सीजी क्रांति/खैरागढ़। टिकट बटवारे के बाद मनमुटाव और नाराजगी की समस्या न सिर्फ भाजपा में है, बल्कि सत्तासीन कांग्रेस भी उसी समस्या से जूझ रही है। हालांकि विपक्ष में होने की वजह से भाजपा नेताओं की नाराजगी जग जाहिर गई, लेकिन कांग्रेस के सत्ता में होने की वजह से कोई खुलकर नहीं बोल पा रहा है। कांग्रेस प्रत्याशी यशोदा वर्मा की नामांकन रैली के सीएम भूपेश बघेल की राजनंदगांव के राज इम्पीरियल होटल में टिकट कटने वाले नेताओं के साथ अलग से लंच करना उसी की एक बानगी है। सत्ता सरकार असंतुष्टो को साधने का भरसक प्रयास कर रही है।
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क्योंकि टिकट बंटवारे समय सबसे ज्यादा संशय की स्थित कांग्रेस में है। ज्यादातर दावेदार इसी खेमे से टिकट के लिए चक्कर लगा रहे हैं। कांग्रेस में दो दर्जन से ज्यादा दावेदार है, जिन्हें शॉर्ट लिस्ट कर लिया गया है। ऐसे में किसी एक को टिकट मिलता है, तो अन्य दावेदार बगावत कर सकते हैं। हालांकि सत्ता सरकार होने की वजह से खुलकर सामने न आए, लेकिन अंदरूनी तौर पर भीतरघात कर सकते है?
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इसकी एक बानगी साल 2018 विधानसभा चुनाव में देखने को मिली थी। जब सत्ता परिवर्तन की लहर में भी कांग्रेस महज 30 हजार वोटों तक सिमटकर रह गई थी। ऐेसे में टिकट पर फैसला संगठन के लिए बड़ी चुनौती होगी। कहा तो यह भी जा रहा है कि टिकट बंटवारे को लेकर नाराजगी न फैले इसके लिए प्रदेश संगठन फार्मूला भी तैयार कर लिया है।
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बगावत के आसार इसलिए ज्यादा प्रबल नजर आ रहा है, क्योंकि आने वाले साल 2023 के अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा का आम चुनाव होना है। यानी उपचुनाव के संपन्न होने के बाद महज डेढ़ साल का ही समय रह जाएगा। ऐसे में टिकट नहीं मिलने वाले दावेदार आने वाले चुनाव में मुखर होकर अपनी दावेदारी पेश करेंगे। यहीं वजह है कि उपचुनाव में कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लडऩे वाले प्रत्याशी को कमजोर साबित करने के लिए खिलाफ में भी काम कर सकते हैं।