कोमल जंघेल और विक्रांत सिंह दोनों ही दिग्गज है। यदि इनका टिकट काटकर लुकेश्वरी जंघेल को टिकट दिया गया तो भाजपा को कड़ी मेहनत करनी होगी। दो की लड़ाई में लुकेश्वरी जंघेल को सामने लाने के पीछे कुछ वजहें यह हो सकती है कि उप चुनाव में यदि लुकेश्वरी हार गई तो यह साबित किया जाएगा कि उप चुनाव में सत्ता पक्ष जीतती रही है।
लुकेश्वरी बड़ा चेहरा नहीं है। उनके हारने से पार्टी की प्रतिष्ठा पर कोई आंच नहीं आएगी बल्कि कार्यकर्ताओं के बीच यह संदेश जाएगा कि पार्टी छोटे कार्यकर्ताओं को और खासकर महिलाओं को आगे बढ़ाने की नीति पर काम करती है। यदि लुकेश्वरी जीत गई तो पार्टी की बल्ले-बल्ले। आला नेता यह साबित करेंगे कि उनका प्रयोग सफल रहा।
परदे के पीछे की रणनीति यह भी हो सकती है कि उप चुनाव के बाद करीब डेढ़ साल का कार्यकाल मिलेगा। इतने कम समय के लिए पैसा और प्रतिष्ठा दांव में लगाना नुकसानदायक हो सकता है। लिहाजा मैं नहीं तो तुम भी नहीं के अहम में पहले व बड़े प्रतिद्वंद्धी को हाशिए पर डाला जाए। इस बीच सत्ता का प्रभाव व धन-बल के सामने लुकेश्वरी शिकस्त होती है, तो आगामी 2023 के चुनाव में पुराना किंतु नए चेहरे के सामने कई बाधाएं समाप्त हो जाएंगी।